महबूबा ने प्रदेश के राज्यपाल के साथ 45 मिनट की मुलाकात में बहुत सारे बातें स्पष्ट कर दीं। उन्होंने कह दिया कि यदि दिल्ली से कोई ठोस आॅफर नहीं मिलता है, तो सरकार का गठन करना उनके लिए आसान नहीं होगा। उन्होंने गंेद अब केन्द्र के पाले में डाल दी है। उन्होने साफ कर दिया कि वे उस तरह का खतरा मोल नहीं ले सकती हैं, जिस तरह का खतरा उनके पिता ने लिया। भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर उन्होंने अपनी राजनीति ही दांव पर लगा दी थी, लेकिन केन्द्र सरकार अपने वायदों पर अमल नहीं कर रही थी। अब स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जम्मू और कश्मीर के लिए फिर से सोचना पड़ेगा। सारे विवादों में अपने पक्ष से उन्हें पीछे हटना पड़ेगा। उन्हें आश्वासन देना होगा कि उनकी पार्टी के नेता भड़काऊ बयान नहीं देंगे। झंडे को लेकर पीडीपी की मांग उन्हें स्वीकारनी होगी, जिसके तहत तिरंगे झंडे के साथ ही प्रदेश के झंडे को भी प्रदेश में समान सम्मान देना होगा। केन्द्र को धारा 370 की स्वीकृति पर भी अपनी मुहर लगानी होगी। गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी हमेशा से संविधान की धारा 370 को समाप्त करनी की मांग करती रही है। वैसी हालत में मोदी सरकार द्वारा धारा 370 का समर्थन करना लगभग असंभव होगा।
महबूबा ने साफ साफ यह स्वीकार किया है कि वह अपने पिता जैसी नहीं हैं। उनके पास न तो अपने पिता जैसा अनुभव है और न ही दृष्टि और न ही लोगों का उतना समर्थन पाती है। वैसी हालत में उनके लिए अपने पिता के कदमों पर चलना आसान नहीं है। वे कहती हैं कि मुफ्ती साहब ने कहा था कि उन्होंने नरेन्द्र मोदी के साथ समझौता नहीं किया है, बल्कि देश के उन करोड़ों लोगों के साथ समझौता किया है, जिन्होंने नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाया।
दूसरी तरफ भाजपा ने घोषणा की है कि वह गठबंधन के पक्ष में है और पीडीपी के साथ मिलकर सरकार चलाना चाहती है। उसने 10 दिन का समय मांगा है और उसके बाद वह अपनी स्थिति और भी स्पष्ट करेगी। उसने कहा है कि पहले पीडीपी को अपने विधायक दल का नेता चुनना चाहिए और उसके बाद राज्यपाल से सरकार बनाने का दावा ठोंकना चाहिए। उसके बाद ही उसकी भूमिका शुरू होगी।
पिछले विधानसभा चुनाव ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि गठबंधन बन पाना भी मुश्किल हो रहा है। पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन उसके पास सिर्फ 27 सीटें ही हैं, जबकि बहुमत के लिए 44 सीटें चाहिए। शेष 18 सीटों का इंतजात सिर्फ भाजपा के साथ मिलकर ही कर सकती हैं, क्योंकि नेशनल कान्फ्रेंस के साथ उसका गठबंधन हो ही नहीं सकता और कांगेस के साथ मिलकर उसका बहुमत नहीं होता।
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी सिर्फ पीडीपी के साथ मिलकर ही सरकार बना सकती है, क्योंकि कांग्रेस उसके साथ कभी हाथ मिला ही नहीं सकती और नेशनल कान्फ्रेंस के पास इतनी सीटें नहीं हैं कि उसके साथ वह 44 के आंकड़े पर पहुंच सके।
पीडीपी और भारतीय जनता पार्टी में वैचारिक स्तर पर एक दूसरे के साथ असहज महसूस कर रही है। ऐसी स्थिति में भ्रम की स्थिति बनी हुई है और सरकार का गठन कठिन साबित हो रहा है। (संवाद)
महबूबा मु्फ्ती भाजपा पर आक्रामक हुई
पार्टी का आधार बचाना उनकी पहली प्राथमिकता
हरिहर स्वरूप - 2016-02-08 10:48
भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन कर सरकार के गठन में महबूबा मुफ्ती विलंब क्यों कर रही है? यदि वह भाजपा के साथ मिलकर जम्मू और कश्मीर मे अपनी सरकार बनाती है, तो उसके सामने कश्मीर घाटी में अपना जनाधार खोने का खतरा है। मुफ्ती मोहम्मद सईद एक अनुभवी नेता थे और उनकी शख्सियत बहुत बड़ी थी, इसलिए वे इस अंतर्विरोध को बर्दाश्त कर सकते थे। लेकिन महबूबा मुफ्ती में वह काबिलियत नहीं है। यदि महबूबा सरकार बनाने में विफल रही, तो प्रदेश मंे फिर से नया चुनाव हो सकता हैं। और यह उनके लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी पार्टी घाटी में अपना जनाधार तेजी से खो रही है। जनाधार खोने का एकमात्र कारण भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर मुफ्ती मोहम्मद का सरकार बनाना था।