दिल्ली के राष्ट्रमंडल खेलों के भ्रष्टाचार पर चुप्पी साध लेने के कारण दिल्ली में भाजपा की पराजय हुई। वह पराजय कोई छोटी मोटी पराजय नहीं हुई थी। 70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली मे मात्र 3 पर ही भाजपा के उम्मीदवार जीत पाए थ। उस हार के बाद 2014 के लोकसभा के जनादेश केा फिर से प्रधानमंत्री को पढ़ना चाहिए था और उन्हें समझ लेना चाहिए था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को गुस्सा बरकरार है और जब कभी उसे भ्रष्टाचार मिटाने वाला एक बेहतर विकल्प दिखाई देगाए वे उसी को जीत दिलाएंगे। दिल्ली की हार को ध्यान मे रखते हुए उसे बिहार चुनाव के ठीक पहले भ्रष्टाचार का आरोप झेल रही सुषमा स्वराज को हटाना चाहिए था।

लेकिन प्रधानमंत्री ने सुषमा स्वराज के भ्रष्टाचार के मामले पर मुह खोला ही नहीं। इसके कारण बिहार चुनाव में भ्रष्टाचार को मसला बनाकर भारतीय जनता पार्टी जीत ही नहीं सकती थी, जबकि उसके सामने भ्रष्टाचार के मामले में सजा पाए हुए लालू यादव खड़े थे। चुनाव प्रचार के दौरान अमितशाह और नरेन्द्र मोदी ने लालू के भ्रष्टाचार की जितनी चर्चा की, लोगों के बीच मे ंउन दोनो का उतना ही मजाक बना, क्योंकि सुषमा स्वराज के मसले पर नरेन्द्र मेादी का रवैया लोगो के सामने था।

भ्रष्टाचार तो बिहार में मुद्दा बना ही नहीं, लेकिन नरेन्द्र मोदी की एक और छवि जिसके कारण भाजपा केा लोकसभा चुनाव में बहुमत मिला था, को लालू और नीतीश कमजोर कर रहे थे। चाय वाले ओबीसी के बेटा वाली छवि को तार तार करने में लालू और नीतीश का साथ संघ प्रमुख मोहन भागवत एक बयान दे रहा था जिसमें उन्होंने कहा था कि आरक्षण की समीक्षा की जानी चाहिए। नरेन्द्र मोदी लंबे समय तक उस मसले पर चुप्पी साधे रहे और जब दो चरणों के मतदान में उन्हें अपनी लुटिया डूबती दिखाई पड़ी, तो आरक्षण बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाने लगे। हारते हारते अपनी जान की बाज लगाने के जुमले का थोड़ा लाभ भाजपा को जरूर मिला। यदि वह जुमला प्रधानमंत्री ने नहीं आजमाया होता, तो दिल्ली वाली हालत उसकी बिहार में हो जाती और तब शायद उसकी सीटें बिहार की 243 में से मात्र 15 से 20 सीटों तक ही सीमित रह जाती।

भ्रष्टाचार के मसले पर उदार दृष्टिकोण रखकर प्रधानमंत्री ने उन लोगों को निश्चय ही निराश किया है, जो उनसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद करते थे। और रोहित वेमुला के मसले पर उन्होंने जो रवैया अपनाया है, वह उनके व्यक्तित्व को और भी दारुण बना देता है। एक दलित ने विश्वविद्यालय, मानवा संसाधन मंत्रालय और संघ परिवार की साजिश का शिकार होकर सबको माफ करते हुए आत्महत्या कर ली। पूरा देश हिल उठा और उनकी पार्टी के लोग उस युवक को शराबी, कबाबी, देश द्रोही और पता नहीं क्या क्या साबित करते रहे। वे भूल गए कि चुनाव जीतने के लिए नरेन्द्र मोदी को अत्यंत पिछड़ा, नीच जाति और चायवाले का अपना रूप लोगों के सामने पेश करना पड़ा था।

नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से दिल्ली की हार से कोई सबक नहीं ली, उसी तरह उन्होंने बिहार की हार से भी कोई सबक नहीं ली। बिहार में उनकी पार्टी एक जीतता हुआ चुनाव सिर्फ इसीलिए हार गई थी, क्योंकि लालू और नीतीश ने मोहन भागवत के एक बयान के हवाले से भाजपा को आरक्षण विरोधी साबित कर दिया था। यदि मोदीजी ने सबक ली होती, तो रोहित वेमुला की मौत पर वे लंबे समय तक चुप्पी नहीं साधे रहते और जो कोई भी उसकी मौत के लिए जिम्मेदार था, उसके खिलाफ कार्रवाई करते। कुछ दिनों के बाद उनका मुह खुला भी तो विधवा विलाप करते हुए। भावुक होकर रुंधे गले से रोहित वेमुला की मौत पर अफसोस जताना तब लोगों को अच्छा दिखता, जब प्रधानमंत्री उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर दिए होते, जिन्होने उसे मरने को विवश कर दिया था। मोदी जी के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक तथ्य यह है कि जिस हारी हुई स्मृति को उन्होंने मानव संसाधन मंत्री बनाया, उनके द्वारा विश्वविद्यालय को एक के बाद एक भेजी गई 5 चिट्ठियों ने ही वेमुला का काम तमाम किया। उनका एक इशारा ही स्मृति ईरानी को उनके पद से हटाने के लिए काफी है, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।

स्मृति ईरानी को राजनैतिक रूप से प्रमोट करने का एक कारण यह माना जाता है कि नरेन्द्र मोदी अमेठी में राहुल गांधी को अगले लोकसभा चुनाव में हराना चाहते हैं। लेकिन रोहित वेमुला की हत्या के बाद जो राजनीति पलटी खा रही है, उससे तो यही लगता है कि स्मृति ईरानी के वे 5 लेटर बम राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद की ओर पहुचाने का सबब बन रहे हैं। भूमि अधिग्रहण कानून के मसले पर राहुल गांधी पहले से ही नरेन्द्र मोदी पर भारी पड़ चुके हैं। सूट बूट की सरकार के जुमले को बार बार दुहराकर राहुल मोदी जी की चाय वाले की छवि तार तार कर रहे हैं। इधर पूरी भाजपा रोहित वेमुला को दलित की जगह ओबीसी साबित करने में लगी हुई है, मानो ओबीसी का उत्पीड़न करना उनका धर्म हो और उनको तो ओबीसी वोट चाहिए ही नहीं। रोहित के मसले पर राजनीति कर राहुल लगातार अपने को दलितों और ओबीसी के दिमाग में स्थापित करने का काम कर रहे हैं, तो वहीं मोदी जी की पार्टी और उनका संघ परिवार रोहित का चरित्र हनन कर उन्हें (नरेन्द्र मोदी को) दलितों और ओबीसी के दिमाग से उतारने का काम कर रहे हैं। (संवाद)