जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 9 अक्टूबर को वहां के कुछ छात्रों ने अफजल गुरू को फांसी देने की बरसी मनाते हुए एक सभा का आयोजन किया था। उसमें कुछ लोगों ने भारत विरोधी नारे लगा दिए। आरोप लगाया गया कि वे नारे वहां के छात्रों ने ही लगाए थे। उस आरोप में जवाहरलाल नेहरू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर देशद्रोह का आरोप लगा दिया गया। कहा गया कि जो कार्यक्रम हो रहा था, उसे उन्होंने ही आयोजित किया था।

देश विरोधी नारा लगाया जाना निंदनीय है और वैसे लोगों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए, लेकिन उसके लिए किसी को भी पकड़ लेना गलत है। कन्हैया को यह कहते हुए गिरफ्तार किया गया कि वह नारा लगा रहा था। यह बात गलत साबित हो गई है। पुलिस के पास ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिसके बूते वह यह कह सके कि वह भी भारत विरोधी नारा लगा रहा था। अब तो यह भी स्पष्ट हो गया है कि वह उस कार्यक्रम के आयोजकों में शामिल भी नहीं था।

कन्हैया के एक भाषण को एक अंग्रेजी अखबार ने छापा है, जिसमें वह साफ साफ देश विरोधी नारे लगाने वालों की निंदा कर रहा है। वह किसी भी प्रकार की हिंसा को गलत बता रहा है और किसी भी प्रकार की देश विरोधी हरकत से छात्रों को अलग रहने के लिए कह रहा है। उसका कहना है कि भारत विरोधी नारे बाहर से आए हुए लोग लगा रहे थे।

अब आप अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नारों की ओर ध्यान दीजिए। वे कम्युनिस्टों को कुत्ते कह रहे हैं। वे उन्हें अफजल के पिल्ले बता रहे हैं। वे उन्हें जिहादियों के बच्चे कह रहे हैं।

भारत के प्रसिद्ध न्यायवेत्ता सोली सोराबजी ने कहा है कि कन्हैया कुमार पर देश द्रोह का आरोप लगाना दुर्भाग्यपूर्ण और निन्दनीय है। एफ एस नरीमन का भी यही मत है।

इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा आपत्तिजनक गृहमंत्री राजनाथ सिंह का वह बयान है, जिसमें उन्होंने कह दिया कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में लगाए गए उन नारों के पीछे हफीज मोहम्मद सईद का हाथ है। गृहमंत्री के पास देश की सभी खुफिया सूचनाएं होती है, लेकिन वह कह रहे थे कि उनका वैसा मानने के पीछे एक ट्विट है, जो कथित रूप से हफीज सईद का है। लेकिन उसके पहले ही यह स्पष्ट हो चुका था कि वह ट्विट सईद का नहीं था, बल्कि किसी ने उसके नाम से एक फर्जी प्रोफाइल बना रखी थी।

कन्हैया भारतीय जनता पार्टी के दोहरे चरित्र का पर्दाफाश कर देता है। यह कहकर कन्हैया को भारतीय जनता पार्टी देशद्रोही करार देती है कि अफजल गुरू के समर्थकों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में वह शामिल था, लेकिन दूसरी ओर वह खुद अफजग गुरू को शहीद मानने वाली कश्मीर की पीडीपी के साथ सरकार बना चुकी है और जिस समय कन्हैया को देशद्रोही कहा जा रहा था, उसी समय अफजल गुरू की फांसी का विरोध करने वाली महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिशों में भारतीय जनता पार्टी लगी हुई थी। (संवाद)