इसमें कोई शक नहीं है कि पार्टी मोदी के सत्ता में आने के बाद अपनी संगठनात्मक गहराई को खोती जा रही है। चारो तरफ पार्टी में विद्रोह हो रहे हैं। राज्यों के नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। हाल के कुछ दिनों में दो पार्टी नेताआंे ने पार्टी छोड़ दी। छत्तीसगढ़ के अजित जोगी पार्टी छोड़कर एक नई पार्टी बनाने की घोषणा कर चुके हैं। महाराष्ट्र के कांग्रेस नेता गुरुदास कामत भी पार्टी छोड़ चुके हैं और उन्होंने तो राजनीति से ही संन्यास लेने की घोषणा कर दी है। इन दोनों नेताओं के कांग्रेस से बाहर होने के साथ साथ त्रिपुरा से 6 कांग्रेसी विधायकों को पार्टी छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने की खबरें भी आ रही हैं।

सच कहा जाय, तो कांग्रेस में बिखराव 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले सी दिखाई देने लगा था। आध्ंा्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी ने कांग्रेस छोड़कर एक क्षेत्रीय पार्टी बना ली थी। बाद में किरण रेड्डी भी पार्टी से बाहर हो गए। एनटीआर की बेटी पी देवी ने 2014 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का टिकट ले लिया। तमिलनाडु में मूपनार के बेटे जी के बासन ने पार्टी छोड़ दी थी। वहां की जयंती नटराजन का भी वही हाल हुआ। हरियाणा में वीरेन्द्र सिंह पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए। उत्तर प्रदेश मंे जगदंबिका पाल भी कांग्रेस छोड़ भाजपा के पाले में चले गए थे। उत्तराखंड में सतपाल महाराज ने भी पार्टी छोड़ दी थी। दिल्ली में कृष्णा तीरथ भी पार्टी से बाहर हो गई थी। पंजाब के जगमीत बरार ने भी कांग्रेस छोड़ना ही उचित समझा। हरियाणा के अवतार सिंह भडाना भी पार्टी से बाहर हो गए। जम्मू और कश्मीर में मंगत राम शर्मा ने भी कांग्रेस को छोड़ने में ही अपना हित देखा।

यानी 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले ही कांग्रेस में भगदड़ मची हुई थी, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व ने उस संकट की ओर ध्यान नहीं दिया, जिसके कारण वह भगदड़ मची। उसे लग रहा था कि इन सबके पार्टी में बाहर जाने के बावजूद सबकुछ ठीकठाक चल रहा है। पार्टी के शिखर नेतृत्व को लग रहा था कि पार्टी बहुत बड़ी है और कुछ नेताओं के इससे बाहर चले जाने से इसपर कोई असर नहीं पड़ेगा।

लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के दो साल पूरा होते होते कांग्रेस से भगदड़ और तेज हो गई है। अरुणाचल प्रदेश के अनेक विधायकों ने पार्टी छोड़ दी और वहां कांग्रेस सरकार का पतन ही हो गया। उसके बाद उत्तराखंड मे भी पार्टी के 10 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है और बाहरी विधायको के समर्थन से ही वहां की कांग्रेस सरकार बची हुई है। उत्तराखंड मंे चले तमाशे को पूरा देश देख चुका है। मणिपुर मे भी कांग्रेसी विधायकों में विरोध है। वह विरोध कर्नाटक तक पहुंचा हुआ है। असम में भी कांग्रेस में विद्रोह हुआ था और उसके एक बहुत ही महत्वपूर्ण नेता हेमंत बिस्व सर्मा पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए थे। कहते हैं कि हेमंत सर्मा के कारण ही कांग्रेस असम में हारी।

अजित जोगी का कांग्रेस छोड़ना पार्टी को बहुत भारी पड़ने वाला है। वे कांग्रेस के एक बड़े नेता हैं और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। वहां अब तक कांग्रेस और भाजपा का ही अस्तित्व है। एक तीसरी पार्टी के अस्तित्व में आ जाने के बाद वहां दिल्ली की तरह कांग्रेस हाशिए पर जा सकती है।

गुरुदास कामत का पार्टी छोड़ना भी कांग्रेस के लिए महंगा साबित हो सकता है। वे उन कांग्रेसियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो पार्टी के साथ हमेशा बुरे दिनों में भी बने रहे थे। अब वैसे लोगों को लगता है कि पार्टी को उनकी कोई जरूरत नहीं है।

आखिर पार्टी में ऐसी स्थिति क्यों आ गई है? इसका कारण यह है कि सोनिया गांधी और राहुल समस्या की विकरालता को नहीं समझ पा रहे हैं। इसका एक कारण यह भी है कि पार्टी में राहुल की स्थिति के बारे में भ्रम फैल रहा है। वे पार्टी का अध्यक्ष बनेंगे या नहीं, इसको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है। (संवाद)