2014 में मिली अप्रत्याशित जीत ने भारतीय जनता पार्टी को भ्रम में डाल दिया था कि उसकी जीत उसके विरोधियों की कमजोरी के कारण नहीं, बल्कि उसकी अपनी मजबूती के कारण हुई थी। उसके इस भ्रम को तोड़ने का काम कुछ हद तक दिल्ली ने किया और बिहार के चुनाव ने भी उसे तोड़ने का काम जारी रखा। उन दोनों हारों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को लग रहा था कि अभी भी वह देश की सबसे मजबूत पार्टी है और देश के अनेक हिस्सों में अपराजेय है। लेकिन उसके इस विश्वास को बहुत बड़ा झटका विश्वविद्यालय के वाम उदारवादी सोच रखने वाले छात्रों ने दिया।

भारतीय जनता पार्टी उन छात्रों के सामने अपने आपको यदि असहाय पा रही है, तो उसका कारण यह है कि उसे यह लगता है कि वे वामपंथी और उदारवादी रुझान लगने वाले वे छात्र देशभक्ति की भावना से रहित हैं। एक कारण यह भी है कि उसे यह पता ही नहीं है कि बड़े विश्वविद्यालयों के छात्रों से वह कैसे पेश आए।

भारतीय जनता पार्टी के लोग संघ की शाखाओं मंे प्रशिक्षित हुए हैं और वहां उन्हें सिर्फ एक तरह की ही शिक्षा दी जाती है। इसके कारण वे दूर की सोच नहीं सकते। वे इस बात को पचा नहीं सकते कि विश्वविद्यालयों के बच्चों में अपने स्वतंत्र विचार जाहिर करने के प्रति एक बड़ा आग्रह रहता है। वे अपने पार्टनर को खुद चुनें और अपनी पसंद का खाएं, इसके प्रति उनका रुझान रहता है।

भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं ने तो बड़े विश्वविद्यालयों का माहौल ही कभी नहीं देखा। इसके कारण उन्हें शैक्षिक आजादी की अवधारणा की जानकारी तक नहीं है।

युवाओं का दिमाग विद्रोही का दिमाग होता है। वह विद्रोह करना जानता है। वैसे युवा दिमाग से कम और दिल से ज्यादा काम लेते हैं।

जो विश्वविद्यालयों में लंबे समय तक रहे हैं, वे ही उन्हें अच्छी तरह समझ सकते हैं।

लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेताओ को यह सारी बातें समझ नहीं आ सकती हैं। यही कारण है कि छात्रों को रास्ते पर लाने के लिए वह पुलिस बल का इस्तेमाल करती है और गुंडे प्रवृति वाले वकीलों का सहारा लेती है।

कुछ राज्यों में होने वाले चुनावों ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को अपने तरीके से प्रभावित कर रखा है। उन्हें लगता है कि राष्ट्रविरोध और राष्ट्रभक्ति का मुद्दा उठाकर वे उन चुनावों में जीत हासिल कर सकते हैं।

पर भाजपा की समस्या यह है कि उसने छात्रों को अपने निशाने पर लिया है, जो साधारण नहीं हैं, बल्कि बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उनमें से कन्हैया कुमार जैसे छात्र शामिल हैं। रोहित वेमुला भी बहुत प्रतिभासम्पन्न छात्र था। अब वह नहीं रहा, लेकिन उसकी स्मृति भारतीय जनता पार्टी को परेशान करती रहेगी।

कन्हैया कुमार भारतीय जनता पार्टी के लिए उसी तरह का सिरदर्द बन रहा है, जिस तरह का सिरदर्द कभी अरविंद केजरीवाल बने थे। कन्हैया की विश्वसनीयता भारतीय जनता पार्टी के किसी भी नेता की विश्वसनीयता से ज्यादा है। यही कारण है कि वाम मोर्चा ने उसे चुनावी मैदान में स्टार प्रचारक के रूप में उतारने का फैसला किया है।

भारतीय जनता पार्टी के पास कन्हैया की काट करने वाला कोई नेता नहीं है। नरेन्द्र मोदी अब अपना जादू खोते जा रहे हैं और मोटे अमितशाह अपने भाषणों से संघ के लोगों को ही मोहित करते हैं, उसके बाहर के लोगों पर उनके भाषणों का कोई असर नहीं पड़ता। (संवाद)