लेकिन दोनों दोषी मंत्री यह सोच रहे होंगे कि आखिर उन्होंने गलत क्या किया। केन्द्रीय श्रम मंत्री बंडारु दत्तात्रेय ने केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को एक पत्र लिखा। वह एक हाई स्कूल की एक लड़की को लिखा गया पत्र था, क्योंकि सुश्री ईरानी ने हाई स्कूल से ऊपर की शिक्षा हासिल नहीं की है। उन्होंने अपने पत्र में अम्बेडकर छात्र एसोसिएशन की शिकायत करते हुए कहा कि हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय जातिवादियों, उग्रवादियों और राष्ट्रविरोधियों का गढ़ बना हुआ है। वैसा पत्र लिखकर उन्होंने यह महसूस किया होगा कि वे सिर्फ अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।

स्मृति ईरानी को भी यही लगा होगा कि बंडारु के पत्र को विश्वविद्यालय को अग्रसारित कर वह भी अपने कर्तव्य का पालन कर रही हैं। जब उन्हें लगा कि कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है और कोई जवाब नहीं आ रहा है, तो उन्होंने विश्वविद्यालय के वीसी को एक के बाद एक चिट्ठियां लिखनी शुरू की दी और पूछने लगीं कि उनकी चिट्ठियों पर क्या कार्रवाई की गईं। ऐसा करते हुए उन्हें लग रहा होगा कि वे सिर्फ अपने कर्तव्य का पालन कर रही हैं।

बंडारु और स्मृति को लग रहा होगा कि चिट्ठियां लिखना उनका फर्ज है, क्योंकि रोहित और उसके संगठन अंबेडकर छात्र एसोसिएशन के कुछ अन्य छात्रों ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कुछ छात्रों के साथ मारपीट में शामिल थे।

अब चूंकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद भारतीय जनता पार्टी की छात्र शाखा है, इसलिए यदि उसके बच्चों पर अंबेडकर छात्र एसोसिएशन या कोई अन्य संगठन का छात्र हमला करे, तो सत्ताधारी भाजपा के लोग अपने बच्चों को बचाने के लिए अपने को कृतसंकल्प समझेंगे ही। इसके अलावा वह संघर्ष भी एक बड़े मसले पर था। अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के छात्र याकूब मेमन को फांसी दिए जाने का विरोध कर रहे थे। उसी मसले पर दोनों संगठनों के छात्रों के बीच झगड़ा हुआ था। इसलिए रोहित वेमुला और उसके दोस्तों को तुरंत राष्ट्रविरोधियों की श्रेणी में डाल दिया गया।

यही कारण है कि भाजपा के दोनों मंत्री उन दोनों के खिलाफ छाती पीटते दिखाई पड़े। भारतीय जनता पार्टी के नेतागण तो यह कहकर छाती पीट रहे थे कि रोहित आतंकवाद का समर्थन कर रहा था और इसके कारण ही छात्रों के दोनों गुटों में झगड़ा हुआ था।

लेकिन इस घटना का संदर्भ कुछ और है। इसका संदर्भ यह है कि सत्ता में आने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने देश भर में असहिष्णुता का माहौल खड़ा कर दिया है। जो भी उनके खिलाफ रहता है, उसे वे देशद्रोही करार देते हैं। अपने विरोधियों में डर पैदा करना उनका एजेंडा हो गया है। 1990 से वे ऐसा ही कर रहे हैं। कभी चर्च पर हमला करते हैं, तो कभी मस्जिदों पर हमला करते हैं। उन्होंने पेंटर एम एफ हुसैन पर भी हमला किया था। पिछले कुछ महीनों मंे कलबुर्गी, डभोलकर और गोविन्द पनसरे जैसे लोगांे की भी हत्या उसी माहौल की देन है। (संवाद)