विवाद का कारण अथिरापिल्ली बिजली परियोजना है। इस परियोजना पर मुख्यमंत्री पी विजयन के एक बयान का बाद यह विवाद शुरू हुआ है। मुख्यमंत्री विजयन और बिजली मंत्री के सुरेन्द्रन इस परियोजना का समर्थन कर रहे हैं, जबकि सीपीआई इसके विरोध में है। सीपीआई का कहना है कि इस परियोजना से पर्यावरण को खतरा पैदा होगा। गौरतलब है कि एलडीएफ की घोषित नीति पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बिना प्रदेश का विकास करना है।

सीपीआई के प्रदेश सचिव के राजेन्द्रन ने कहा है कि मंत्रियों को नीति संबंधित मामलों पर तबतक बयानबाजी नहीं करनी चाहिए, जबकि कि एलडीएफ के घटक दल उस पर कोई फैसला कर नहीं लेते। उन्होंने यह भी कहा कि मंत्रियों पर एकतरफा बयानबाजी करने पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। सीपीआई के विधायक इएस बिजमौल ने भी राजेन्द्रन की उस मांग का समर्थन किया है।

सीपीआई के मुखपत्र जनयुगम ने में एक लेख छपा है जिसमें अथिरापिल्ली परियोजना को पर्यावरण के लिए घातक बताया गया है। उसमंे कहा गया है कि यदि इस परियोजना को हरी झंडी दी गई, तो हजारों एकड़ का वन क्षेत्र इससे बर्बाद हो जाएगा।

अन्य लोग भी इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। पर्यावरण कार्यकत्र्ता सुगाथाकुमारी अथिरापिल्ली पर बांध बनाए जाने का जबर्दस्त विरोध कर रही हैं। वह कह रही हैं कि राज्य सरकार को बिजली पैदा करने के अन्य स्रोतों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और पर्यावरण के खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। उन्होंने सरकार को याद दिलाया कि पानी और ताजा हवा बिजली से ज्यादा जरूरी है।

मुख्यमंत्री ने दावा किया था कि इस परियोजना से अथिरापिल्ली स्थित जलप्रपात पर कोई खराब असर नहीं पड़ेगा। अनेक विशेषज्ञों ने मुख्यमंत्री के उस दावे को गलत बताया है। उनका कहना है कि बांध बनने से 134 हेक्टर की वनभूमि पानी में डूब जाएगी। उनका कहना है कि बिजली के लिए राज्य सरकार को अन्य विकल्पों की तलाश करनी चाहिए।

विपक्षी कांग्रेस भी उस प्रोजेक्ट का विरोध कर रही है। केरल प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष सुधीरन ने कहा कि कैबिनेट मे चर्चा किए बिना मुख्यमंत्री द्वारा इतने बड़े मसले पर लिया गया निर्णय और दिया जा रहा बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे प्रदेश के हितो को नुकसान पहुंचेगा। उनका कहना है कि चुनाव प्रचार के दौरान तो सीपीएम कह रही थी कि वह एक वैकल्पिक पावर प्रोजेक्ट के पक्ष में है, फिर एकाएक उसने अपना विचार क्यों बदल लिया? कांग्रेस नेता ने कहा कि इससे सुप्रीम कोर्ट मे प्रदेश सरकार की स्थिति कमजोर होगी और यह विधानसभा में पारित प्रस्ताव के भी खिलाफ है।

अब तो यह साफ लग रहा है कि एक संवेदनशील मसले पर सही ढंग से विचार किए बिना बयान देकर मुख्यमंत्री फंस गए हैं। यह सही है कि तमिलनाडु से बातचीत कर समस्या का समाधान निकाला जाना चाहिए। इतना तक यदि मुख्यमंत्री कहते, तो कोई बात नहीं थी, लेकिन यह कहकर कि यह बांध सुरक्षित है, वे तमिलनाडु के पक्ष को मजबूत कर रहे हैं, जो चाहता है कि नया बांध नहीं बने। (संवाद)