मोदी सरकार का तीसरा साल बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाला है। इस बीच उनको कुछ न कुछ निर्णायक काम करने होंगे। वे अपना दो साल का समय पहले ही बर्बाद कर चुके हैं। इस दौरान वे फील गुड के माहौल में कुछ बेहतर निर्णय ले सकते थे, लेकिन अब वह माहौल रहा नहीं। प्रधानमंत्री की एक कमजोरी यह है कि वे बार बार पीछे की ओर देखते हैं, जबकि उन्हें आगे की ओर देखना चाहिए। मोदीजी के पास गजब की ऊर्जा है और कुछ कर गुजरने की तमन्ना भी। उन्हें अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल संरचनात्मक कामों के लिए करना चाहिए।
मोदी के लिए काम करना आसान नहीं हो रहा है क्योंकि हमारी व्यवस्था बहुत जटिल है। देश में न्यायपालिका है। सरकार को जबतब उसका भी सामना करना पड़ता है। संसद है। सरकार को उसके प्रति जवाबदेह होना होता है। विपक्ष है, जो सरकार को परेशान करता रहता ह। जब तब प्राकृतिक आपदाएं आ जाती हैं और सरकार को उसका भी सामना करना पड़ता है। देश की नौकरशाही बहुत सुस्त है और बदलाव का विरोध करती है। प्रधानमंत्री को इन सबकी चुनौतियों का सामना करना है।
इसका मतलब यह नहीं है कि मोदी सरकार ने अपने पहले दो साल में कुछ किया ही नहीं है। इसने अबतक 46 महत्वाकांक्षी योजनाओं को शुरू किया है। उनमें से अधिकांश की अच्छी शुरुआत हुई है और कुछ के सामने समस्याएं खड़ी हो रही हैं, जिनका हल निकाला जाना है। मोदीजी को लग रहा हैं उनकी सरकार की योजनाएं लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है। यही कारण है कि वे अपने सांसदों को कह रहे हैं कि वे महीने में कम से कम 7 रातें अपने संसदीय क्षेत्र में बिताएं और लोगों को उन योजनाओं से अवगत कराएं।
आज मतदाता जागरूक हो चुके हैं और वे बेहतर जीवन चाहते हैं। देश की आबादी का 65 फीसदी युवा है। 2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी की यह सबसे बड़ी शक्ति थी। लेकिन अब वे युवा बेचैन हो रहे हैं। वे चाहते हैं कि सरकार उनके लिए कुछ करे। वे सरकार के कामों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुए हैं। रोजगार सृजन पर सरकार की उपलब्धि बहुत अच्छी नहीं रही है। रोजगार उत्पन्न करने वाली सरकार की योजनाएं कारगर नहीं हो पा रही हैं। यदि अगले साल तक स्थिति अच्छी नहीं हुई, तो युवाओं का मोदी सरकार से मोहभंग शुरू हो जाएगा।
मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत करना है, किसानों की समस्या को हल करना है और युवाओं के लिए रोजगार का सृजन करना है। हालांकि एक अच्छी बात यह है कि देश का आर्थिक विकास की दर 7 से ऊपर है।
मोदीजी और उनकी टीम को ज्यादा से ज्यादा व्यवहार कुशल होना पड़ेगा। दो साल पूरा होने के पहले जो सर्व के नतीजे आ रहे हैं, उनसे तो यह पता चलता है कि मोदी में लोगो का विश्वास बना हुआ है, लेकिन उनकी टीम में लोगों का भरोसा नहीं रहा।(संवाद)
मोदी सरकार के दो साल
कहीं सफल, कहीं विफल
कल्याणी शंकर - 2016-05-20 14:55
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के दो साल पूरे होने जा रहे हैं। इसकी तरह तरह से समीक्षा की जा रही है। कुछ लोग तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं, तो कुछ लोगों के पास इस कार्यकाल की आलोचना करने के अलावा और कुछ भी नहीं है। उनके समर्थक उनकी प्रशंसा कर रहे हैं, तो विरोधी आलोचना कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने अपने वायदों को नहीं पूरा किया और अच्छे दिन नहीं आये। अच्छे दिन लाने के चुनावी वायदों को पूरा करना अभी बाकी है। प्रधानमंत्री उस वायदे को कैसे पूरा करेंगे, यह तो वही जानते होंगे, लेकिन जितने वायदे करके उन्होंने सत्ता हासिल की है, उन्हें पूरा करना शेष 3 साल की अवधि में संभव नहीं दिखाई पड़ रहा है।