असम में पार्टी ने अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार तय कर दिया है। पश्चिम बंगाल में पार्टी नरेन्द्र मोदी पर कम निर्भर रहेगी और स्थानीय नेताओं को ज्यादा महत्व दिया जाएगा। तमिलनाडु और केरल में भी पार्टी वही नीति अपनाएगी। यानी केन्द्रीय नेताओं की भूमिका कम रहेगी और स्थानीय नेताओं की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण होगी।
भारतीय जनता पार्टी के राजग में सहयोगी दल अब अपने आपको ज्यादा मजबूत समझ रहे हैं और वे भाजपा से सौदेबाजी भी करने लगे हैं। इसका कारण है कि भारतीय जनता पार्टी की जीत की क्षमता कम हो गई हैं नरेन्द्र मोदी का जादू उतार पर है।
लेकिन मोदी की पराजय के साथ और कुछ बड़े संदेश भी जा रहे हैं। जब मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई, तो लग रहा था कि उसकी सरकार आने वाले चुनावों के बाद भी बनी रहेगी। लग रहा था कि नरेन्द्र मोदी कुछ ऐसा करते रहेंगे कि भारतीय जनता पार्टी आगे भी जीतती रहेगी।
सिंगल पार्टी के सत्ता में आने के बाद लग रहा था कि गठबंधन सरकारो के दिन लद चुके हैं और पूर्ण बहुमत पाकर एक पार्टी आने वाले कुछ चुनावों के बाद भी सरकार चलाएगी। लेकिन मोदी सरकार के गठन के 20 महीनों के बाद अब ऐसा नहीं लग रहा है। सच तो यह है कि पूर्ण बहुमत पाकर भी मोदी की सरकार वह नहीं कर पा रही है, जिसकी उससे उम्मीद की जा रही थी। जाहिर है कि लोकसभा में पूर्ण बहुमत पा लेने मात्र से ही गठबंधन के दौर की अस्थिरता समाप्त नहीं हुई है।
मोदी के अपरोजय होने के मिथ के ध्वस्त होने के साथ ही राजग में भाजपा के सहयोगी अब अपनी ताकत दिखाने लगे हैं। वे अपनी शिकायतों को स्वर देने लगे हैं। उनकी एक बड़ी शिकायत तो यह है कि केन्द्र सरकार अपने निर्णयों में उनका साथ नहीं लेती। इस तरह की शिकायत आंघ्र प्रदेश के चन्द्रबाबू नायडू भी कर रहे हैं और पंजाब के प्रकाश सिंह बादल भी। शिवसेना की तो बात की क्या करना, वह तो पहले से ही जब तब भाजपा के खिलाफ अपने असंतोष का इजहार करती रहती है। हालांकि उसने अपनी बार्गेनिंग और बढ़ा दी है। उसके नेता तो यह कहने लगे हैं कि उन्हें कभी कभी लगता है कि केन्द्र की सरकार में वे शामिल हैं ही नहीं और केन्द्र की सरकार उनकी सरकार है ही नहीं।
रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद भाजपा के सहयोगी आरपीआई ने भी उसकी आलोचना की रामविलास पासवान तक ने वेमुला की आत्महत्या की जांच की सीबीआई से कराने की मांग कर दी।
भाजपा के सहयोगी दल उससे नाराज हैं और वे अपनी अपनी नाराजगी को स्वर भी देने लगे हैं और इसकी माहौल में बजट का सत्र शुरू हो रहा है। भाजपा का अपने सहयोगी दलों को अपने साथ विश्वास में बनाए रखने की जरूरत महसूस हो रही होगी, क्योंकि भले ही वह लोकसभा में बहुमत है, लेकिन राज्यसभा में वह भारी अल्पमत में है। (संवाद)
टूट चुका है मोदी के अपराजेय होने का मिथ
लोकतंत्र में जनादेश की भी एक सीमा होती है
हरिहर स्वरूप - 2016-02-15 11:39
नरेन्द्र मोदी अपराजेय हैं, यह मिथ ध्वस्त हो चुका है। पहले दिल्ली में उनकी करारी हार हुई और उसके बाद बिहार में भी वे बुरी तरह हारे। अब केन्द्र का बजट सत्र आ रहा है और उसके ठीक पहले जो कुछ हो रहा है, वह मोदी सरकार के लिए अपशकुन जैसा ही है। इस साल 5 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव हो रहे हैं। दिल्ली और बिहार की हार को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्द्र मोदी को लेकर अपनी रणनीति बदल डाली है।