प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए भोपाल का भी चुनाव हुआ था, लेकिन सिटी के लिए जो जगह चुनी गई थी, वह भोपाल वासियों को रास नहीं आ रही थी। उसका कारण यह था कि भोपाल के उस हिस्से को स्मार्ट सिटी के लिए खाली कराया जा रहा था, जो पहले से ही लगभग स्मार्ट है।

राजधानी का वह इलाका जिससे सबसे पाॅश माना जाता है और जहां पहले ही सुन्दर सुन्दर इमारतें बनी हुई हैं और जहां पहले से ही हरियाली का राज है, स्मार्ट सिटी के लिए चुना गया था। उस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए पहले से बनी उन इमारतों को ध्वस्त किया जाना था और हजारों पेड़ों को भी उखाड़ा जाना था। वह सब करने के पहले वहां रह रहे हजारों लोगों को भी उजाड़ा जाना था। उसके लिए वहां रह रहे लोगों को नोटिस जारी कर दिया गया था।

जिन्हें नोटिस जारी किया गया था, वे तो विरोध कर ही रहे थे, भोपाल के अन्य क्षेत्रों के लोगों को भी यह बात समझ नहीं आ रही थी कि जो पहले से ही स्मार्ट है, उसे उजाड़कर वहां एक नई स्मार्ट सिटी क्यों बनाई जा रही है। जाहिर है, वहां धन की बर्बादी की जा रही थी।

अब लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उत्तरी टीटी नगर में इस स्मार्ट सिटी के लिए जगह देने की घोषणा कर दी है। उसके लिए 280 एकड़ जमीन देने की घोषणा मुख्यमंत्री ने कर दी है।

पहले सुभाषनगर और तुलसीनगर को स्मार्ट सिटी के लिए चुना गया था। यदि वहां यह प्रोजेक्ट शुरू किया जाता, तो दो हजार घरों को तोड़ना पड़ता और 30 हजार पेड़ों को उखाड़ना पड़ता। सच कहा जाय, तो सुभाषनगर और तुलसीनगर भोपाल के सबसे हरे भरे इलाके हैं। यही कारण है कि जब वहां स्मार्ट सिटी बनाने की बात हुई, तो उसका विरोध तेजी से शुरू हो गया।

शिवाजीनगर और तुलसीनगर में बने मकान बहुत पुराने भी नहीं हुए हैं। वे 1970 के दशक के अंतिम वर्षों में बनाए गए थे। वे सरकारी काॅलोनियों हैं और वहां सरकारी अधिकारी रहते हैं। प्रदेश सचिवालय से यह इलाका दो से तीन किलोमीटर की दूरी पर है। यहां के मकानों को तोड़ा जाना था और उनमे रह रहे लोगों को सचिवालय से बहुत दूर शिफ्ट किया जाना था। उन इलाकों मे बिल्डरो ने मकान बना रखे हैं, जिनकी बिक्री नहीं हो पा रही है। सरकार द्वारा अपने अधिकारियों और कर्मचारियो को वहां बसाने के लिए उन मकानों को खरीदा जाना था। आरोप लगाया जा रहा था कि सरकार उन बिल्डरो को फायदा पहुंचाने के लिए ही सुभाषनगर और तुलसीनगर में स्मार्ट सिटी बना रही थी।

शुरू शुरू में कुछ गैर सरकारी संगठनों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई थी। धीरे धीरे विरोधियो की संख्या बढ़ती गई। अधिकारियो को घरो को खाली करना था। वे इस प्रोजेक्ट के विरोधी हो गए। लोगों का बढ़ता विरोध देखकर राजनेता भी इस विरोध में शामिल हो गए। विरोधी पार्टियों के नेता ही नहीं, बल्कि सरकारी पार्टी के नेता भी इसके खिलाफ बोलने लगे। कुछ मंत्री भी विरोधियों में शामिल हो गए थे। उसके बाद तो जगह बदलना मुख्यमंत्री की मजबूरी हो गई थी।(संवाद)