हिन्दी व अंग्रेजी माध्यम में उपलब्ध इस कोर्स में दाखिला लेने वाले १५० छात्रों को कॉमनवेल्थ एजुकेशनल मीडिया सेंटर फॉर साउथ एशिया (सेम्का) की तरफ से छात्रवृत्ति मिलेगी।

यदि घोषित संख्या से अधिक छात्रों ने दाखिला लिया तो छात्रवृत्ति के लिए योग्यता को आधार बनाया जायेगा । इस कोर्स में पूरे वर्ष में कभी भी दाखिला लिया जा सकता है।

सामुदायिक रेडियो पूरी दुनिया में वंचित समुदाय के संवाद और विकास का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है । ऐतिहासिक संदर्भों के मुताबिक सामुदायिक रेडियो का बीज १९४० के दशक में लैटिन अमेरिका में पड़ा।

दक्षिण एशिया में नेपाल पहला देश है जहां १९९७ में सामुदायिक रेडियो की शुरुआत हुई ।

भारत में सामुदायिक रेडियो की अवधारणा नई है लेकिन विश्व व एशिया के तमाम देशों में यह सामाजिक सरोकारों के सशक्त आंदोलन का स्वरूप ग्रहण करता जा रहा है।

भारत में पहली बार १९९९ में आकाशवाणी के सहभागी के तौर पर (भुज, गुजरात) में सामुदायिक रेडियो की शुरुआत हुई। केन्द्र सरकार की ओर से २००६ में सामुदायिक रेडियो नीति बनायी गयी जिसकी औपचारिक गतिविधि २००७ में शुरु हुई ।

मौजूदा समय में दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, आयरलैंड, आस्ट्रेलिया, फीलीपींस, थाईलैंड, इंडोनेशिया, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, ब्रिटेन आदि देशों में सामुदायिक रेडियो का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है।

भारत में इस समय करीब ५० सामुदायिक रेडियो केंद्र संचालित हो रहे हैं। नवंबर २००९ के अंत तक करीब ६१ सामुदायिक रेडियो केन्द्र खोलने के लिए लाइसेंस दिया जा चुका है।

यह माध्यम समुदाय कीअभिव्यक्ति का मंच बन कर उभरा है। यही कारण है कि कॉमनवेल्थ एजुकेशनल मीडिया सेन्टर फॉर साउथ एशिया (सेम्का) और यूनेस्को जैसी प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं सामुदायिक रेडियो-शिक्षा, साक्षरता को बढावा देने के लिए पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर पडी हैं ।

सामुदायिक रेडियो का मकसद : इसका मकसद समुदाय के अंतिम व्यक्ति से संवाद स्थापित करना और उसके सुख-दुःख का साथी बनना है।

विकास से वंचित, उपेक्षित और सताए हुए लोगों को मुक्ति का माध्यम बनना तथा समुदाय में गुणात्मक परिवर्तन लाना। समुदाय के दिल,दिमाग,दृष्टि और दृष्टिकोण को स्वतंत्र,निर्णायक और धारदार बनाना और उनकी आवाज को बुलंद करना।

समुदाय की रचनात्मकता और सृजनशीलता को बढावा देना और लोक कला व लोकहित को जिंदा रखना। समुदाय में निर्णायक क्षमता का विकास तथा उनमें व्याप्त अंधविश्वास को खत्म कर वैज्ञानिक चेतना का संचार करना। उनकी लोकतांत्रिक मांगों को सत्ता तक पहुंचाना और समाज की मुख्यधारा से जोडने के लिए अनथक प्रयास करना।

सामुदायिक रेडियो के संचालन का अधिकार : तमाम जद्‌दोजहद के बाद केंद्र सरकार ने नवंबर, २००६ में सामुदायिक रेडियो नीति बनायी जिसकी औपचारिक शुरुआत २००७ में हुई।

दक्षिण एशिया में भारत पहला देश है जिसने सामुदायिक रेडियो नीति बनायी है। इस नीति के मुताबिक सामुदायिक रेडियो के संचालन का अधिकार मान्यता प्राप्त शिक्षण सस्थाओं, गैर सरकारी संगठनों, नागरिक संगठनों और कृषि विश्वविालय व विज्ञान केन्द्रों को दी जाती है ।

सामुदायिक रेडियो संचालन के लिए सरकार मुफ्त में लाइसेंस देती है। इसकी पहुंच सामान्य रूप से १० से १२ किलोमीटर तक होती है। पाठ्‌यक्रम का नाम : सामुदायिक रेडियो में सर्टिफिकेट कोर्स

अवधि : वैसे तो यह कोर्स ६ माह का है। यदि कोई छात्र उक्त अवधि में किसी वजह से कोर्स पूरा नहीं कर सका तो ऐसे छात्रों के लिए अधिकतम २ साल की अवधि निर्धारित की गई है।

