परन्तु 2015 के नवंबर के बाद स्थिति फिर बिगड़ने लगी। अपराधियों के हौसले फिर बुलंद होने लगे और वे पुलिस पर हमले तक करने लगे। सभी तरह के अपराध बढ़ने लगे। भारतीय जनता पार्टी और उसकी सहयोगी पार्टियां इसके लिए सरकार में राष्ट्रीय जनता दल के शामिल रहने को जिम्मेदार बताने लगी, लेकिन सच्चाई यही थी कि यह अपराध राजद के सत्ता में रहने के कारण नहीं बढ़े थे। उल्टे अनेक स्थानों पर राजद नेता और उनके परिवारों को ही अपराधियों का शिकार होना पड़ रहा था। गृह विभाग खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास है, इसलिए अपराध को रोकने की मुख्य जिम्मेदारी भी उनकी ही है। नीतीश कुमार ने अपराध को रोकने के लिए अधिकारियों को लताड़ भी लगाई और अनेक बार उन्हें अपनी नाराजगी से अवगत कराया, लेकिन फिर भी अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहे थे।

नशाबंदी लागू कर मुख्यमंत्री ने अपराध के एक बड़े कारण को ही समाप्त कर दिया और आंकड़े बताते हैं कि नशाबंदी लागू होने के बाद अप्रैल महीने में अपराधों की संख्या में भारी गिरावट आई। अब लगने लगा था कि बिहार में स्थिति सामान्य हो रही है, लेकिन गया में एक विधान पार्षद के बेटे द्वारा एक छात्र की हत्या करने के बाद एक बार फिर विपक्षी पार्टियों को बिहार में जंगल राज होने का आरोप लगाने का मौका मिला।

छात्र आदित्य सचदेव की हत्या निश्चय ही बिहार पर एक धब्बा है। नीतीश कूमार के लिए यह और भी परेशानी का सबब हो जाता है, क्योंकि हत्यारे का संबंध उनके दल की एक विधान पार्षद से है। जाहिर है, वह हत्या सत्ता के नशे में की गई थी। सिर्फ इसलिए किसी की हत्या कर दिया जाना कि उसने गाड़ी ओवरटेक कर ली हो, एक सामान्य व्यक्ति की समझ से परे है। सड़कों पर तेज रफ्तार गाड़ियों द्वारा कम रफ्तार की गाड़ियों को ओवरटेक कर लिया जाना आम बात है। लेकिन सत्ता के मद में चूर सामंती संस्कारों से लवरेज व्यक्ति को नागवार गुजरता है और उसे वह व्यक्ति बर्दाश्त नहीं होता है, जो उसके आगे निकल गया हो।

हत्या हो गई और हत्यारा फरार हो गया। हत्यारा सरकारी दल की नेता के परिवार का निकला और इसके कारण नीतीश कुमार पर सीधे हमले होने लगे। ये हमले स्वाभाविक भी थे। नीतीश कुमार से सभ्य समाज को बहुत उम्मीदें हैं और जब उम्मीद नाउम्मीदी में तब्दील होने लगती है, तो लोग बेसब्र प्रतिक्रिया का इजहार करेंगे ही। वही बिहार व देश के अन्य कोनों में हुआ।

लेकिन नीतीश सरकार ने भी इस हत्याकांड को गंभीरता से लिया है। हत्यारे के पिता को गिरफ्तार कर लिया गया, हालांकि ऐसा आमतौर पर होता नहीं है कि बेटा हत्या करे और पिता गिरफ्तार हो। पिता को बेटे को फरार कराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और पुलिस ने दबिश बनानी शुरू की और माता के घर पर दबिश के क्रम में शराब से भरी छह बोतले जब्त कर लीं। एक नये कानून के तहत घर में शराब रखना भी एक बड़ा अपराध है, जिसके लिए कम से कम 10 साल की जेल का प्रावधान है। यदि पुलिस चाहती, तो उसी समय विधायिका को गिरफ्तार कर सकती थी, लेकिन उसने पहले हत्या के आरोपी बेटे को गिरफ्तार करना जरूरी समझा और शराब की बोतलें जब्त होने के कारण गिरफ्तारी का डर दिखाकर मां की सहायता से ही बेटे को गिरफ्तार कर लिया।

हत्या के आरोपी की गिरफ्तारी नीतीश की पुलिस की सफलता थी और उसके बाद मां पर भी शराब रखने के आरोप में गिरफ्तारी की तलवार लटक गई है। विधायक मां फरार हो गई है, लेकिन आखिर वह कबतक फरार रहेंगी? कभी ने कभी तो वह कानून के शिकंजे में आ ही जाएंगी।

हत्या के बाद तेजी से कार्रवाई करके नीतीश कुमार ने अपने आलोचकों का मुंह बंद करने का प्रयास किया है। इसमे वे कुछ हद तक सफल भी रहे हैं, लेकिन यदि वे अपने आलोचकों का मुह पूरी तरह बंद करना चाहते हैं, तो उन्हें त्वरित गिरफ्तारी के साथ साथ त्वरित न्याय दिलवाने का उपाय भी करना होगा।

अभी नीतीश कुमार के पास अच्छा मौका है। पूरे देश की नजर गया के हत्याकांड पर है। ऐसे माहौल में उन्हें हत्या के इस मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में डाल देना चाहिए। बिहार में तो फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा अपराध के एक सप्ताह के अंदर भी सजा करवाई जा चुकी है। यह नीतीश सरकार के कार्यकाल के दौरान ही हुआ है। कोई कारण नहीं कि गया हत्याकांड में फैसला एक महीने के अंदर न आ पाए।

अपराधियों को कड़ा संदेश नीतीश कुमार दे रहे हैं। एक के बाद एक हुई तीन गिरफ्तारियों से अपराधियों का मनोबल निश्चित तौर पर गिरा होगा, लेकिन यदि जल्द से जल्द फैसला आ जाता है और हत्यारे को कानूनी तौर पर सजा सुना दी जाती है, तो इससे प्रदेश भर में संदेश और भी कड़ा जाएगा। इसके कारण न केवल अपराधियों में दहशत व्याप्त होगा, बल्कि सत्ता के नशे में चूर लोगों को भी सीख मिलेगी कि सत्ता को वे अपने अपराधों की ढाल नहीं बना सकते। (संवाद)