लेकिन उनके उत्थान के पीछे कोई ऐसा फैक्टर नहीं था कि जिससे कोई आश्चर्यचकित होता। 2005 और 2010 में मिली उनकी जीत लालू यादव के खिलाफ किए गए मतदान का परिणाम था। लालू के कुशासन से लोग दुखी थे और इसके कारण उन्होंने नीतीश पर भरोसा करके उन्हें जीत दिलाई थी।

उस समय नीतीश की जीत भाजपा के सहयोग से हुआ करती थी। लेकिन जब उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ दिया, तो उनकी भारी पराजय हो गई थी। बिहार के 40 लोकसभा क्षेत्रों में से मात्र दो में ही उनके दल के प्रत्याशी जीत पाए थे। उसके कारण उन्हें मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

हार से उबरने में नीतीश को ज्यादा समय नहीं लगा। उन्होंने अपने पुरान प्रतिस्पर्धी लाले यादव से गठबंधन किया और उनके समर्थन से एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए।

लेकिन सुविधा के इस गठजोड़ के नतीजे सामने आने लगे हैं। नीतीश ने अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए महिलाओं पर नजर डालना शुरू कर दिया और पिछले विधानसभा चुनाव में इसका उन्हें फायदा भी हुआ।

अब वे उन औरतों के लिए नशाबंदी की घोषणा कर चुके हैं। विधानसभा चुनाव के पहले महिलाओं का समर्थन हासिल करने के लिए उन्होंने शराब पर रोक लगाने की घोषणा कर दी थी।

सत्ता में आने के बाद उस पर उन्होंने अमल भी कर दिया। शराब से प्रदेश सरकार को 4 हजार करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ करता था। उनके इस निर्णय से उस राजस्व का नुकसान हो गया।

अब वे कह रहे हैं कि उनका उद्देश्य संघमुक्त भारत के साथ साथ शराब मुक्त भारत भी है। लेकिन ऐसा करके वे गलती कर रहे हैं। शराबबंदी के नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं। 1920 में अमेरिका में भी नशाबंदी की घोषणा की गई थी। उसके बाद एक माफिया राज का उदय हुआ, जो अवैध शराब का कारोबार किया करता था। आखिरकार वहां नशाबंदी विफल हो गई।

मोरारजी देसाई के बंबई का भी वही हाल हुआ था। शराबबंदी के कारण वहां तो एक अंडरवल्र्ड ही पैदा हो गया था।

बिहार के इसके कारण न केवल राजस्व की हानि होगी, बल्कि इसके कारण अवैध शराब के व्यापार का अपराधीकरण भी होगा। इसके कारण पुलिस में भ्रष्टाचार फैलेगा।

उस प्रतिबंध के कारण अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी। उद्योगपति आदी गोदरेज ने इसकी आशंका जाहिर की है। इसके कारण विदेशी पर्यटकों की भारत में आने की गति प्रभावित होगी। जहां नशाबंदी होती है, वहां नशा करने वाले पर्यटक नहीं जाते।

इसके कारण नीतीश कुमार को एक और नुकसान होगा। वे महिलाओं का वोट पाने के लिए यह सब कर रहे हैं, लेकिन जो शराब पीने वाले पुरुष हैं, वे इसके कारण नीतीश के खिलाफ हो जाएंगे।

अगर नीतीश को लग रहा है कि वे नशाबंदी की अपनी मुहिम के कारण भाजपा विरोधियों के नेता बन जाएंगे, तो वे गलती कर रहे हैं।

2005 में उनकी यूएसपी नशाबंदी नहीं थी, बल्कि कानून के राज की स्थापना करने वाली छवि थी। उन्हें अपनी उसी छवि को मजबूत करना चाहिए।(संवाद)