श्री मौर्य ने ब्राह्मण लक्ष्मीकांत वाजपेयी की जगह ली है। वे एक पिछड़े वर्ग से आते हैं और प्रदेश में पिछड़े वर्गों के लोगों की संख्या 55 फीसदी है। उसे ध्यान में रखते हुए भाजपा पिछड़ा वर्ग कार्ड खेल रही है और कोशिश कर रही है ज्यादा से ज्यादा पिछड़ों का वोट हासिल करे।

पिछड़े वर्गों के वोटों की चिंता करते हुए भारतीय जनता पार्टी का शिखर नेतृत्व यह भी भूल गया कि मौर्य के खिलाफ अनेक आपराधिक मामले चल रहे हैं। उनके ऊपर हत्या की कोशिश करने का एक मुकदमा है तथा सांप्रदायिक दंगों में हिस्सा लेने के भी अनेक मुकदमे उनपरचल रहे हैं। सरकारी कर्मचारियों को काम से रोकने का मुकदमा भी उनके ऊपर चल रहा है। इन मुकदमों के सिलसिले में वे जेल की हवा भी खा चुके हैं।

केशव प्रसाद मौर्य 2002, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। 2002 और 2007 में उनकी हार हो गई थी, लेकिन सौभाग्य से वे 2012 के विधानसभा चुनाव जीत गए। 2014 में उन्हें लोकसभा का टिकट पार्टी की ओर से मिला और वे वह चुनाव भी जीत गए।

प्रदेश पार्टी के अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति के पीछे संघ का हाथ स्पष्ट लगता है, क्योंकि लोकसभा का टिकट उन्हें विश्व हिन्दु परिषद के कोटे से मिला था। वे विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े हुए रहे हैं और अशोक सिंघल के बहुत करीबी हुआ करते थे। वे बजरंग दल में भी सक्रिय रहे हैं। गौ रक्षा आंदोलन में भी उनकी हिस्सेदारी रही है।

अध्यक्ष बनने के बाद केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि उनका लक्ष्य उत्तर प्रदेश विधानसभा में पार्टी को 265 सीटों पर जीत दिलाना है।

इस समय केशव प्रसाद मौर्य के सामने सबसे बड़ी चुनौती हताशा के दौर से गुजर रहे भाजपा कार्यकत्र्ताओं की हौसला आफजाई करना है। पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 80 में से 73 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके बावजूद पार्टी कार्यकत्र्ताओं में मायूसी है।

पार्टी कार्यकत्र्ता ही नहीं, पार्टी के सांसदों में भी बेचैनी है। वे अपने क्षेत्रों में जाकर मतदाताओं का सामना करने की स्थिति में नहीं हैं। मतदाताओं द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब उनके पास नहीं हैं। लोकसभा चुनाव के पहले मतदाताओं में बहुत उम्मीदें भर दी गई थीं, लेकिन सरकार उन उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही है और सांसदों को जनता के सवालों का जवाब देते नहीं बन रहा है। यही कारण है कि सांसद अपने क्षेत्रों में जनता का सामना करने की स्थिति में नहीं हैं।

उत्तर प्रदेश में इस समय पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं रह गया है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश से ही हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने उन्हें हासिए पर लाकर खड़ा कर दिया है। मुरली मनोहर जोशी तो और पहले से ही हासिए पर हैं। कलराज मिश्र का भी यही हाल है। कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल बना दिए गए हैं और इस तरह वे चुनावी राजनीति से बाहर हो गए हैं।

उत्तर प्रदेश भाजपा में अभी गुटबाजी का जोर है। केशव प्रसाद मौर्य की मुख्य चुनौती गुटबाजी को समाप्त करना और सभी वरिष्ठ नेताओं का आशीर्वाद प्राप्त करना है।

कल्याण सिंह का समर्थन और आशीर्वाद प्राप्त करना श्री मौर्य के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी। कल्याण सिंह भी पिछड़े वर्ग से आते है और वे प्रदेश में पिछड़े वर्ग का सबसे बड़ा पार्टी चेहरा भी रहे हैं। पिछले दिनों अपने जन्म दिन के मौके पर उन्होंने प्रदेश में ही अपना समय बिताया और संकेत दिया कि वे चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करने को तैयार हैं।

मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र जैसे नेताओं का विश्वास हासिल करना भी मौर्य के लिए कोई छोटी चुनौती नहीं है। (संवाद)