योग्यता : सामुदायिक रेडियो में सर्टिफिकेट कोर्स १२ वीं पास या इसके समकक्ष परीक्षा पास छात्र दाखिले के योग्य माने जायेंगे।

माध्यम : फिलहाल यह कोर्स हिंदी/अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध है, लेकिन आगामी दिनों में इसे क्षेत्रीय भाषाओं में भी शुरू करने की योजना है।

प्रवेश शुल्क : इस कोर्स में दाखिले के लिए ४,८०० रुपये शुल्क निर्धारित की गई है।

छात्रवृत्ति : कॉमनवेल्थ एजुकेशनल मीडिया सेंटर फॉर साउथ एशिया (सेम्का) की तरफ से १५० छात्रों को छात्रवृत्ति मिलेगी।

खुशखबरी : इस कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों के लिए एक बडी खुशखबरी है। इस कोर्स में दाखिले के वक्त छात्र जितना शुल्क अदा करेंगे उतनी ही उन्हें सेम्का की तरफ से छात्रवृत्ति मिलेगी। छात्रवृत्ति मिलते ही छात्रों को पूरा शुल्क दो हिस्सों में वापस कर दिया जायेगा।

इंटर्नशिप : इग्रू ने देश में संचालित सामुदायिक रेडियो व आकाशवाणी केंद्रों के साथ समझौता कर रखा है। इन्हीं केंद्रों पर दस दिन का इंटर्नशिप दिया जायेगा जो इस कोर्स का हिस्सा है।

काउंसिलिंग : इस कोर्स के छात्रों को इग्रू के 'ज्ञानवाणी' के 'फोन-इन' कार्यक्रम के दौरान इस कोर्स से संबंधित जानकारी लेने की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा इग्रू के विभिन्न क्षेत्रीय केंद्रों पर भी छात्र इससे संबंधित जानकारी ले सकते हैं।

अध्ययन सामग्री : इस कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों को संपूर्ण अध्ययन सामग्री दी जायेगी।

सुनहरा अवसर : समाज के प्रति 'मिशनरी' भावना रखने वाले छात्र इस कोर्स को करके सामुदायिक रेडियो के क्षेत्र में सुनहरा भविष्य बना सकते हैं और अपना खुद का रेडियो केंद्र भी खोल सकते हैं।

सामुदायिक रेडियो का भविष्य : पूरी दुनिया में सामुदायिक रेडियो आंदोलन का रूप ले रहा है। विकसित और विकासशील देशों ने इस दिशा में खास ध्यान देना शुरू किया है।

सूचना क्रांति व टेक्नॉलाजी के सहारे कंप्यूटर-इंटरनेट और टीवी-रेडियो ने वैश्विक पैमाने पर प्रभावशाली असर डाला है। इसके बावजूद समाज का बहुसंख्यक वर्ग अभी भी इनकी पहुंच से दूर है ।

समुदाय के अंतिम व्यक्ति से संवाद स्थापित करना और उसके सुख-दुःख का साथी बनना सामुदायिक रेडियो का प्रथम लक्ष्य है। जो लोग इससे जुडने का सपना देखते हैं वे इसके द्वारा विकास से वंचित, उपेक्षित और सताए हुए लोगों के मुक्ति का माध्यम बन कर समुदाय में गुणात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।

आम तौर पर सामुदायिक रेडियो उन समुदायों क ी अभिव्यक्ति का मंच बनता है जहां मुख्यधारा का मीडिया नहीं पहुंचता। यही वजह है कि इस माध्यम की प्रासंगिकता निरंतर बनी रहेगी। पत्रकारिता एवं नवीन जनसंचार अध्ययन विापीठ के निदेशक प्रो. शम्भुनाथ सिंह इस कोर्स की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताते हैं कि सामुदायिक रेडियो समुदाय का, समुदाय के लिए और समुदाय द्वारा नियंत्रित-संचालित माध्यम है। प्रो. सिंह का तर्क है कि व्यावसायिक रेडियो के घटाटोप में सामुदायिक रेडियो ही सधी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनने की क्षमता रखता है।

दक्षता : कोर्स के सह-संयोजक डॉ. रमेश यादव बताते है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय करीब ४००० सामुदायिक रेडियो केंद्र खोलने के लिए योजना बना रहा है। बेहतर प्रस्तुतिकरण-आवाज, भाषा-सामान्य ज्ञान और तकनीकी तौर पर दक्ष छात्रों का सामुदायिक रेडियो की दुनिया में हमेशा स्वागत होगा। छात्रों में दक्षता पैदा करने के लिए ही इग्रू के पत्रकारिता एवं नवीन जनसंचार अध्ययन विापीठ ने इस कोर्स को प्रारम्भ किया है।(नवोत्थान लेख सेवा, हिंन्दुस्थान समाचार)