131 साल पुरानी पार्टी में राहुल के अध्यक्ष बनने का सिर्फ एक ही कारण है और वह है उनका नेहरू खानदान का होना। इसके अलावा उनके अंदर और कोई काबिलियत नहीं है। कांग्रेस का अतीत भले ही बहुत सुनहरा रहा हो, लेकिन इसका वर्तमान बहुत ही निराशाजनक है और इसका भविष्य इस समय तो अंधकारमय ही दिखाई पड़ रहा है।

कांग्रेस के नेतृत्व में इस समय सोनिया और राहुल की जोड़ी ही शामिल है और उसमें राहुल का रिकाॅर्ड कुछ भी नहीं है। दोनों के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार नीचे जा रही है। सच कहा जाय, तो 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले ही यह दुर्गति के हालात में पहुंच गई थी। 2013 में इसने दिल्ली, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भयानक हार पाई थी।

2014 के चुनाव में लोकसभा में इसकी संख्या घटकर 44 आ गई थी और उसके बाद के हुए चुनावांे में भी उसके पतन का सिलसिला जारी रहा। महाराष्ट्र में सत्ता से बाहर हो गई। हरियाणा में भी उसका वही हश्र हुआ। जम्मू और कश्मीर में भी उसके हाथ पराजय ही लगी। फिर झारखंड मंे उसकी दुर्गति हुई। दिल्ली विधानसभा चुनाव मे तो वह शून्य पर आउट हो गई। उसने असम और केरल कीे अपनी सरकारंे गंवा दी। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में उसे एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा।

अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और गुजरात में चुनाव हो रहे हैं। उन प्रदेशों में भी उसके पास हासिल करने के लिए कुछ नहीं है। उत्तराखंड में इस समय उसकी सरकार है। यदि वह उसे ही बचा ले, तो गनीमत है।

एक सामान्य लोकतंत्र में मिल रही इतनी हार के बाद मां और बेट अपने अपने पदों से इस्तीफा दे देते। सच कहा जाय, तो 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद उन दोनों ने इस्तीफे की पेशकश भी की थी, लेकिन वह सिर्फ कहने के लिए था। इस्तीफा देने का दोनों में से किसी का विचार नहीं था। मां बेटे को पता था कि उनके इस्तीफे का स्वागत करने की किसी में ताकत नहीं है और सब लोग उनके इस्तीफे को नकार देंगे।

इ्रस्तीफे की पेशकश के नाटक के बाद सोनिया गांधी ने एक और नाटक किया और वह था अपने चहेते ए के एंटोनी के नेतृत्व में एक जांच बैठाना जो यह पता करता कि कांग्रेस की हार क्यों हुई? जैसा कि उम्मीद थी एंटोनी ने अपनी रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला कि उस हार के लिए सोनिया और राहुल किसी भी रूप में जिम्मेदार नहीं हैं। उसके और क्या क्या निष्कर्ष हैं, इसका औपचारिक रूप से किसी को पता नहीं, क्योंकि उस रिपोर्ट को भी सार्वजनिक करने की जरूरत सोनिया गांधी ने महसूस नहीं की।

जब राहुल के अध्यक्ष बनने की चर्चा तेज हुई तो केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि उससे तो भाजपा के अच्छे दिन आ जाएंगे। इस वक्तव्य से एक बात तो पता चलता है कि भारतीय जनता पार्टी के अभी अच्छे दिन नहीं नहीं आए हैं। लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि स्मृति ईरानी को लगता है कि यदि राहुल कांग्रेस के अध्यक्ष बने, तो कांग्रेस का पतना और भी तेज हो जाएगा।

लेकिन कांग्रेसियों का सामंती दिमाग अभी भी अच्छे दिन आने का सपना देख रहा है। उसे लगता है कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से कोई चमत्कार हो जाएगा और कांग्रेस की स्थिति बेहतर होने लग जाएगी। लगता है कि कांग्रेसियों में सामूहिक आत्महत्या की प्रवृति आ गई है। राहुल और सोनिया को भी लगता है कि उन्हें अपने अपने पदों से चिपका रहना चाहिए, भले ही उसके कारण कांग्रेस का ही खात्मा न हो जाय। (संवाद)