और उस दौरान नरेन्द्र मोदी चुप रहे। उनकी से यह संदेश जा रहा है कि उन्हें न तो दलितों की परवाह है और न ही गरीबों की। यदि इस तरह का संदेश उनके बारे में जाएगा, तो फिर उनके चायवाले ओबीसी की छवि कबतक बरकरार रहेगी। उनकी यह छवि आने वाले दिनों में भी भारतीय जनता पार्टी को वोट दिलाने वाला जरिया है और यदि यह छवि लगातार धूमिल होती गई, तो पार्टी की जीत की संभावना भी लगातार धूमिल होती जाएगी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठन एक गलत मुगालता पाल रहे हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी जीत हुई है। सच तो यह है कि यह जीत न तो उनकी विचारधारा की थी और न ही उनकी। यह विशुद्ध रूप से नरेन्द्र मोदी की एक खास छवि की जीत थी। एक छवि तो विकास पुरुष की थी। उनकी दूसरी छवि एक गृहत्यागी नेता की थी, जो परिवार से मुक्त होने के कारण भ्रष्ट नहीं हो सकता। भ्रष्टाचार देश में बहुत ही गहरी जडें जमा चुका है और भारत का एक औसत व्यक्ति इससे छुटकारा चाहता है। अन्ना हजारे के नेतृत्व मे आजादी के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ ही हुआ, जिसके कारण सत्ताघारी कांग्रेस की चूलें हिल गई, क्योंकि उसने इस आंदोलन के प्रति अच्छा रुख नहीं अपनाया। उस माहौल में लोगों को लगा कि नरेन्द्र मोदी एक ऐसा नेता हो सकते हैं, जो देश को भ्रष्टाचार की बीमारी से छुटकारा नहीं तो राहत तो दिला ही सकते हैं।

विकास और भ्रष्ट न हो पाने वाली छवि के साथ साथ नरेन्द्र मोदी के पास एक ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि थी, जिसके कारण देश के गरीब और पिछड़े वर्गों के लोगों में उनके प्रति एक खास लगाव बना। उनके पिता चाय की दुकान चलाते थे और बचपन में वे अपने पिता की दुकान चलाने में सहयोग भी करते थे। इसलिए उनकी छवि एक गरीब चायवाले की भी बनी। वे पिछड़े वर्गो की उस जाति से आते हैं, जो देश की जाति व्यवस्था के सोपान में बहुत ही नीचे है। वह जाति कहीं एससी है, तो कहीं ओबीसी। इसके कारण जाति की राजनीति से प्रभावित हमारे लोकतंत्र में नरेन्द्र मोदी के नाम से वोटों की बारिश हुई।

इन छवियों के अलावा देश और विदेशों मंे बसे धनी गुजरातियों का आर्थिक सहयोग पाने की मोदी की क्षमता एक अतिरिक्त कारण था, जिसके कारण लोकसभा चुनाव के पहले एक परफेक्ट प्रधानमंत्री उम्मीदवार बन सके और अपनी भाषण कला का इस्तेमाल कर उन्होंने देश की एक बड़ी आबादी के दिल में अपनी जगह बना ली। भाजपा का जीत इसके कारण ही मिली। यदि उसने नरेन्द्र मोदी की जगह किसी और को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया होता, तो उसे 100 से भी ज्यादा लोकसभा की सीटें हासिल नहीं होती।

पर चुनाव जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी और उसके पारिवारिक संगठनों को लगा कि देश की जनता ने उनकी विचारधार को अपनी सहमति दे दी है। उन्हें लगने लगा कि जीत उनकी हुई है और वे पूरे तंत्र पर अपना कब्जा करके ही रहेंगे और जिस विचारधारा को देश की 5 फीसदी आबादी का समर्थन प्राप्त नहीं है, उसे वे देश की विचारधारा बनाने की कोशिश करने लगे।

अपनी विचारधारा का प्रचार प्रसार करना गलत नहीं है। यदि आप सत्ता में हैं, तो सत्ता का इस्तेमाल करने से भी आपको कोई रोक नहीं सकता, लेकिन वह लोकतंत्र के दायरे में रहकर ही हो सकता है, लेकिन जब आप झूठ और फरेब का सहारा लेने लगेंगे और सत्ता का इस्तेमाल कर दूसरी विचारधाराओं के खिलाफ जंग छेड़ देंगे, तो फिर आपके सामने कोई रोहित बेमुला और कोई कन्हैया कुमार आ जाएगा। और फिर जब आपकी विचारधारा का वह रूप सामने आने लगेगा, जिसके बारे में लोग सुनते थे, लेकिन विश्वास नहीं करते थे, तो फिर आपकी क्या गति होगी, वह वर्तमान घटनाक्रम में आप देख सकते हैं।

रोहित और कन्हैया के मामलों ने मोदी सरकार से कुछ बेहतर की अपेक्षा करने वाले लोगों को उनके खिलाफ खड़ा कर दिया है। रोहित की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की जगह मोदी उसकी मौत पर रोते हैं, इससे उनका कमजोर व्यक्तित्व सामने आता है, जो प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। इससे लगता है कि वे दलितों और कमजारे वर्गो के लोगों के प्रति लगाव तो रखते हैं, लेकिन उनके हितों की रक्षा करने में असमर्थ हैं। और इससे पता चलता है कि वे अपनी पार्टी और अपने आरएसएस के सामने लाचार हैं। अब चूंकि लोगों ने उनके नाम पर भाजपा उम्मीदवारों को वोट दिया था न कि आरएसएस के कारण, इसलिए लोग उनसे निराश हो रहे हैं।

भारत में जो कुछ भी हो रहा है, उससे आखिरकार सत्तारूढ़ संगठन का ही नुकसान होना है। उसके लोग अपनी एक झूठी दुनिया में जी रहे हैं और उन्हें लग रहा है कि खुद को राष्ट्रवादी कहने से लोग उनको राष्ट्रवादी कहने से लोग उनको राष्ट्रवादी मान लेंगे और जिन्हें वे देशद्रोही कहेंगे, उन्हें देशद्रोही मान लेंगे। यह सच है कि देश में लोकतांत्रिक संस्थाओं का बहुत पतन हो गया है, लेकिन अभी भी उनमें इतनी जान है कि हुड़दंग की राजनीति को वह देश में हावी होने से रोक सकते हैं। (संवाद)