खबर के अनुसार मध्यप्रदेश के बेतुल जिले के बाराहवी गांव में दलित महिलाओं को 14 अपै्रल के दि नही अगड़ी जातियों के लोगों ने एक ट्यूबवेल से जुड़े नल से पानी नहीं लेने दिया। 45 साल की दलित महिला पार्वती इंगले ने उस दिन की घटना के बारे में मीडिया को बताया। जिस समय उन दलित महिलाओं को पानी लेने से रोका गया, उसी समय प्रधानमंत्री वहां से 275 किलोमीटर दूर महू में अम्बेडकर की प्रशंसा कर रहे थे।

विडंबना यह भी है कि वे दलित महिलाएं, जिन्हें पानी नहीं लेने दिया गया, खुद भी अम्बेडकर जयंती मना रही थी। उस जयंती समारोह के लिए ही वे वहां से पानी लेने गई थीं। पानी नहीं लेने देने के विरोध में जब दलित महिलाओं ने हंगामा शुरू किया, तो अगड़ी जातियो के लोगों में कुछ को थोड़ी समझ आई और उन्होंने 9 में से 2 नल से उन्हें पानी लेने की इजाजत दी। लेकिन उसके साथ उन्होंने यह शर्त भी लगा दी कि न तो वे दलित महिलाएं और न ही उनका बर्तन दूसरी जाति के पानी के बर्तनों को स्पर्श करे। दलित महिलाओं ने पंचायत की सहायता लेने की कोशिश की, लेकिन ग्राम पंचायत भी उन्हें मदद करने में विफल रही। उसके बाद शुक्रवार की सुबह को पुलिस में शिकायत दर्ज की गई।

सब इंस्पेक्टर आर के बिसारे ने कहा कि हमने दोनों पक्षों के बयान रिकार्ड कर लिए हैं और अब आगे की आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।

पूरे प्रदेश में दलितों पर होने वाले अत्याचार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। पिछले 3 अप्रैल को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के गृह जिले शिहोर में एक 13 साल के दलित किशोर को बुरी तरह पीटा गया और उसका एक हाथ तोड़ दिया गया। उसका कसूर यह था कि वह एक अगड़ी जाति के कुएं से पानी से पी रहा था। उस गांव का नाम दुलदाई है। एक जांच समिति ने पाया कि उस गांव के लोग अपर कास्ट के लोगों के आतंक के साए में जी रहे हैं।

13 साल के उस बच्चे ने जांच समिति को बताया कि वह अपनी भाभी के साथ जानवर चराकर लौट रहा था। रास्ते में उसे प्यास लगी। पास में किशन जाट का एक ट्यूब वेल था। वह वहां जाकर पानी पीने लगा। उसी समय जाट लोग उनके पास आए और उन्हें गालियां देने लगे। उसकी भाभी ने विरोध किया, तो फिर वे उस बच्चे को पीटने लगे। मार खाकर वे बेहोश गए। उसकी भाभी उसे वहां से उठाकर ले गई। बाद में पता चला कि उसके हाथ की एक हड्डी टूट गई थी।

जांच समिति एक सरकारी स्कूल पहुंची और वहां उपस्थित बच्चों से सवाल किया कि क्या उनके साथ जाति के आधार पर भेदभाव होता है। उन सबने एक स्वर में जवाब दिया कि उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होता। जांच समिति के लोगों को आश्चर्य हुआ। आश्चर्यचकित सदस्यों की जिज्ञासा को शांत करते हुए बच्चों ने बताया कि अगड़ी जातियों के लोगों ने अपने बच्चों के लिए अलग से स्कूल खोल रखे हैं और उनके बच्चे उस सरकारी स्कूल में आते ही नहीं। इसलिए किसी प्रकार के भेदभाव का सवाल ही नहीं उठता।

अम्बेडकर के जन्मस्थल महू, जो मध्यप्रदेश में है, में भी जाति के आधार पर भेदभाव होता है। महू के पास हरसोला नाम का एक गांव है। वहां चर्मकारों और बाल्मिकियों को सामुदायिक श्मशान का इस्तेमाल करने नहीं दिया जाता। वहां माली, पाटीदार और मालवीय लोग दलितों का दमन कर रहे हैं। (संवाद)