पश्चिम बंगाल में पहली बार मतदान 6 फेज में हो रहे हैं। पहले फेज का मतदान 4 अप्रैल को है और अंतिम फेज का मतदान 5 मई को। ऐसा वहां निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए किया जा रहा है, ताकि सभी बूथों पर जवानों की नियुक्ति सुनिश्चित करवाई जा सके। लेकिन निवार्चन आयोग के उस फैसले से आम मतदाता वहां खुश नहीं है।

यह सच है कि ममता बनर्जी के शासनकाल में पिछले 5 सालों में कोई बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हुआ है, लेकिन उस दौरान सरकार ने वह किया, जिसकी बंगाल की जनता को सबसे ज्यादा जरूरत महसूस हो रही थी। गांवों में पक्की सड़कें बना दी गईं और गांवों व शहरो को पक्के सड़कों से जोड़ दिया गया। दूर- दराज के इलाकों में भी नल से पानी की व्यवस्था कर दी गई और बिजली भी उपलब्ध कराई गई। खेती को भी बढ़ावा दिया गया और उसे बाजार से बेहतर तरीके से जोड़ा गया। अनेक विद्यालयों को भी खोला गया और स्वास्थ्य सेवाओ को भी बेहतर किया गया। पश्चिम बंगाल की विकास दर राष्ट्रीय विकास दर से भी ज्यादा है।

बाहर से भले नहीं दिखाई पड़ रहा हो, लेकिन पश्चिम बंगाल देश के अन्य अनेक राज्यों से अनेक मामलों में बेहतर विकास कर रहा है। रियल इस्टेट की स्थिति भी वहां अच्छी है और कोलकाता के आसपास जमीन और मकान की कीमतें नोएडा की कीमतों से ज्यादा हैं। इससे पता चलता है कि पश्चिम बंगाल के लोगों की क्रयशक्ति बढ़ रही है।

इसमें दो मत नहीं कि पिछले पांच सालों के दौरान वहां राजनैतिक अपराधों में कोई कमी नहीं आई है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस द्वारा वहां शासन करने की क्षमता में निश्चित तौर पर वृद्धि हुई है। और इसका असर मतदान पर पड़े बिना नहीं रह सकता। तृणमूल कांग्रेस को इस तथ्य का भी फायदा मिलेगा कि वहां उसके खिलाफ कोई मजबूत पार्टी या नेता नहीं है। सीपीएम, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी उनके सामने हैं। कांग्रेस और भाजपा तो वहां पहले से ही कमजोर है और सत्ता गंवाने के बाद सीपीएम अभी भी हौसला पस्ती का सामना कर रही है। इन तीनों पार्टियों के पास मजबूत नेता का अभाव है।

सीपीएम का नेतृत्व अभी भी 70 साल से अधिक उम्र के लोगों के पास है। उनमें से अधिकांश शारीरिक रूप से कठिन चुनाव प्रचार करने में सक्षम नहीं हैं और मानसिक रूप से नई चुनौतियों का सामना करने में भी सक्षम नहीं हैं।

चुनाव में एक नई घटना वाम दलों और कांग्रेस के बीच बना गठबंधन है। लेकिन क्या यह गठबंधन तृणमूल कांग्रेस को कठिन चुनौती दे पाएगा? इसकी संभावना नहीं दिखाई पड़ रही है। इसका एक कारण तो यह है कि यह गठबंधन एक ढीला गठबंधन है और कांग्रेस व वामदलों के बीच अनेक सीटों पर दोस्ताना मुकाबला भी हो रहा है। इसके कारण यह गठबंधन अनेक जगह मजाक बनकर रह गया है। इसका फायदा कांग्रेस को जरूर होगा, जिसे 8 से 10 ज्यादा सीटें मिल जाएंगी, लेकिन उसकी यह बढ़ोतरी तृणमूल की कीमत पर नहीं, बल्कि सीपीएम की कीमत पर होगी। (संवाद)