वेधशाला का निर्माण जयपुर के महाराज सवाई जयसिंह ने 1719 ई में कराया था, जब वे दिल्ली सम्राट मुहम्मद शाह के शासनकाल में मालवा के गर्वनर के रूप में उज्जैन में थे। राजा जय सिंह की रुचि खगोल विज्ञान में भी थी। उन्होंने सम्राट की आज्ञा से उज्जैन, दिल्ली, जयपुर, मथुरा और वाराणसी में वेधशालाओं का निर्माण करवाया था। शुरुआती सालों के बाद यह वेधशाला लंबे समय तक उपेक्षित रही, पर 1923 में सिंधिया राज घराने ने इसे ठीक कराया, तब से लगातार यह खगोल विज्ञान के व्यावहारिक अध्ययन के लिए उपयोगी है।
उज्जैन को प्राचीन भारत का ग्रीनविच के नाम से भी जानते हैं। सूर्य घड़ी से प्राप्त स्थानीय समय को यहां लगाई गई एक सारणी से स्टैंडर्ड समय में बदल लिया जाता है। प्राचीन आचार्यों के अनुसार भौगोलिक गणना में उज्जैन को शून्य रेखांश पर माना है। कर्क रेखा भी यहीं से जाती है। यानी कर्क रेखा और भूमध्य रेखा एक-दूसरे को उज्जैन में काटती है। इस तरह से प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान के अनुसार उज्जैन को पृृथ्वी के मध्य में माना जाता था। उज्जैन का अक्षांश एवं सूर्य की परम क्रांति दोनों ही 24 अक्षांश पर मानी गई है। इसलिए सूर्य के ठीक नीचे की स्थिति उज्जैन के अलावा विश्व के किसी अन्य नगर की नहीं है। उज्जैन को काल-गणना का केन्द्र माने जाने के कारण वेधशाला द्वारा सन् 1942 से नियमित एफेमेरिज यानी पंचांग का प्रकाशन किया जाता है।
वर्तमान उज्जैन 23°11′ अंश पर स्थित है और उज्जैन से उत्तर दिशा में 32 किमी दूर डोंगला से होकर कर्क रेखा गुजरती है। इसलिए यह शहर खगोल विज्ञान के अध्ययन के लिहाज से पूर्व से लेकर वर्तमान तक महत्वपूर्ण बना हुआ है। पुरातत्विद पद्मश्री डाॅ. विष्णुश्रीधर वाकणकर ने उज्जैन के पास डोंगला में सूर्य के उत्तर दिशा का अंतिम समपाद बिन्दु की खोज की थी। मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने यहां एक बड़ा टेलीस्कोप लगाया है।
वेधशाला में सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, भित्ति यंत्र, दिगंश यंत्र एवं शंकु यंत्र हैं। ये सभी आज भी क्रियाशील है। यहां आधुनिक वैज्ञानिक खोज को समझने के लिए तारामंडल की स्थापना की गई है। इसके साथ ही 8 इंच व्यास का एक टेलीस्कोप भी लगाया गया है।
सम्राट यंत्र के बीच की सीढ़ी की दीवारों की ऊपरी सतह पृथ्वी की धुरी के समानांतर होने के कारण रात के समय दीवारों के ऊपरी धरातल से धु्रव तारा दिखाई पड़ता है। इसके पूर्व और पश्चिम की ओर विषुवत वृत्त धरातल में समय बताने के लिए एक चैथाई गोल भाग बना हुआ है, जिस पर घंटे, मिनट और मिनट का तीसरा भाग खुदे हुए हैं। जब आकाश में सूर्य चमकता है, तब दीवार के किनारे की छाया पूर्व या पश्चिम तरफ के समय बतलाने वाले निशान पर दिखाई देती है। इस निशान के आधार पर उज्जैन का स्थानीय समय निकाला जाता है। आकाश में ग्रह एवं तारे विषुवत वृत्त से उत्तर या दक्षिण में कितनी दूर हैं, यह जानने के लिए भी इस यंत्र का उपयोग किया जाता है।
विषुवत वृत्त के धरातल में निर्मित नाड़ी वलय यंत्र के उत्तर दक्षिण में दो भाग है। छह माह जब तक सूर्य उत्तरीय गोलार्द्ध में रहता है, तब तक गोले का उत्तरी भाग प्रकाशित रहता है। दूसरे छह माह जब सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है, तब दक्षिणी भाग प्रकाशित होता है। इससे भी उज्जैन का स्थानीय समय ज्ञात किया जा सकता है। कोई भी ग्रह या तारा उत्तरीय आधे गोल में है या दक्षिणी आधे गोल में, यह जानने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
भित्ति यंत्र उत्तर दक्षिण वृत्त एवं दृष्टा के ख बिन्दु को मिलाने वाली गोल रेखा के धरातल में बना हुआ है। इस यंत्र से ग्रह-नक्षत्रों के नतांश उस समय ज्ञात होते हैं, जब वे उत्तर दक्षिण गोल रेखा को पार करते हैं। यह समय उनका मध्याह्न कहा जाता है।
दिगंश यंत्र के बीच में गोल चबूतरे पर लगे लोहे के छड़ में तुरीय यंत्र लगाने पर ग्रह-नक्षत्रों के क्षितिज से ऊंचाई और दिगंश यानी पूर्व-पश्चिम दिशा के बिन्दु से क्षितिज वृत्त में कोणात्मक दूरी ज्ञात होते हैं।
क्षितिज वृत्त के धरातल में निर्मित इस चबुतरे के मध्य में एक शंकु लगा हुआ है, जिसकी छाया से सात रेखाएं खींची गई हैं, जो बारह राशियों को प्रदर्शित करती हैं। इन रेखाओं से साल के बड़े, छोटे एवं बराबर समय वाले दिन का पता चलता है। शंकु की छाया से क्षितिज से ऊंचाई और जब दिन-रात बराबर होते हैं, तब शंकु की छाया से अक्षांश ज्ञात किया जाता है।
उपग्रहों और कंप्यूटर के विश्लेषण से हमें खगोल विज्ञान के आधुनिक ज्ञान को हासिल करने में बहुत ज्यादा सहूलियतें मिली हैं, पर उज्जैन की वेधाशाला से हमें खगोल विज्ञान के मूलभूत एवं व्यावहारिक ज्ञान हासिल करने में बहुत मदद मिलती है और साथ ही हमें खगोलीय विज्ञान की विकास यात्रा की भी जानकारी मिलती है। (संवाद)
काल गणना का ऐतिहासिक नगर उज्जैन
खगोल विज्ञानियों के भी आकर्षण का केन्द्र
राजु कुमार - 2016-05-06 11:52
देश के प्राचीनतम नगरों में शुमार उज्जैन की बड़ी पहचान महाकालेश्वर मंदिर और 12 साल में होने वाले सिंहस्थ महाकुंभ से है, लेकिन उज्जैन में और भी बहुत कुछ है, जिसे देखना हमें विज्ञान, इतिहास, पुरातत्व और संस्कृति के साथ जोड़ता है। उज्जैन न केवल श्रद्धालुओं और शिव भक्तों को आकर्षित करता है, बल्कि यह खगोल विज्ञानियों का भी आकर्षण का केन्द्र है। उज्जैन की एक बड़ी पहचान यहां की वेधशाला है। खगोल विज्ञान के केन्द्र के रूप में प्राचीन समय से विख्यात यहां की वेधशाला आज भी अध्ययन का केन्द्र है। इसे यंत्र महल और जंतर-मंतर के रूप में भी पहचाना जाता है।