कांग्रेस की इस समय केरल और असम में सरकारें हैं, लेकिन दोनों राज्यों में वह रक्षात्मक मुद्रा में है। इन राज्यों में सबसे ज्यादा दिलचस्प असम का मामला है। यह एक मात्र ऐसा प्रदेश है, जहां भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने की उम्मीद पाल रही है और यह एक मात्र ऐसा प्रदेश है, जहां देश के दोनों मुख्य राष्ट्रीय पार्टियां एक दूसरे के सामने चुनौती बनी हुई हैं। एक सर्वे के अनुसार भाजपा अपने गठबंधन के साथ वहां सरकार बनाने की ओर बहुत तेजी से बढ़ रही है और उसके गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलने वाला है, जबकि एक दूसरे सर्वे के अनुसार भाजपा गठबंधन बहुमत से कम होने के बावजूद कांग्रेस से ज्यादा सीटें ला रही है। पहले सर्वे का मानना है कि भाजपा गठबंधन को 44 फीसदी वोट मिल रहे हैं और उसे 78 विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल हो रही है। वहां विधानसभा की कुल सीटों की संख्या 126 है। जाहिर है, 78 सीटें मिलने का मतलब भाजपा की शानदार जीत है। उसी सर्वे के अनुसार कांग्रेस को कुल मतों का 34 फीसदी ही मिलने वाला है और उसे प्राप्त सीटों की संख्या 36 के आसपास होगी।

कांग्रेस की वहां 15 सालों से सरकार है और तरुण गोगोई वहां के मुख्यमंत्री लगातार तीन कार्यकाल से बने हुए हैं। सरकार के खिलाफ असंतोष का नुकसान वहां कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है, लेकिन यदि विधानसभा त्रिशंकु रही, तो तरुण गोगोई भाजपा विरोधी पार्टियों को मिलाकर अपनी सरकार एक बार फिर बना सकते हैं। वहां आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटि फ्रंट की ताकत भी अच्छी है और उसे पिछली विधानसभा में 18 सीटें मिली थीं। इस बार भी उसका प्रदर्शन बेहतर हो सकता है और अच्छी खासी सीटें उसे इस बार भी मिल सकती हैं। विघानसभा के त्रिशंकु होने के स्थिति में वह कांग्रेस के साथ सरकार में शामिल हो सकता है।

जहां तक पश्चिम बंगाल का सवाल है, तो वहां अभी भी तृणमूल कांग्रेस की स्थिति अच्छी बनी हुई है। यह सच है कि ममता सरकार में शामिल लोगों और उनकी पार्टी के सांसदों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं और आरोपों को साबित करते हुए स्टिंग आपरेशन भी किए गए हैं, लेकिन इसके बावजूद ममता बनर्जी की सरकार एक बार फिर गठित होने के आसार दिखाई दे रहे हैं, हालांकि उसे उतनी बड़ी जीत हासिल नहीं होगी, जितनी बड़ी जीत उसे पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मिली थी।

तमिलनाडु में भी मुख्यमंत्री जयललिता के एक बार फिर सत्ता में आने के संकेत मिल रहे हैं, हालांकि उनकी सीटों की संख्या भी कम होने के अनुमान हैं। यदि जयललिता एक बार फिर मुख्यमंत्री बन जाती हैं, तो एमजीआर के बाद लगातार दो बार मुख्यमंत्री बनने वाली वह पहली नेता होंगी। वहां उनके खिलाफ पार्टियां इस बार एकजुट नहीं हो पाई हैं। इसी का फायदा उन्हें मिल रहा है। अधिकांश सीटों पर बहुकोणीय मुकाबला हो रहा है। मुख्य मुकाबला जयललिता की पार्टी और डीएमके कांग्रेस गठबंधन के बीच है।

केरल में वाम मोर्चे की जीत की संभावना है। वहां बारी बारी से दोनों मोर्चा चुनाव जीतते रहे हैं। इस बार सीपीएम के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक गठबंधन की बारी है। वहां की जीत वाम पार्टियों के हौसले को बुलंद करेगी। पश्चिम बंगाल का बेहतर प्रदर्शन उनके नेताओं मे नया विश्वास पैदा करेगा। (संवाद)