केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी के खिलाफ एक अदालत ने मुकदमा दायर करने को कहा, हालांकि ऊपरी अदालत ने इस मामले में उन्हें थोड़ी राहत दे दी है। उसके बावजूद वे अपने पद पर बने हुए हैं और कांग्रेस आलाकमान को उनके पद पर बने रहने के लिए कोई एतराज भी नहीं है।

चांडी कह रहे हैं कि सोलर पैनल घोटाले में उनके खिलाफ अभी तक कुछ भी साबित नहीं हुआ है। उनके उस बयान पर अब एक आम भारतीय को आश्चर्य नहीं होता है, क्योंकि हमें पता है कि राजनीतिज्ञों को सत्ता का लोभ इतना ज्यादा है कि उसके आगे वे कुछ देख ही नहीं पाते। जब तक वे सत्ता से चिपके रह सकते हैं, तबतक वे उससे चिपके रहते हैं। अदालती प्रक्रिया बहुत ही सुस्त है। इसे देखते हुए हम कह सकते हैं कि आगामी विधानसभा के चुनाव के नतीजे तक चांडी अपने पद पर बने रहेंगे।

लेकिन इससे भी आश्चर्यजनक उनकी वह कोशिश है, जिसके तहत वे उन लोगों को फिर से अपनी सराकर में लाने की कोशिश कर रहे हैं, जो भ्रष्टाचार के मुकदमे चलने के कारण सरकार से बाहर हो गए हैं। उनमें से एक तो उनकी पार्टी के ही के बाबू हैं, जो कभी उत्पाद मंत्री हुआ करते थे। दूसरे व्यक्ति हैं के एम मणि, जो लंबे जद्दोजहद के बाद भ्रष्टाचार के मुकदमे का सामना करते हुए वित्तमंत्री के पद से हटाए गए थे। मणि को कुख्यात बार घूसखांड में आरोपित होने के बाद हटाया गया था।

चांडी को लगता है कि भ्रष्टाचार के मुकदमों का सामना करने वाले अन्य लोग भी उनके साथ खड़े हो गए, तो आने वाले चुनाव में वे विपक्ष की चुनौतियों का बहादुरी के साथ सामना कर सकेंगे। हालांकि इसमें पूरा संदेह है कि भ्रष्टाचार के ओराप मे ंमुकदमा का सामना कर रहे लोगों के एक साथ मिल जाने से सत्तारूढ़ यूडीएफ का काम आसान हो जाएगा और वे विपक्षी एलडीएफ की चुनौती का सामना करने में अपने को सक्षम पाएगा।

यूडीएफ और एलडीएफ के बीच मतों का अंतर पिछले विधानसभा चुनाव में बहुत कम था। करीब सवा 46 फीसदी मत विजयी यूडीएफ को मिल थे, जबकि एलडीएफ को साढ़े 45 फीसदी से ज्यादा मत मिले थे। यूडीएफ को 140 सदस्यों वाली विधानसभा में 72 सीटें मिली थीं, जबकि एलडीएफ को 68 सीटें मिली थीं।

लेकिन पिछले स्थानीय निकायों के चुनावों में बाजी पलट चुकी है। उसमें एलडीएफ को यूडीएफ के ऊपर भारी बढ़त मिली थी। यदि मिले वोटों को विधानसभा क्षेत्रों के अनुसार देखा जाय, तो 84 विधानसभा क्षेत्रों मंे एलडीएफ को यूडीएफ से ज्यादा वोट मिले थे। इसके अलावा पिछले 4 दशकों से यह परंपरा बनी हुई है कि एक बार वहां यूडीएफ की सरकार बनती है, दूसरी बार एलडीएफ की। इस बार एलडीएफ की बारी है। इसलिए वैसे भी यूडीएफ की स्थिति डगमग है।

कांग्रेस को इस बात का एहसास नहीं है कि उसने विपक्षी मोर्चे की जीत आसान कर दी हैं। लगता है कि उसने लोकसभा चुनाव की हार से कोई सबक नहीं सीखा है। उस चुनाव मे ंकांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की हार का एक मात्र कारण भ्रष्टाचार के मसले पर उसके द्वारा अपनाया गया रवैया था। वही रवैया एक बार फिर वह केरल में अपना रही है और अपनी करारी हार की पृष्ठभूमि तैयार कर रही है। (संवाद)