मकान की खरीद सिर्फ उसमें रहने की इच्छा रखने वाले ही नहीं करते, बल्कि अपनी बचत की निवेश का भी यह एक बड़ा माध्यम बन गया है। इसका असर यह हुआ है कि जितने मकान खुद रहने के लिए खरीदे जाते हैं, उससे ज्यादा मकान बचत की रकम के निवेश और निवेश पर अच्छा रिटर्न पाने के खरीदे जाते हैं। रियल इस्टेट का निजी सेक्टर बेतरतीब तरीके से फैला और फलाफूला, क्योंकि उसके लिए ढंग का नियम कानून ही नहीं था। 1991 में शुरू की गई नई आर्थिक नीतियों के बाद देश की आर्थिक विकास दर तेज हुई, शहरीकरण की रफ्तार भी तेज हुई और उसके कारण शहरी क्षेत्रों में मकान की मांग भी तेजी से बढ़ी। बढ़ती मांग के कारण रियल सेक्टर के खिलाड़ियों को एक ऐसा बाजार मिल गया, जिसपर वे अपनी मनमानी शर्तें थोप सकते थे। रियल इस्टेट उद्योग खुद भी भारी भ्रष्टाचार का शिकार रहा है। जमीन खरीदने, उसका लैंड यूज बदलवाने, प्रोजेक्ट की सरकारी एजेंसियों द्वारा अनुमति पाने, कंप्लीशन सर्टिफिकेट लेने बगैरह में रियल इस्टेट के आपरेटरों को भारी घूस देने पड़ते हैं। उन्हें राजनेताओं से लेकर नौकरशाहों तक को खुश रखना पड़ता है और इस क्रम में भवन निर्माण की लागत बहुत बढ़ जाती है। पिछले कुछ दशकों से जमीन की कीमतों मे भी बेतहाशा वृद्धि हुई है, जिसके कारण मकान बहुत ही महंगे हो गए हैं। महंगे मकानों के कारण आज मध्य वर्ग का एक बड़ा हिस्सा मकान खरीदने की सोच भी नहीं सकता। वे रियल इस्टेट के बाजार से बाहर हो चुके हैं और मकान खरीदने वालों में वैसे लोग भारी संख्या में आ गए हैं, जिन्हें रहने के लिए नहीं बल्कि निवेश के लिए मकान चाहिए।
यानी मध्यवर्ग के एक बड़े हिस्से के रियल इस्टेट के बाजार से बाहर हो जाने के बाद भी मकानों की मांग और कीमतें लंबे समय तक ऊंची बनी रही। बिल्डर इसका लाभ उठाकर मनमानी करते रहे। एक प्रोजेक्ट पूरा हुआ नहीं कि दूसरे प्रोजेक्ट की शुरूआत कर दी और पहले प्रोजेक्ट के ग्राहकों का पैसा दूसरे प्रोजेक्ट मे लगाकर नये ग्राहक तलाशने लगे। वे नियम कायदों का भी उल्लंधन करने लगे, क्योंकि उन्हें पता था कि नियम से चलो तक भी अधिकारियों को घूस देनी होती है और न चलो तब भी घूस देनी पड़ती है। उन्हें यह भी पता था कि नियम कायदों के उल्लंधन और समय पर पूरा प्रोजक्ट कर पाने की उनका असमर्थता का नुकसान उनको नहीं होना वाला, बल्कि ग्राहकों को होने वाला है, इसलिए वे और भी लापरवाह हो गए।
लेकिन पाप का घड़ा तो फूटना ही था। कोई बुलबुला लंबे समय तक नहीं बना रह सकता। आज रियल इस्टेट का बुलबुला फूट चुका है। मकानों के महंगे होने के कारण इसका बाजार बहुत सिकुड़ चुका है और उसका खामियाजा बिल्डरों को भुगतना पड़ रहा है, लेकिन बिल्डर भी अपने नुकसान को उन ग्राहकों के सिर पर डाल रहे हैं, जो पहले से उनकी गिरफ्त में आ चुके हैं। यही कारण है कि आज देश के लाखों ग्राहक हजारों करोड़ रुपये रियल इस्टेट में निवेश कर पछता रहे हैं। उनमें से कई को तो मकान ही नहीं मिल पा रहा है और कई को मकान मिल भी गया है, तो उनकी गुणवत्ता बहुत घटिया है। अनेक लोग तो