पिछले कुछ सप्ताहों में जो कुछ हुआ, उस पर यदि नजर दौड़ाई जाए, तो भाजपा की हताशा देखी जा सकती है। पिछले साल 2015 में विधानसभा के चुनाव दो प्रदेशों में हुए। पहले दिल्ली में हुआ और उसके बाद बिहार में। दोनों चुनावों में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा।

मोहन भागवत आजकल राजनैतिक बयान देने लगे हैं और उनके बयानों से समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण के प्रयास हो रहे हैं। पिछले साल उन्होने आरक्षण की समीक्षा करने के बयान दिये थे। उस बयान के कारण भारतीय जनता पार्टी बिहार में बुरी तरह हारी। उस बयान से जो पार्टी को नुकसान हो रहा है, उससे बचने के लिए अब पूरी तरह से हिन्दुओं के धार्मिक एकीकरण का सहारा लिया जा रहा है।

नरेन्द्र मोदी अल्पसंख्यकों को अपनी ओर लाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन संघ के नेताओं के जो बयान आ रहे हैं, इससे उनकी कोशिशों का खोखलापन उजागर हो गया हैं। संघ के नेता कह रहे हैं कि भारत माता की जय बोलना राष्ट्रवादिता की पहचान है और जो इसे नहीं बोलता और बोलना चाहते, वे राष्ट्रवादी नहीं है।

लेकिन संघ और भाजपा का यह प्रयास भी विफल होता दिखाई दे रहा है। भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी तक ने इस मुहिम को अनावश्यक और बेमतलब बताया है।

भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग भी संघ करता रहा है। उसकी इस मांग को मानने वाले लोग सिर्फ संघ तक ही सीमित हैं। उसकी विफलता के बाद भारत माता की जय का प्रपंच शुरू हुआ, लेकिन वह भी व्यर्थ हो गया है। सवाल उठाया जा रहा है कि भारत माता की जय बोलना राष्ट्रवाद है या संविधान के प्रति निष्ठा रखना राष्ट्रवाद है?

हिन्दू राष्ट्र और भारत माता की जय के नारे की विफलता के बाद नरेन्द्र मोदी ने अब अपनी रणनीति बदली है और वे अब दलितों और आदिवासियों को अपने से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उनका खुश करने के लिए उन्होंने कहा कि आरक्षण व्यवस्था पर खरोंच नहीं आने दी जाएगी।

यह समझ में आना कठिन है कि मोदी में आया यह बदलाव उनके हृदय में आया बदलाव है या यह भी उनकी एक रणनीति है। इससे यह भी पता चलता है कि नरेन्द्र मोदी का आरक्षण के मसले पर आरएसएस से मतभेद चल रहा है। आरएसएस के नेता जाति आधारित आरक्षण के खिलाफ बोलते रहे हैं और कहते हैं कि आरक्षण का आधार आर्थिक होना चाहिए। जब तब किसी न किसी संघ नेता का बयान आरक्षण को लेकर आता रहता है, जिसके कारण आरक्षण पाने वाले वर्गों में मोदी सरकार की मंशा को लेकर संदेह पैदा हो जाता है। उनके संदेह को दूर करने के लिए फिर नरेन्द्र मोदी को अपनी तरह से बयान जारी करना पड़ता है और जाति आधारित आरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता प्रकट करनी पड़ती है। (संवाद)