इस आंदोलन ने 1990 के मंडल आंदोलन की याद दिला दी, हालांकि वह आंदोलन भी इस तरह का विनाशकारी आंदोलन नहीं था। मंडल आंदोलन की तरह ही इसका संबंध आरक्षण से था।
हरियाणा के जाट अपने लिए ओबीसी कैटेगिरी में आरक्षण की मांग कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव के पहले उसे यह आरक्षण मिल भी गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके आरक्षण को अवैध और असंवैधानिक करार दिया था।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें आरक्षण देने के निर्णय को अवैध घोषित कर दिए जाने के बाद भी वे आंदोलन पर उतारु हो गए। सच तो यह है कि मोदी सरकार के गठन के बाद अनेक मजबूत जातियां आरक्षण की मांग करती हुई आंदोलन कर रही हैं, जबकि संवैधानिक प्रावधानों के तहत वे आरक्षण की हकदार नहीं हैं।
कुछ समय पहले गुजरात में पटेलों का आरक्षण हुआ। प्रदेश के वे सबसे सशक्त और समृद्ध समुदाल है। उसके बावजूद वे आरक्षण मांग रहे हैं। हार्दिक पटेल के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन वे कर चुके हैं। इस समय हार्दिक पटेल देशद्रोह के मुकदमे में जेल में हैं, लेकिन आरक्षण की चिनगारी अभी वहां बुझी नहीं है।
गुजरात के आरक्षण आंदोलन के बाद आंध्र प्रदेश मंे कापु समुदाय के लोगों ने भी आरक्षण पाने के लिए एक जबर्दस्त आंदोलन किया। महाराष्ट्र में मराठा भी इसी तरह की मांग कर रहे हैं। राजस्थान में गुर्जर अनुसूचित जनजाति में खुद को शामिल करने की लड़ाई लड़ रहे थे, जबकि वे ओबीसी में पहले से ही शामिल हैं। अब उन्हें एक विशेष समूह में डालकर राजस्थान सरकार ने उन्हें अलग से आरक्षण दे दिया है और वे फिलहाल शांत हैं, लेकिन यदि अदालत ने उनके इस आरक्षण को फिर से निरस्त कर दिया, तो वे एक बार फिर आंदोलन कर सकते हैं।
सच कहा जाय, तो आरक्षण का आंदोलन देश के सामने एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। संविधान में आरक्षण कमजोर वर्गों के लिए दिया गया है, ताकि वे पिछड़ेपन से ऊपर उठ सकें और सशक्त जातियों के साथ उनकी जो गैरबराबरी है वह समाप्त या कम हो सके, लेकिन सशक्त जातियां खुद आरक्षण के लिए आंदोलन करने लगती हैं, जो बिल्कुल गलत है।
इसका एक कारण तो यह है कि जिन जातियों को आरक्षण मिल रहा है, उनमें से कुछ लोगों को ही उनका लाभ मिल रहा है और वे ही पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण का फायदा उठा रहे हैं। उन्हें देखकर सशक्त जातियों के लोगों को लगता है कि उनके जैसे सशक्त लोगों को आरक्षण जब मिल रहा है, तो फिर उन्हें क्यों नहीं मिलना चाहिए।
यही कारण है कि आज आरक्षण की समीक्षा किए जाने की जरूरत है और यह स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि जो जातियां आर्थिक रूप से कमजोर हैं, आरक्षण उनको ही मिलेगा और जो मजबूत और सशक्त हैं, उनके लिए आरक्षण नहीं है। कमजोर जातियों में भी जो कमजोर व्यक्ति हैं, उन्हें आरक्षण सुनिश्चित करवाया जाना चाहिए।
आरक्षण की आग में हरियाणा जल गया, लेकिन उसके लिए सिर्फ आरक्षण ही जिम्मेदार नहीं है। सच तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में सत्ता हासिल करने के बाद एक गैर जाट मनोहरलाल खट्टर को मुख्यमंत्री बना दिया, जिसे जाट समुदाय के लोग पचा नहीं पा रहे हैं। खुद खट्टर भी इस आंदोलन के लिए जिम्मेदार हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री बनने के बाद वे अपनी धाक प्रशासन पर जमा नहीं पाये। एक कुशल प्रशासक की भूमिका वे निभा नहीं पाए और जो खतरे मंडरा रहे थे, उसे वे समय रहते भांप नहीं पाये। यही कारण है कि हरियाणा में हिंसा का भारी तांडव हुआ और उसकी लपेट में दिल्ली भी आ गई। दिल्ली के एक बहुत बड़े हिस्से में भीषण जलसंकट पैदा हो गया, क्योंकि जिस नहर से दिल्ली को पानी मिलता था, उस नहर पर ही जाट आंदोलनकारियों ने कब्जा कर लिया थां
हरियाणा का आंदोलन फिलहाल शांत हो गया है और सरकार ने उन्हें विशेष पिछड़ा वर्ग के रूप में आरक्षण देने की घोषणा कर दी है। पर पूरी संभावना है कि उसे सुप्रीम कोर्ट निरस्त कर देगा और उसके बाद फिर आंदोलन हो सकता है। इसीलिए यह जरूरी है कि सरकार साफ साफ कह दे कि आरक्षण संवैधानिक प्रावधानों के तहत ही मिलेगा और गैर वाजिब आरक्षण की मांग करते हुए किए गए किसी भी आंदोलन को पूरी सख्ती के साथ दबा दिया जाएगा। (संवाद)
हरियाणा का जाट आंदोलन
मुख्यमंत्री खट्टर ने कर दी भारी गड़बड़ी
कल्याणी शंकर - 2016-02-26 12:37
हरियाणा के जाट आंदोलन ने न केवल एक प्रदेश को, बल्कि दिल्ली तक को हिला दिया। आरक्षण से आसपास के प्रदेश भी प्रभावित हुए। उसमें हजारों करोड़ रुपयों की सरकारी और गैरसरकारी संपत्ति का नुकसान हुआ और कम से कम 19 लोग उसमें मारे भी गए।