सच कहा जाय तो दिल्ली को पूर्ण दर्जा देने की मांग नई नहीं है। जब 1993 में दिल्ली मे मदन लाल खुराना की भाजपा सरकार बनी थी, तो उसने भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठाई थी। तब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी और उस सरकार से उसका टकराव होता रहता था। दिल्ली की सरकार को बहुत ही कम अधिकार मिले हैं और ज्यादा अधिकार पाने के लिए भाजपा चाहती थी कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाय।
इस समय दिल्ली एक केन्द्रशासित प्रदेश है, जिसके पास अपनी विधानसभा है और जिसमे एक मुख्यमंत्री भी होता है। 1993 के पहले लंबे अरसे तक दिल्ली के पास विधानसभा भी नहीं थी और इसका मुख्यमंत्री भी नहीं हुआ करता था। हालांकि आजादी के बाद जब संविधान अस्तित्व में आया था, तो दिल्ली के केन्द्र शासित प्रदेश होने के बावजूद इसके पास अपनी विधानसभा थी और इसका मुख्यमंत्री भी था।
दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चैधरी ब्रह्म प्रकाश थे। वे एक शक्तिशाली मुख्यमंत्री थे और उस समय की दिल्ली सरकार के पास ताकत भी ज्यादा थी। पुराने लोग कहते हैं कि उसके कारण दिल्ली के अंदर दो प्रकार की सत्ता थी और दोनों के बीच टकराव की आशंका बनी रहती थी। केन्द्र सरकार की अपनी सत्ता थी और दिल्ली प्रदेश की सरकार के पास अपनी सत्ता थी। दो सत्ताकेन्द्रों की समस्या को हल करने के लिए दिल्ली मे विधानसभा को ही समाप्त कर दिया गया और मुख्यमंत्री का पद भी अपने आप समाप्त हो गया।
विधानसभा की जगह दिल्ली में मेट्रोपोलिटन काउंसिल हुआ करती थी, जिसके पास बहुत ही सीमित अधिकार हुए करते थे। उस दौर में विधानसभा को फिर से जीवित करने की मांग उठा करती थी। उसी के दबाव में नरसिंहराव सरकार ने दिल्ली मे विधानसभा को फिर से जीवित कर दिया। 1993 में विधानसभा के चुनाव हुए और भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई। तब उसके मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना था। सीमित अधिकार से लैश मदनलाल खुराना ने दिल्ली की सरकार को और अधिकार देने की मांग की।
दिल्ली को विधानसभा और मुख्यमंत्री देने के लिए जो संवैधानिक प्रावधान हुए थे, उसके तहत पुलिस पूरी तरह से केन्द्र सरकार के पास ही रही। भूमि का मामला भी केन्द्र के पास ही था और सरकारी अधिकारियों के सेवा का मामला भी केन्द्र ने अपने पास ही रखा। आम तौर पर कानून व्यवस्था राज्य सरकार का सिरदर्द होती है, लेकिन दिल्ली को विधानसभा देते हुए कानून व्यवस्था को केन्द्र सरकार ने अपने पास ही रखा।
इसके कारण दिल्ली सरकार के पास बहुत ही सीमित ताकत है। उसके पास परिवहन विभाग, शिक्षा विभाग और स्वास्थ्य विभाग ही मुख्य तौर पर है। सामान्य प्रशासन भी उसके पास है। केजरीवाल सरकार के गठन के बाद सरकार की ताकत और भी सीमित कर दी गई है। एंटी करप्शन ब्यूरो राज्य सरकार के हाथ से ले लिया गया है और जब तक केन्द्र और राज्य सरकार के बीच टकराव होता रहता है और अनेक मामले तो अदालत मे चले जाते हैं। विधानसभा द्वारा पारित किए गए कानून को उपराज्यपाल के दस्तखत की जरूरत पड़ती है और अनेक बार उपराज्यपाल उस पद दस्तखत करने से इनकार कर देते हैं और राष्ट्रपति के पास भेज देते हैं, जिसके कारण सरकार की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है।
और अब दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का विधेयक लाने का फैसला कर केजरीवाल ने एक बार फिर इस मामले को गरमाने का काम किया है। आज केन्द्र में भाजपा की सरकार है। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा और संशोधन विधेयक लाने का जिम्मा केन्द्र सरकार के पास ही है। चूंकि भारतीय जनता पार्टी खुद दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करती रही है, इसलिए उसके लिए इस मांग को पूरी तरह नजरअंदाज करना आसान भी नहीं होगा।
सच तो यह है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में जाने के पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपने अनेक घोषणापत्रों में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का मामला उठाया है। पिछले साल विधानसभा चुनाव के पहले जारी किए जाने वाले उसके घोषणापत्र पर सबकी नजर टिकी हुई थी। लोग यह जानना चाह रहे थे कि भाजपा दिल्ली का चुनाव जीतने पर पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वायदा करती है या नहीं। लेकिन लोगों को तब निराशा हाथ लगी, जब भाजपा ने कोई घोषणापत्र जारी ही नहीं किया और उसके बदले में एक विजन दस्तावेज जारी कर दिया, जिसके दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का उल्लेख तक नहीं था। जाहिर है, दिल्ली में केन्द्र सरकार पर काबिज हो जाने के बाद भाजपा का नजरिया बदल गया है, लेकिन उसने अभी तक अपने नजरिये में आए बदलाव के बारे में साफ साफ लोगों को नहीं बताया है।
मुख्यमंत्री केजरीवाल अब भाजपा को अपना नजरिया जाहिर कर देने के लिए बाध्य करने वाले हैं। केन्द्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा है कि दिल्ली में पूर्ण राज्य के दर्जे को लेकर आम सहमति नहीं है। ऐसा कहकर वे गेंद कांग्रेस के पाले में डालने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यदि कांग्रेस ने भी केजरीवाल की तरह पूर्ण राज्य की मांग के पक्ष में अपने विचार जाहिर कर दिए, तो फिर भाजपा क्या कहेगी? इस समय तो वह कांग्रेस के कंधे पर बंदूक रखकर गोली चला रही है, लेकिन यदि कांग्रेस ने अपना कंधा उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया, तो फिर उसका क्या होगा? (संवाद)
दिल्ली के पूर्ण राज्य का मामला
केजरीवाल एक बार फिर टकराव की राह पर
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-05-31 17:56
मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिल्ली को पूर्ण प्रदेश का दर्जा देने के मामले को गर्म करना शुरू कर दिया है। सत्ता में आने के साथ ही वह प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे थे, इसलिए अब एक विधेयक लाकर उस मांग को और मजबूती से उठाने का उनका निर्णय अप्रत्याशित नहीं है।