2014 में लोकसभा चुनाव की शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस में चैतरफा बगावत हो रही है और पार्टी बिखरती जा रही है। विद्रोह के कारण अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस अपनी सरकार गंवा चुकी है। विद्रोह ने उसकी उत्तराखंड सरकार को हिलाकर रख दिया और बहुत मशक्कत के बाद कांग्रेस वहां अपनी सरकार बरकरार रख सकी। मणिपुर में भी पार्टी में विद्रोह गया था और वहां की सरकार गिरने ही वाली थी कि कांग्रेस नेतृत्व हरकत में आ गया और सरकार गिरने से बच गई।

लेकिन असम का कांग्रेस विद्रोह पार्टी को ले डूबा। वहां के एक कांग्रेसी नेता हेमंत बिस्व शर्मा ने पार्टी छोड़ दी थी और वे ही भारतीय जनता पार्टी की जीत के कारण बने। असम के अलावा छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस को विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है। वहां उसके एक प्रमुख नेता अजित जोगी ने पार्टी छोड़कर एक नई स्थानीय पार्टी बना ली है। हरियाणा में भी कांग्रेस मंे विद्रोह के कारण विधायकों ने नेतृत्व के आदेश के अनुसार मतदान नहीं किया और कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार की पराजय हो गई।

लेकिन अब कांग्रेस दक्षिण के उस राज्य में बगावत का सामना कर रही है, जहां उसकी सरकार है।े सच कहा जाय, तो कांग्रेस की सिर्फ एक ही बडे राज्य म ेअब सरकार बची है और वह राज्य कर्नाटक है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वहां बहुमत मिला था और वहां सिद्धारमैया की सरकार बनी थी।

राज्यसभा के चुनाव में बाद मुख्यमंत्री ने वहां 14 मंत्रियों को उनके पदों से हटा दिया और 13 नये मंत्रियों का शपथग्रहण करवा दिया। मुख्यमंत्री के उस निर्णय के कारण ही विद्रोह की यह स्थिति पैदा हो गई है। जिन्हें मंत्री पद से हटाया गया है, वे विरोध पर उतारु हो गए हैं और मुख्यमंत्री के खिलाफ अभियान चला रहे हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल करने में मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय नेतृत्व से सलाह मशविरा नहीं किया। कांग्रेस की एक के बाद एक हो रही हार के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को लगा कि अब केन्द्रीय नेतृत्व को ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत नहीं है। इसलिए उन्होंने पार्टी नेतृत्व से सलाह मशविरे की जरूरत नहीं महसूस की।

मुख्यमंत्री का यह फैसला पहले से ही विभाजित पार्टी में खलबली मचा रहा है। अन्य अनेक राज्यों की तरह कर्नाटक कांग्रेस में भी हमेशा से भारी गुटबाजी होती रही है। मुख्यमंत्री खुद एक गुट का नेतृत्व करते हैं और उनके गुट को बाहरी लोगों का गुट कहा जाता है।

इसका कारण यह है कि सिद्धारमैया मूल रूप से कांग्रेसी नहीं हैं। वे पहले जनता दल में हुआ करते थे। जनता दल के बिखरने के बाद वे 2005 में कांग्रस में आ गए। कांग्रेस मे आए उन्हें 11 साल हो गए हैं, लेकिन अभी भी मूल कांग्रेसी उन्हें बाहरी ही समझते हैं। बाहर से आए उनके समर्थकों को उनकी सरकार में ज्यादा तवज्जो मिल रहा है, जिसके कारण कांग्रेसियों में उनके खिलाफ हमेशा से आक्रोश रहा है। मंत्रिमंडल में उनके द्वारा किए गए फेरबदल के बाद आक्रोश अब ज्यादा ही बढ़ गया है।

सिद्धारमैया ओबीसी हैं और अपनी सरकार में वे ओबीसी को खास महत्व दे रहे हैं, जिसके कारण अगड़ी जातियों में उनके खिलाफ गुस्सा है। दलित जातियां भी उनके ओबीसी झुकाव को पसंद नहीं कर रही हैं।

कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व की लाचारी स्पष्ट है। वह सिद्धारमैया को नाखुश नहीं कर सकती और उनकी सरकार को हटाने का इस समय सवाल नहीं है, लेकिन उनके खिलाफ उठ रहे विद्रोह को नहीं दबाया गया, तो 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है। (संवाद)