सच कहा जाय, तो वह गलती नहीं, बल्कि एक बहुत बड़ा हादसा होता। वह हादसा पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन का टिकट काट दिया जाना होता। पिछले दफा जब विधानसभा का चुनाव हो रहा था, तो उस समय भी केरल ईकाई ने अच्युतानंदन का टिकट काट दिया था, जबकि वे उस समय केरल के मुख्यमंत्री थे। बाद में केन्द्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप से वीएस को टिकट मिल पाया और पार्टी ने उन्हें ही मुख्यमंत्री उम्मीदवार पेश कर चुनाव का मुकाबला किया।

इस बार भी अच्युतानंदन का टिकट काटे जाने की पूरी तैयारी थी, लेकिन सीपीएम महासचिव सीताराम यचुरी के सामयिक हस्तक्षेप से यह हादसा होते होते टल गया।

सीताराम यचुरी ने साफ साफ कहा कि चुनाव जीतना उनकी पार्टी के लिए जीवन और मरण का सवाल है और यह चुनाव पूरी तरह एकजुट होकर लड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए सिर्फ वीएस अच्युतानंदन का चुनाव लड़ना ही जरूरी नहीं है, बल्कि जरूरी यह भी है कि वे चुनाव अभियान में पार्टी का नेतृत्व भी करें।

अच्युतानंदन के विरोधियों का मुह यह कहकर येचुरी ने बंद कर दिया कि वीएस की सहायता के बिना केरल का यह चुनाव पार्टी जीत ही नहीं सकती है। न तो प्रदेश सचिव के बालाकृष्णन और न ही पी विजयन इस बात की गारंटी दे सकते हैं कि बिना अच्युतानंदन के पार्टी यह चुनाव जीत ले।

वीएस ने येचुरी को कहा कि यदि पार्टी चुनाव के बाद उनकी कोई भूमिका नहीं चाहती है, तो वे चुनाव के पहले ही राजनीति से रिटायर हो जाना चाहेंगे। ऐसा कहकर उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे मुख्यमंत्री का पद एक बार और चाहते हैं। उनकी यह इच्छा पी विजयन और उनके साथियों के लिए कड़वी दवाई साबित हो रही है।

सीपीएम की केरल ईकाई को यह सच स्वीकार कर लेना चाहिए कि आज भी अच्युतानंदन प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। वाम लोकतांत्रिक मोर्चा के वे सबसे बड़े प्रचारक वे ही थे, वे ही हैं और वे ही रहेंगे, इस सच को स्वीकार कर लिए जाने की जरूरत है।

जब अच्युतानंदन ही लोगों के बीच में सबसे ज्यादा स्वीकार्य हैं, तो यह मानना गलत होगा कि वे पार्टी को सत्ता दिलाएंगे और किसी और को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार कर लेंगे।

अच्युतानंदन के पक्ष में एक और बात यह है कि उन्होंने ही भारतीय जनता पार्टी और सांप्रदायिकता के खिलाफ प्रदेश में पिछले दिनों सबसे बड़ा अभियान चलाया है। भारतीय जनता पार्टी द्वारा हिन्दुत्व के आक्रामक अभियान की यदि प्रदेश में किसी ने काट की है, तो वे अच्युतानंदन ही हैं। उनके कारण ही भाजपा का अभियान नाकाम हुआ है।

भाजपा क खिलाफ वह अभियान चुनाव के बाद भी जारी रखना होगा। यही कारण है कि वीएस के लिए यह जरूरी है कि वे नेतृत्व की भूमिका में बने रहें। जब सांप्रदायिकता अपना सिर उठा रही थी, तो कांग्रेस की भूमिका उसके खिलाफ बहुत कठोर नहीं थी और तब अच्युतानंदन ने ही कठोरता से उसका प्रतिरोध किया था। इसके कारण सीपीएम और वाम लोकतांत्रिक मोर्चा के के प्रति लोगों में विश्वास बढ़ा है।

पी विनयन के खिलाफ लवलीन केस फिर से खुल गया है। यह उनके खिलाफ जा रहा है। सीबीआई ने उन्हें क्लीन चिट तो दे दिया है, लेकिन अंतिम शब्द तो अदालत की ओर से ही आने हैं। इसे आने में दो या तीन महीने लगेंगे। यह दावे से नहीं कहा जा सकता है कि अदालत का फैसला भी विजयन के पक्ष में ही होगा।

इसलिए सीपीएम के लिए सबसे सही फैसला यह होगा कि पहले वह केरल विधानसभा का चुनाव जीते और उसके बाद वीएस को मुख्यमंत्री बना दे। उनकी उम्र बहुत ज्यादा हो गई है और यदि दो ढाई साल में पार्टी को लगे कि उम्र के कारण अच्युतानंदन को आराम कराया जाना चाहिए, तब फिर उनकी जगह विजयन या किसी और को मुख्यमंत्री बना दे। उस समय तक लवलीन का भूत भी मर चुका होगा। (संवाद)