गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों में गिरी अपनी दो सरकारों को बचाने के लिए कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व ने कुछ नहीं किया था। दोनों राज्यों में संतोष पनप रहे थे और भारतीय जनता पार्टी उसके लाभ उठा रही थी, लेकिन न तो कंाग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास और न ही उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पास वहां के असंतुष्टों से मिलकर उन्हें शांत करने का समय था। असंतुष्ट तो दूर, कहते हैं कि मुख्यमंत्री भी कांग्रेस के केन्द्रीय नेताओं के साथ समस्या पर बात करने के लिए इंतजार करते रह गए और दोनों सरकारें एक के बाद एक गिर गईं।
मणिपुर में भी कांग्रेस की सरकार के खिलाफ पार्टी विधायकों मंे असंतोष बढ़ रहा है और वहां की सरकार भी खतरे में पड़ती दिखाई दे रही है, लेकिन इस बार अंतर यह है कि कांग्रेस का आलाकमान अब वहां की समस्या में रुचि ले रहा है और सरकार बचाने की उसने कोशिशें शुरू कर दी हैं।
मणिपुर के मुख्यमंत्री ओखराम इबोबी हैं। 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 47 विधायक हैं। उनमें से 25 ने मुख्यमंत्री के खिलाफ अपना असंतोष जाहिर करना शुरू कर दिया है। वे मंत्रिमंडल में फेरबदल चाहते हैं और 10 मंत्रियों को हटाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि 10 अन्य विधायकों को मंत्री बनाया जाय।
मुख्यमंत्री के खास गैखमगम दो पदों पर हैं। वे सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी। असंतुष्ट विधायक चाहते हैं कि वे दो में से एक पद छोड़ दें। असंतुष्ट धमकी दे रहे हैं कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे कांग्रेस को छोड़कर भाजपा की ओर रुख कर सकते हैं। यदि ऐसा हुआ, तो कांग्रेस की यह तीसरी प्रदेश सरकार भी गिर जाएगी।
इस बार कांग्रेस के केन्द्रीय आलाकमान ने अपनी सक्रियता दिखाई है और असंतुष्टों को संतुष्ट करने के लिए प्रदेश कांग्रेस कमिटी का पुनर्गठन करना शुरू कर दिया है। गैखंगम को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है। उनकी जगह विधायक टी एन हाॅकिप को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया है। संकेत मिल रहे हैं कि इस बार कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व असंतोष को शांत कर देगा और कांग्रेस सरकार के पतन की आशंका समाप्त हो जाएगी।
लेकिन वहां की समस्या सिर्फ विधायकों का असंतोष ही नहीं है। राज्य में अनेक हथियारबंद गिरोह सक्रिय हैं, जो कानून व्यवस्था को लगातार चुनौती दे रहे हैं। असम, मिजोरम और नगालैंड में तो इस तरह के गिरोहों पर बहुत हद तक काबू पा लिया गया है, लेकिन मणिपुर में यह समस्या अभी तक बनी हुई है।
वहां दशकों से उन विद्रोहियों के खिलाफ पुलिस और अद्र्धसैनिक बलों का आपरेशन चल रहा है, लेकिन सफलता अभी भी बहुत दूर है। वहां छोटे बड़े कुल 40 गिरोह हैं। उनमें से कुछ तो अभी भी सक्रिय हैं और कुछ निष्क्रिय हो चुके हैं। वे मणिपुर को भारत से बाहर नहीं कर सकते, लेकिन फिर भी वे अशांति बनाकर समस्या तो खड़े कर ही रहे हैं। वे वहां के विकास कार्यों मंे बाधा डाल रहे हैं और सरकारी परियोजनाओं पर काम कर रहे लोगों को परेशान कर रहे हैं। वे उनका अपहरण तक कर लेते हैं और फिरौती की मांग करते हैं। (संवाद)
मणिपुर में भी कांग्रेस सरकार को खतरा
इस बार पार्टी का केन्दीय नेतृत्व सरकार बचाने को सक्रिय
बरुण दास गुप्ता - 2016-04-07 09:09
उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में अपनी सरकारें गंवाने के बाद कांग्रेस के केन्द्रीय नेताओं की नींद अब जाकर खुली है। अब वे अपनी मणिपुर की सरकार बचाने के लिए सचेष्ट हो गए हैं।