हेलिकाॅप्टर घोटाले को लेकर कांग्रेस के अंदर निश्चय ही हाहाकार मचा हुआ है। चुनाव हारने के बाद सोनिया और राहुल गांधी कभी भी उतना परेशान नहीं हुए थे, जितना वे आज दिखाई दे रहे हैं। हालांकि दोनों अपने को मजबूत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। सोनिया कहती हैं कि उन्हें किसी से डर नहीं है, तो राहुल गांधी कहते हैं कि जब उन्हें निशाना बनाया जाता है, तो उन्हें खुशी होती है। उनकी निर्भीकता और खुशी में भय और दुख छिपे हुए हैं।

राहुल और सोनिया गांधी पर नेशनल हेराॅल्ड मामले में भी एक मुकदमा चल रहा है। उस अखबार की संपत्ति को जालसाजी से अपने नियंत्रण वाली संपत्ति में बदलने का आरोप दोनों के ऊपर है। उस मुकदमे में दोनों जमानत पर हैं। लेकिन उस मुकदमे के कारण वे उतने परेशान नहीं हुए थे, जितने परेशान वे हेलिकाॅटर घोटाले में लग रहे आरोपों के कारण हो रहे हैं। आखिर इसका कारण क्या हो सकता है?

इसका एक कारण तो मोदी सरकार के रवैये में आया बदलाव हो सकता है। सत्ता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपनी पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार का संज्ञान नहीं लिया। भ्रष्टाचार के कारण ही कांग्रेस के ये दुर्दिन आए हैं और उसके कारण ही नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी है, लेकिन मोदी ने उन भ्रष्टाचार के मामलों को नजरअंदाज कर दिया। चुनावी भाषणों में वे जरूर उनकी चर्चा करते रहे, क्योंकि उसके कारण उन्हें कांग्रेस पर हमला करने का मौका मिलता था, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर उन भ्रष्टाचारों की जांच नहीं करवाई गई और यदि जांच चल भी रही थी, तो उसे तेज नहीं किया गया।

कहा जाता है कि मोदी सरकार के एक अति ताकतवर मंत्री कांग्रेस नेताओं के हमदर्द हैं और वे भ्रष्टाचार के मामलों पर मोदी सरकार को आगे नहीं बढ़ने दे रहे थे। नेशनल हेराॅल्ड का मामला सरकार द्वारा चलाया गया मामला नहीं है, बल्कि सुब्रह्मण्यम स्वामी ने निजी हैसियत से वह मामला चलाया था। उस मामले में भी पहले वित्त मंत्रालय के अधीन प्रवर्तन निदेशालय ने सोनिया राहुल के खिलाफ मामला नहीं बनने की बात की थी। तब स्वामी ने बहुत हंगामा मचाया था। उसके बाद उस अधिकारी को बदला गया और नये अधिकारी ही रिपोर्ट के बाद ही वह मुकदमा आगे बढ़ा।

हेलिकाॅप्टर घोटाले में लग रहे आरोप के समय राजनैतिक स्थितियां बदल गई सी लगती हैं। हेराॅल्ड मामले के समय सुब्रह्मण्यम स्वामी भाजपा में रहते हुए भी सरकार के हिस्से नहीं लगते थे, बल्कि लगता था कि उन्हें सरकार में कोई तवज्जो ही नहीं मिल रहा है। इसके कारण स्वामी कांग्रेस अध्यक्ष के डर का बड़ा कारण नहीं थे। लेकिन अब स्वामी राज्यसभा के सांसद हो गए हैं। मोदी सरकार ने उनको महत्व देना शुरू कर दिया है। राज्यसभा में वे मनोनित सदस्य हैं, लेकिन सभी व्यावहारिक दृष्टि से वे भाजपा के ही सदस्य हैं। उनको नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा मिल रहा महत्व सोनिया और राहुल के लिए भारी पड़ सकता है। यही कारण है कि दोनों पहली बार मोदी सरकार को लेकर आशंकित हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने एक और समस्या खड़ी हो गई है, जिसके कारण वे अपनी रणनीति बदलने को मजबूर हो रहे हैं। अब उनका जादू लोगों के ऊपर नहीं चल रहा। वे अपनी पार्टी की जीत सुनिश्चित नहीं करवा पा रहे हैं। 2015 में दिल्ली और बिहार विधानसभा में हुए चुनावों में उनकी पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा और उनका भाषणा लोगों को हजम नहीं हो पाया। मोदीजी को लग रहा था कि विकास की गति तेज कर उसका फायदा सभी लोगों तक पहुंचाकर लोगों के दिलो दिमाग पर वह कब्जा कायम रखेंगे, लेकिन वैसा कुछ हो नहीं पा रहा है। कागजी आंकड़ों में विकास दर को तो तेज दिखाया जा सकता है, लेकिन लोगों तक उसका फल नहीं पहुंच रहा है।

भाजपा यदि 2015 की तरह चुनाव हारती रही, तो कांग्रेस एक बार फिर जिंदा हो जाएगी। अभी तो भाजपा वहां हार रही है, जहां कांग्रेस नहीं है। इसलिए फायदा गैरकांग्रेसी पार्टियों को हो रहा है, लेकिन मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भाजपा हारी, तो उसका फायदा कांग्रेस को ही होगा। कुछ राज्यों में हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में भाजपा के ऊपर कांग्रेस को मिली जीत ने मोदीजी के कान खड़े कर दिए हैं। अगले साल उत्तर प्रदेश और गुजरात में चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश की हार तो मोदी बर्दाश्त कर सकते हैं, लेकिन गुजरात हारने का मतलब है 2019 में लोकसभा की हार का पूर्वदर्शन।

यही कारण है कि नर्रेन्द्र मोदी को भ्रष्टाचार के मसले पर अब सक्रिय होना ही होगा। जिन लोगों ने कांग्रेस को पिछले लोकसभा चुनाव में भ्रष्टाचार के कारण हराया, वे लोग चाहेंगे की भ्रष्टाचार के मामले में भ्रष्ट लोगों को सजा भी हो। यदि उन्हें मोदी सरकार सजा नहीं दिलवा सकती है, तो फिर उनके खिलाफ उन्हें भ्रष्ट कहते हुए की गई चुनावी बयानबाजी को सिर्फ चुनावी जुमला ही समझा जाएगा। इसलिए चुनाव जीतने के लिए भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करवाना और दोषियों को सजा दिलाना मोदीजी के अच्छे भविष्य के लिए आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है।

इसलिए अब नरेन्द्र मोदी सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे लोगों को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। और इसके कारण ही सोनिया और राहुल के कान खड़े हो गए हैं। सरकार के अंदर से जो ताकतवर मंत्री सोनिया और राहुल का बचाव कर रहे थे, वे भी अब मोदी सरकार के अंदर कुछ कमजोर पड़ते जा रहे हैं। इससे सोनिया और राहुल का असुरक्षाबोध और भी बढ़ गया है।

सोनिया और राहुल का वह असुरक्षाबोध तो अपनी जगह है, लेकिन लोगों को अभी शक है कि मोदी की सरकार भ्रष्टाचार के मामलों की जांच को तार्किक परिणति तक पहुंचा पाएगी। इसका कारण यह है कि अपने कार्यकाल के पहले दो सालों में मोदी सरकार ने इस दिशा में कोई प्रगति नहीं की है और भ्रष्ट लोगों को सजा दिलाने की ओर एक भी गंभीर कदम नहीं उठाया गया है। (संवाद)