ऐसा ही एक मामला मध्यप्रदेश के उमरिया जिले के पाली विकासखंड के तिमनी पंचायत के चंदनिया गांव का है, जहां अधूरे पड़े शौचालय स्वच्छता अभियान में हुए भ्रष्टाचार एवं लापरवाही के मिसाल बन चुके हैं। सरपंच एवं सचिव पर गबन का आरोप है और सरपंच को इस मामले में जेल हो चुकी है, वे जमानत पर बाहर हैं। पर हितग्राही के सामने यह यक्ष प्रश्न है कि उनके अधूरे शौचालय पूरे कब तक होंगे? गांव में अभी भी लोगों को खुले में शौच जाना पड़ता है। स्थिति यह है कि अधूरे पड़े शौचालय अब बेकार होते जा रहे हैं। उन ढांचों में समान रखे जाने लगे हैं और खोदे गए गढ्ढे यानी पिट मिट्टी से भर रहे हैं। हितग्राही अब यह बोल रहे हैं कि यदि हमने शौचालय का ढांचा नहीं बनवाया होता, तो वहां कम से कम सब्जी-भाजी तो उगा लेते।

साल 2013-14 में निर्मल भारत अभियान के तहत चंदनिया गांव के 74 हितग्राहियों के यहां शौचालय बनाने शुरू किए गए। शौचालय निर्माण की प्रक्रिया बहुत ही धीमी रही और आधे-अधूरे बना दिए गए शौचालय आज तक पूरा नहीं हो पाए। एक ग्रामीण गुलाब लाल इस संबंध में कहते हैं कि दो साल पहले गांव में शौचालय बनने शुरू हुए थे। अधूरे शौचालय बन जाने के बाद उसे पूरा नहीं किया गया। जब सरपंच एवं सचिव से ग्रामीणों ने बात की, तो वे टालने लगे। ग्रामीणों ने खुद से पिट के लिए गढ्ढे खोदे थे, जो अब भर रहे हैं। ग्रामीणों ने इसकी शिकायत अधिकारियों से की, पर कुछ नहीं हुआ।’ ग्रामीण कहते हैं कि उनके घर सिर्फ कहने के लिए शौचालय बन गया है, पर वे अभी भी खुले में शौच जाते हैं और शौचालय वाले कहलाते हैं।

गांव के उप सरपंच सुभान सिंह गोंड के अनुसार उन्होंने इसकी शिकायत एस.डी.एम., कलेक्टर और शहडोल कमीश्नर तक से की है। जब पहली बार अधूरे शौचालय की शिकायत की गई थी, तब अधिकारियों ने माना था कि भ्रष्टाचार हुआ है, पर उससे समस्या का समाधान नहीं हुआ। ग्रामीण सिर्फ यह चाहते हैं कि किसी भी तरह से उनके गांव के अधूरे पड़े शौचालय को पूर्ण कराया जाए। इस पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है।

उल्लेखनीय है कि चंदनिया में वर्तमान में लगभग 150 परिवार हैं। 2013-14 में 74 परिवारों के लिए शौचालय स्वीकृत हुए थे। पंचायत ने ठेके पर देकर काम शुरू कराया था, पर काम पूरा नहीं हो पाया। उस दरम्यान हितग्राहियों ने स्वयं से गढ्ढे भी खोदे थे। आश्चर्य की बात है कि बिना पूर्ण हुए इनमें से 20 शौचालय को विभाग के पोर्टल की सूची में डालकर पूर्ण शौचालय बता दिया गया। इन 74 शौचालयों में से अधिकांश के पिट एवं ढक्कन नहीं है, चैम्बर किसी के नहीं बने हैं, बहुत सारे शौचालयों में पैन नहीं है, कई में दरवाजे नहीं है और आधे में छत नहीं बनाए गए हैं। इस क्षेत्र में कार्यरत जलाधिकार अभियान से जुड़े चंदन कहते हैं कि गांव में स्वच्छता अभियान के नाम पर ग्रामीणों के साथ मजाक किया गया है। ऐसे शौचालय कब तक पूरे होंगे और कब यह गांव खुले में शौच से मुक्त हो पाएगा, कहना मुश्किल है। अधिकारी इस संबंध में टालने वाला जवाब देते हैं। सरपंच एवं सचिव द्वारा की गई गड़बड़ियों का खामियाजा ग्रामीण भुगत रहे हैं।

मध्यप्रदेश जलाधिकार अभियान के राज्य समन्वयक अनिल गुप्ता प्रदेश में शौचालय निर्माण को लेकर की जा रही लापरवाही एवं भ्रष्टाचार के संदर्भ में बताते हैं कि मामला सिर्फ चंदनिया का ही नहीं है। प्रदेश के सभी आदिवासी अंचलों में शौचालय निर्माण में भ्रष्टाचार हो रहा है। श्योपुर जिले के कराहल विकासखंड के बाढ़ पंचायत में आदिवासी परिवारों में शौचालय निर्माण को लेकर राशि निकाल ली गई और ग्रामीणों को पता तक नहीं चला कि उनके नाम पर शौचालय निर्माण हो जाने की सूचना पोर्टल पर डाली जा चुकी है। यह मामला भी विधानसभा में गूंजा था। पर दुःखद है कि इस तरह के मामलों का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है।

प्रशासन के असंवेदनशील रवैये और स्थानीय स्तर पर किए जा रहे भ्रष्टाचार के कारण ग्रामीणों में स्वच्छता अभियान के प्रति उदासीनता बढ़ती जा रही है। आदिवासी अंचलों में ग्रामीण इतने सक्षम नहीं है कि वे स्वयं का पैसा लगाकर शौचालय बना पाएं। ऐसे में शासन को भ्रष्टाचार या लापरवाही के कारण अधूरे एवं कागजी शौचालयों को पूरे करवाने का काम विशेष प्रावधान के तहत करना चाहिए न कि भ्रष्टचार एवं लापरवाही का खामियाजा गरीब परिवारों को भुगतने देना चाहिए। (संवाद)