सोनिया गांधी ने पिछले दिनों पार्टी के दो महारथियों को दो प्रमुख राज्यों का प्रभारी बना दिया। उन्होंने गुलाम नबी आजाद को उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंप दिया, तो पंजाब का प्रभारी कमलनाथ को बना दिया। हालांकि कमलनाथ ने अपनी उस जिम्मेदारी से अपने को अलग कर लिया है, लेकिन सोनिया गांधी के इन निर्णयों से तो जाहिर हो ही गया है कि उन्हें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर ही पार्टी को फिर से जिन्दा करने का भरोसा है।
उत्तर प्रदेश और पंजाब इस समय कांग्रेस के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य हैं। दोनों राज्यों मंे आगामी साल विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। पंजाब में कांग्रेस इस समय प्रमुख विपक्षी पार्टी है और अकाली दल- भाजपा की मिली जुली सरकार के पतन की सूरत में वह वहां सरकार बनाने का दावा कर रही हैं। असम और केरल गंवाने के बाद कांग्रेस के लिए पंजाब ही एक ऐसा प्रदेश है, जहां जीत हासिल कर कांग्रेस अपने पतन पर रोक लगा सकती है। वहां की चुनावी बागडोर अमरींदर सिंह के हाथ में है और कांग्रेस प्रभारी के रूप में कमलनाथ को जिम्मेदारी सौंपकर सोनिया गांधी ने जाहिर कर दिया कि वे वरिष्ठ लोगांे पर ज्यादा भरोसा करती हैं।
पंजाब की तरह उत्तर प्रदेश भी कांग्रेस के लिए काफी मायने रखता है। वहां पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चैथे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी। लोकसभा चुनाव में उसके दो उम्मीदवार ही जीते। लोकसभा चुनाव की हार के बाद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अस्तित्व की समस्या से जूझ रही है और उसे पता है कि यदि उत्तर प्रदेश मे ंअस्तित्वहीन हो गई, तो राष्ट्रीय राजनीति में अस्तित्वहीन होने में उसे ज्यादा समय नहीं लगेगी।
इसलिए उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में गुलाम नबी आजाद जैसे बुजुर्ग नेता को प्रभारी बनाकर सोनिया गंाधी ने जाहिर कर दिया है कि कांग्रेस के अस्तित्व की रक्षा की लड़ाई में वे वरिष्ठ और बुजुर्ग नेताओं पर ज्यादा निर्भर करती हैं। उत्तर प्रदेश के प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री थे। वे राहुल गांधी के खासमखास हैं। उनको वहां से हटाकर सोनिया गांधी ने अपनी पसंद दिखा दी है।
पंजाब में भी राहुल गंाधी के करीबी शकील अहमद कांग्रेस के प्रभारी थे। उन्हें हटाकर भी सोनिया गांधी ने संकेत दे दिया हैं कि वह फिलहाल राहुल गांधी के लोगों पर बहुत भरोसा नहीं कर सकती।
आखिर सोनिया गांधी पुराने लोगों पर भरोसा क्यों कर रही हैं? इसका एक कारण यह है कि वह राहुल की टीम पर दो एक सालों से काफी भरोसा कर रही थीं, लेकिन इस बीच कांग्रेस के पतन का दौर रोके रुक नहीं पा रहा है। राहुल की टीम कांग्रेस को एक के बाद एक हार मिलने से बचा नहीं पा रही है। यही कारण है कि अब वह राहुल गांधी की टीम पर भरोसा करने का खतरा अब नहीं लेना चाहती। हरियाणा राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के 14 विधायकों द्वारा किया गया विद्रोह कांग्रेस नेतृत्व की आंखें खोलने के लिए पर्याप्त था। इसके बाद सोनिया गांधी को लगा कि अब उन्हें सीधा हस्तक्षेप करना चाहिए।
कांग्रेस के अंदर दो पीढ़ियों का टकराव उस समय शुरू हुआ, जब 2013 में राहुल गांधी कांग्रेस के उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए थे। उसके बाद कांग्रेस के अनेक नेता पार्टी छोड़कर चले गए। नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने का सिलसिला अभी थमा नहीं है। पिछले दिनों अजित जोगी और गुरुदास कामत पार्टी से बाहर हो गए। उसके पहले विजय बहुगुणा भी पार्टी छोड़कर चले गए। अरुणाचल प्रदेश के अनेक नेता पार्टी से बाहर हो गए। असम में हेमंत बिस्व शर्मा भी बाहर होकर पार्टी की हार का कारण बने।
लगता है कि पार्टी से बाहर जाने की भगदड़ को रोकने के लिए ही सोनिया गांधी ने अब संगठन के मामलों में सीधा हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है। इससे जाहिर हो जाता है कि संगठन के अंदर सर्जरी करने की मांग को उन्होंने ठुकरा दिया है और कांग्रेस के अंदर आने वाले कुछ समय में कोई बड़ा बदलाव नहीं होने वाला है। (संवाद)
सोनिया को वरिष्ठ नेताओं पर भरोसा
संगठन में बड़े बदलाव में अभी समय लगेगा
कल्याणी शंकर - 2016-06-17 12:51
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को पहले लग रहा था कि पता नहीं राहुल के नेतृत्व में उनका क्या भविष्य होगा। लेकिन अब वे राहत की सांस ले रहे हैं। इसका कारण सोनिया गांधी द्वारा पिछले दिनों लिए गए कुछ निर्णय हैं, जिनसे यह स्पष्ट हो गया है कि पार्टी के अंदर वरिष्ठ नेताओं का महत्व अभी बना हुआ है और आगे भी इसका महत्व बना रहेगा।