कमान में घुसने के बावजूद अपने मकानों की रजिस्टरी ही नहीं करवा पा रहे हैं, क्योंकि वे मकान नियम कायदों को कानून पर रखकर बनाए गए थे। खुद संकट में ग्रस्त बिल्डर अब पहले की तरह साहबों को खुश कर अपने अनियमित निर्माण को नियमित करवाने में भी विफल हो रहे हैं। अनेक निर्माण ही विवादित जमीन पर हुए। इस तरह से पूरा का पूरा भवन निर्माण सेक्टर अनेक किस्म के संकटों से गुजर रहा है और उस संकट के सबसे बड़े शिकार वे ग्राहक हैं, जिन्होंने अपने मकान बुक करवाए हुए हैं और तय समय बीत जाने के सालों बाद भी अपना मकान नहीं पा रहे हैं।
यह अच्छी बात हैं अब मकान ग्राहकों ने अब अपने को लामबंद किया है और वे अपने हकों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। केन्द्र सरकार द्वारा रियल इस्टेट कानून भी उनके दबाव के कारण ही बने हैं। लेकिन कानून बनने से ही समस्या का समाधान नहीं होता। हम जानते हैं कि कानूनों का हमारे देश में क्या हश्र होता रहा है। इसलिए जरूरत उपभोक्ताओं और ग्राहकों की जागरूकता की है और वह जागरूकता भी स्थायी रूप की होनी चाहिए।
रियल इस्टेट उद्योग मे चल रही मंदी न तो इस उद्योग के लिए और न ही अपना मकान चाहने वालों के लिए शुभ है। यह देश की गति और प्रगति के लिए भी अशुभ है। भारत जैसे देश, जिसमे मकान चाहने वालो की संख्या करोड़ों में है, रियल सेक्टर का बीमार रहना सभी तरह से घातक है। इस उद्योग के कारण देश के अन्य 600 उद्योगों को ताकत मिलती है। यह सेक्टर रोजगार बढ़ाने का भी एक बड़ा माध्यम है। सच तो यह है कि भारत मकान निर्माण को केन्द्र में रखकर अपनी विकास की रफ्तार को और भी बढ़ा सकता है और हम 10 प्रतिशत की विकास दर से भी ज्यादा तेज गति से विकास कर सकते हैं। लेकिन शर्त यह है कि इस उद्योग का केन्द्र भी उपभोक्ता ही बनें। कहावत है कि बाजार का राजा उपभोक्ता होता है, लेकिन रियल इस्टेट के बाजार का राजा आज उपभोक्ता तो कतई नहीं है। चूंकि वह रियल इस्टेट की गतिविधियों का राजा नहीं है, इसलिए इस क्षेत्र में अराजकता है। अच्छी बात है कि उपभोक्ता सजग हो रहे हैं। उन्हें मीडिया का समर्थन भी मिल रहा है और उसके कारण राजनेता भी उनकी ओर ध्यान दे रहे हैं और रियल इस्टेट कंपनियों के मालिक लोग भी उनके सामने नत मस्तक हो रहे हैं। यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रही और रियल इस्टेट कंपनियों के मालिकों को उपभोक्ता राजा अपने अधिकार क्षेत्र में लाने में सफल रहे, तो इस सेक्टर का वर्तमान संकट का दौर भी खत्म हो सकता है। (संवाद)
बिल्डरों के खिलाफ उठती आवाजें
जागरूक उपभोक्ता रियल स्टेट का भला ही करेंगे
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-05-04 08:55
भारी मंदी के दौर से गुजर रहे रियल इस्टेट उद्योग के लिए एक शुभ संकेत उपभोक्ताओं में पैदा हुई वह जागरूकता है, जिसके कारण बिल्डर और काॅलोलानाइजर आज अपने आपको मकान खरीदने वालों के सामने नत मस्तक दिख रहे हैं। आज जो रियल इस्टेट संकट है, उसका मुख्य कारण इस उद्योग का अनियमित पर तेज विकास है।