जब यह बजट सत्र शुरू हुआ, उस समय देश की राजनैतिक स्थिति बहुत ही अशांत और तनावपूर्ण थी। सच कहा जाय, तो मोदी सरकार के गठन के बाद इस साल के फरवरी महीने में जो राजनैतिक खींच तान हो रही थी, उतनी राजनैतिक खींचतान कभी नहीं हो रही थी। लेकिन इस सत्र में जितना काम हुआ, उतना पहले के किसी और सत्र में नहीं हुआ था। यही कारण है कि केन्द्रीय संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू इस सत्र को अबतक का सबसे कामयाब सत्र बता रहे हैं। सच कहा जाय, तो इस बार सरकार की रणनीति बहुत ही व्यवहारवादी थी। कांग्रेस के खिलाफ यह जो अभियान चला रही थी, उसका भी लाभ सरकार को मिला।
सरकार की सफलता का एक उदाहरण रियल इस्टेट विधेयक का पास होना है। सांसदों के एक पैनल ने इस पर अपनी सिफारिश दी थी, लेकिन केन्द्र सरकार इसका अंदाज नहीं लगा पा रही थी कि कांग्रेस इसे पारित करने में सहयोग करेगी या इसे रुकवाने की कोशिश करेगी। कांग्रेस को सहयोगी रवैया अपनाने के लिए बाध्य करने के लिए सरकार ने खरीददारों की तरफ से ही दबाव बनवाना शुरू किया। राहुल गांधी की बैठक मकानों के खरीददारों से कराई गई। उसका असर उनके ऊपर पड़ा और उन्होंने रियल इस्टेट विधेयक पारित करवाना ही उचित समझा।
रेलवे बजट और आम बजट पास करवाना उसके सामने चुनौती तो थी ही, आधार विधयेक भी इसके लिए कम चुनौतीपूर्ण नहीं थी। सच कहा जाय, तो यह चुनौती बजट पास कराने की चुनौती से भी बड़ी थी। इसे वित्त विधेयक के रूप में लोकसभा से पास करा लिया गया। राज्यसभा में इसे पराजित होना ही थी। लेकिन उसके बाद लोकसभा से पास होकर यह संसद से पारित हो गया। राज्यसभा में कांग्रेस ने आधार विधेयक में संशोधन करवा दिए थे। लोकसभा ने उन संशोधनों को खारिज कर दिया।
आधार विधेयक को पास कराने के लिए सरकार ने वित्त विधेयक का रास्ता चुना। संविधान के अनुसार वित्त विधेयक का राज्यसभा से पारित होना जरूरी नहीं है। यदि राज्यसभा से पराजित होने के बाद लोकसभा इसे दुबारा पारित कर दे, तो फिर इसे संसद का अनुमोदन मिल जाता है।
आधार विधेयक वित्त विधेयक की श्रेणी में आता है या नहीं, इसे लेकर सवाल खड़े किए गए। सरकार पर आरोप लगाया गया कि उसने एक गैर वित्त विधेयक को वित्त विधेयक के रूप में पेश किया, जो गलत है। लेकिन केन्द्र सरकार का अपना तर्क था। उसने आधार विधेयक के साथ ही सब्सिडी को जोड़कर उसे वित्त विधेयक का रूप दे डाला।
यह दुर्भाग्य की बात है वित्त विधेयक का तरीका अपनाकर केन्द्र सरकार ने राज्य सभा को दरकिनार कर दिया। यदि विधेयक में राज्यसभा द्वारा किया गया संशोधन स्वीकार कर लिया होता, तो उससे वह विधेयक मजबूत ही होता।
विधेयक के अनुसार सरकार की सुविधाएं और फायदे लेने के लिए आधार जरूरी है। कांग्रेस के जयराम रमेश ने एक संशोधन पेश कर इसके इस्तेमाल को वैकल्पिक बनाने की कोशिश की, लेकिन उस संशोधन को सरकार ने नकार दिया।
आधार विधेयक पर राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद सरकार अपनी सभी सेवाओं के लिए आधार नंबर का इस्तेमाल शुरू कर देगी।
तनावपूर्ण राजनैतिक माहौल के बावजूद सत्र में इतना काम हो पाना इसकी सफलता ही कही जाएगी। (संवाद)
संसद के बजट सत्र का पहला दौर सफल रहा या विफल?
हरिहर स्वरूप - 2016-03-21 10:38
संसद के बजट सत्र का एक दौर पूरा हो चुका है। इसकी समाप्ति के बाद केन्द्र सरकार का कहना है कि उसने इस सत्र को बर्बाद होने से बचा लिया, क्योंकि पहले कुछ लोग अनुमान लगा रहे थे कि पिछले सत्र की तरह यह भी बंजर साबित होगा, जिसमें कोई काम काज नहीं हो पाएंगे। सरकार का दावा गलत भी नहीं है, क्योंकि इस दौरान अनेक विधेयक पास हुए, जो बहुत दिनों से पास होने का इंतजार कर रहे थे।