वैसे अनेक सुधार लोगों को तुंरत राहत भी देते हैं। उन सुधारों में से एक है जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेज एक्ट (वस्तु सेवा कर)। पिछले 15 सालों से इस कर व्यवस्था को लागू करने की कसरत चल रही है और सरकार ने इसे अगले एक अप्रैल से देश में लागू करने की घोषणा कर दी है। यदि सरकार अपनी घोषणा पर सही उतरती है, तो वर्ष 2016 देश के आर्थिक इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण वर्ष साबित होगा, क्योंकि आजादी के बाद का यह सबसे बड़ा आर्थिक सुधार होगा, जिसके बाद व्यापार के और कर प्रशासन का स्वरूप ही बदल सकता है। यह निर्णय अपने आप में देश की आर्थिक विकास दर को दो फीसदी ज्यादा कर देने की क्षमता रखता है।

2015 में पहली बार यह सुनने को मिला की भारत विश्व की सबसे ज्यादा तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन गया है। चीन के बाद यह दूसरे नंबर पर पहले से ही चल रहा था, लेकिन चीन की विकास दर मे कमी आने के बाद भारत ने उसका स्थान ग्रहण कर लिया। यदि वस्तु सेवा कर हकीकत मे तब्दील हो गया, तो इसकी पूरी संभावना है कि भारत अगले साल भी दुनिया की सबसे तेज विकास दर वाला देश बना रहेगा।

पर सवाल यह है कि क्या वस्तु सेवा कर की व्यवस्था हकीकत बन पाएगी? केन्द्र सरकार के पास राज्यसभा में साधारण बहुमत भी नहीं है, जबकि इससे संबंधित विधेयक को पारित करने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ती है। कांग्रेस सरकार के सख्त खिलाफ है और वह इसे संसद में काम करने नहीं देना चाहती है। केन्द्र सरकार के कुछ मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं और उसे आधार बनाकर कांग्रेस अन्य विपक्षी दलों का समर्थन हासिल कर संसद का काम बाधित कर रही है। कांगेस के दो सबसे बड़े नेता खुद जालसाजी के मामले में फंस रहे हैं और उसकी भड़ास वे संसद के सदन में निकालते हैं। इसके कारण वस्तु सेवा कर का हकीकत बनना संदिग्ध बना हुआ है। यदि यह व्यवस्था लागू नहीं हो सकी, तो यह वर्ष 2016 की सबसे बड़ी विफलता साबित होगी।

महंगाई पर नियंत्रण रखना केन्द्र सरकार की एक बड़ी चुनौती होगी। वैसे थोक मूल्य सूचकांकों के आधार पर देखा जाय, तो देश में मुद्रास्फीति की स्थिति नहीं है, लेकिन तेल और दालों की बढ़ती कीमतों ने न केवल लोगों को परेशान कर रखा है, बल्कि केन्द्र और राज्य सरकारों की महंगाई पर नियंत्रण रखने की क्षमता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। दाल का उत्पादन कम हुआ, लेकिन महंगाई उत्पादन की कमी के अपेक्षा बहुत ज्यादा बढ़ी। जमाखोरी और मुनाफाखोरी पर लगाम लगाने वाली सरकारी मशीनरी की पोल खुल गई है।

2015 के साल में मानसून कमजोर रहा। औसत से कम वारिश हुई और उसका असर अनाज उत्पादन पर पड़ा है। जब कभी मानसून कमजोर होने से उत्पादन में कमी आती है, तो उसका असर अगले साल देखने को मिलता है। जाहिर है, 2016 में कीमतों को लेकर चिंता बनी रहेगी। हालांकि यह सच है कि अनाजों का भरपूर भंडार हमारे देश के गोदामों में मौजूद है, लेकिन सरकारी मशीनरी की विफलता जमाखोरों और मुनाफाखोरों की चांदी उसी तरह करा सकती हैं, जिस तरह से दालों ने करा रखी है। इसलिए सरकार को बेहद सतर्क रहना होगा।

नरेन्द्र मोदी का यह चुनावी वायदा था कि अपने 5 साल के कार्यकाल में वे 5 करोड़ लोगों को रोजगार उपलब्ध होने के अवसर प्रदान करेंगे। शुरुआती डेढ़ साल में वे अपने इस वायदे को पूरा नहीं कर सके। रोजगार एक दिन में पैदा भी नहीं हो सकता है, खासकर तब जब हमने बाजार आधारित विकास के माॅडल को स्वीकार कर लिया हो। लेकिन डेढ़ साल का समय कम नहीं होता है। जाहिर है, 2016 का साल रोजगार के अवसर पैदा होने का भी इंतजार कर रहा है। इस साल रोजगार अवसर पैदा होने की अच्छी शुरुआत होनी ही चाहिए, अन्यथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक महत्वपूर्ण चुनावी वायदा अधूरा रह जाएगा।

मेक इन इंडिया मोदी सरकार की एक महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसके तहत भारत को विश्व मैन्युफैक्चर का केन्द्र बनाने का प्रयास किया जा रहा है। भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की विफलता के कारण इसकी सफलता पर तो सवाल उठाए जा रहे हैं, लेकिन यह देखा जा रहा है कि यह परियोजना इस मायने में सफल होती दिखाई दे रही है कि विदेशी लोग भारत में निवेश करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। रोजगार उत्पन्न करने के लिए इस योजना की सफलता जरूरी है। हमारी अर्थव्यवस्था में सेवा सेक्टर का प्रभाव बढ़ गया है, जबकि मैन्युफैक्चर सेक्टर लगातार पिछड़ता जा रहा है। ज्यादा से ज्यादा रोजगार यही सेक्टर दिला सकता है। जाहिर है, साल 2016 की एक सबसे बड़ी चुनौती मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का विकास करना है। देश की अर्थव्यवस्था का भविष्य बहुत हद तक इसके विकास पर निर्भर करता है।

विदेशी निवेश तो बढ़ रहे हैं, लेकिन हमारा निर्यात क्षेत्र कमजोर पड़ रहा है। नवंबर तक के आंकड़ो से पता चलता है कि हमारी निर्यात आय में 20 फीसदी की कमी आ गई है। यह बहुत ही चैंकाने वाली खबर है। ग्लोबलाइजेशन के द्वारा हमे आयात ही नहीं, बल्कि निर्यात भी बढ़ाने हैं। निर्यात सेक्टर को मजबूत रखकर ही हम आयात को भी सुनिश्चित कर सकते हैं। यह तो अच्छी बात है कि कच्चे तेल और उसके उत्पादांे की कीमत गिरी हुई है, जिसके कारण हमारा भुगतान संतुलन बहुत ज्यादा खराब नहीं हुआ है, लेकिन तेल की कीमतें कबतक कम रहती हैं, यह भारत की इच्छा पर निर्भर नहीं रहता। इसलिए हमें तेल की कीमतों के बढ़ने की स्थिति का सामना करने को भी तैयार रहना होगा, वैसे अगले साल भी तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें दबी रहने के ही आसार हैं। (संवाद)