अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकाॅप्टर के सौदे में हुई घूसखोरी के बाद जो परिदृश्य उभर रहा है उसमें भाजपा और उसकी सरकार के लिए ’’काम कम और बातें ज्यादा’’ वाली कहावत बिल्कुल सच साबित हो रही है। काम कम क्या, वह तो काम करने में भी विश्वास करती दिखाई नहीं पड़ रही है। सिर्फ बातें ही बातें। उसकी सरकार के दो साल पूरा होने को है। यह उसकी सरकार के बनने के पहले ही उजागर हो चुका था। जांच भी पहले से ही चल रही थी, लेकिन दो साल बीतने के बाद भी वह जांच अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंची। कुछ छोटी मोटी मछलियों पर देखावे के लिए कार्रवाई की गई और मोदी सरकार यूपीए सरकार के कार्यकाल के अन्य अनेक भ्रष्टाचार के मामलों के साथ ही हेलिकाॅप्टर घोटाले की जांच पर कुंडली मारकर बैठी रही। कुछ किया ही नहीं गया और यदि थोड़ा बहुत कुछ किया भी गया, तो वह बस खानापूर्ति के लिए। मुख्य अपराधियों को पकड़ने की कोई कोशिश ही नहीं की गई।
"न खाएंगे और न खाने देंगे’’ की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मानो कसम खा रखी थी कि जो लोग उनकी सरकार आने के पहले खा चुके हैं, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। हां, वह चुनावों के पहले उनके खाने की जरूर चर्चा करते हैं और खूब जोरशोर से करते हैं। वह इसलिए करते हैं, क्योंकि उससे उन्हंे वोट मिलता है। पर सवाल उठता है कि क्या किसी सरकार को सिर्फ बयानबाजी करनी चाहिए? बयानबाजी करते रहना उनकी मजबूरी है, जिनके पास कार्यपालिका की शक्तियां नहीं है। यदि विपक्षी पार्टियां बयानबाजी करती हैं भ्रष्टाचार के खिलाफ तो वह बात समझ में आती है, क्योंकि उसके अलावा वह कर ही क्या सकती? ज्यादा से ज्यादा वे अदालत में मामले को ले जा सकती हैं अथवा उस मसले पर कुछ धरणा प्रदर्शन आयोजित कर सकती हैं। इसके अलावा वे बंद का भी आयोजन कर सकती हैं।
पर सरकार और सरकारी पार्टियों के पास कार्यपालिका की शक्तियां हैं। उनका काम भ्रष्टाचार, घोटाले अथवा धांधलियों के खिलाफ जांच करना और अपराधियों को कानून के दायरे में लाना है, न कि बयानबाजी करना। थोड़ी बहुत बयानबाजी तो उसे भी अच्छी लगेगी, लेकिन वह सिर्फ बयानबाजी ही करती रहे, तो फिर देश का क्या होगा? यह तो बहुत ही निराशा भरी बात हुई कि जिस कोतवाल को चोर को पकड़ने का जिम्मा मिला हुआ है, वह चोर को पकड़ने की जगह अपने घर पर बैठकर चोर चोर चिल्ला रहा है।
अब तो यह साफ हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में मिले जनादेश को सही ढंग से नहीं पढ़ा है। जनादेश उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ मिला था। यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के एक के बाद एक आए दर्जनों मामले ने कांग्रेस की नींव खोखली कर दी और लोगों को लगा कि अपने परिवार से दूर रह रहे नरेन्द्र मोदी न तो भ्रष्ट हैं और न ही भ्रष्ट हो सकते हैं। उन्हें यह भी लगा कि जो व्यक्ति भ्रष्ट नहीं है, वह भ्रष्टाचार सहन भी नहीं कर सकता है। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने लोगों के इस विश्वास को गलत साबित कर दिया है। वे विकास का नारा लगाते हुए विदेशी दौरे में व्यस्त हैं और भ्रष्टाचार के मामलों को तो वे भूल ही गए हैं। ये मामले उन्हें सिर्फ और सिर्फ चुनाव प्रचार के दौरान याद आते हैं, लेकिन उसके बाद फिर वे सबकुछ भूल जाते हैं।
अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकाॅप्टर का मामला भी मोदी सरकार भूल चुकी थी। यह तो इटली के उच्च न्यायालय स्तर की एक अदालत ने इस मामले में घूस देने वाले को सजा देकर, इस मामले की याद भारत के लोगों को दिला दी। अब जब घूस देने वाले जेल के अंदर हैं, तो घूस लेने वाले भी जेल के अंदर जाने चाहिए, लेकिन यह तो तभी संभव होगा, जब देश के हुक्मरान ऐसा करना चाहेंगे। जब देश के हुक्मरानों के लिए भ्रष्टाचार कोई बड़ी समस्या नहीं हो, बल्कि अपने विरोधियों को हराने का एक अवसर मात्र हो, तो उसका इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ चुनाव जीतने के लिए ही किया जा सकता है, भ्रष्टाचारियों को सजा देने के लिए नहीं।
इसलिए आज मोदी सरकार के मंत्री और उनकी पार्टी के नेता चीख चीख कर सोनिया गांधी और कांग्रेस पर भ्रष्ट होने का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें पता है कि इस तरह चीखने से भ्रष्ट लोगों को सजा नहीं मिलती। उसके लिए कार्रवाई करने की जरूरत है। दोषियों के खिलाफ मुकदमा चलाने और उन्हें जांच एजेंसियों के सामने पेश करने और करवाने की जरूरत है। जो सवाल जांच एजेंसियों और उनके जांच अधिकारियों द्वारा आरोपियों से पूछा जाता है, वे सवाल भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सोनिया गांधी से क्यों पूछ रहे हैं, यह समझा तो जा सकता है, लेकिन यह देश की जनता के लिए बहुत ही अपमानजनक है। साफ साफ लगता है कि यह सरकार और सरकारी पार्टी के नेता देश की जनता को मूर्ख समझते हैं और उन्हें लगता है कि उनकी चीख पर ही लोग मुग्ध हो जाएंगे और कहेंगे कि देखो तो भाजपा और उसकी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कितना प्रतिबद्ध है।
अभी भी समय है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए अपनी गिरती छवि को बचाने का। वे विकास पुरुष के रूप में जनता का नायक बने रहेंगे या नहीं, इसके बारे मे दावे से कुछ भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन यदि उन्होंने भ्रष्ट लोगों को कानून के दायरे में लाकर सजा दिलवाना शुरू कर दिया, तो वे निश्चय ही देश की जनता के महानायक बन जाएंगे। लेकिन फिलहाल तो वे और उनकी सरकार देश के लोगों को निराश ही कर रही है। लोग कार्रवाई चाहते हैं, भाषणबाजी नहीं। (संवाद)
हेलिकाॅप्टर घोटाले पर बयान नहीं, कार्रवाई चाहिए
लोगों को बहुत निराश कर रही है मोदी सरकार
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-04-30 10:59
इन्दिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी बहुत छोटा भाषण देते थे। कभी कभी तो दो मिनट में ही वे अपना भाषण खत्म कर देते थे। भाषण का अंत करते हुए कहते थे, ’’काम अधिक, बातें कम’’। यह उनका आदर्श वाक्य था। आपातकाल के दौरान उनकी बहुत बदनामी हो गई थी। लेकिन उनका वह आदर्शवाक्य लोगों को बहुत पसंद था। आज मोदी सरकार मे उनकी पत्नी मेनका गांधी एक मंत्री हैं और उनका बेटा वरुण गांधी मोदीजी की भारतीय जनता पार्टी के एक सांसद हैं। और मोदी सरकार और मोदीजी की पार्टी का आदर्श वाक्य संजय गांधी के आदर्श वाक्य से बिल्कुल उलटा है। लगता है कि उनका आदर्श वाक्य है, ’’ काम कम और बातें ज्यादा’’।