जमीन तैयार करने के क्रम में भारतीय जनता पार्टी के साथ भारत धर्म जन सेना का संबंध केरल में और भी मजबूत करना था।

यह सच है कि अमित शाह ने अपनी पार्टी नेतृत्व को पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रदर्शन को लेकर पीठ थपथपाई थी और बहुत बधाई दी थी। भाजपा का मतप्रतिशत वहां 5 फीसदी से बढ़कर 15 फीसदी तक पहुंच गया है। भाजपा के एक उम्मीदवार की जीत भी हुई थी। लेकिन अमित शाह इस बात को लेकर दुखी हैं कि वहां एड़वा जाति का वोट भारतीय जनता पार्टी को बहुत कम मिला।

अमित शाह चाहते हैं कि उनकी पार्टी को 2019 में एड़वा जाति का ज्यादा से ज्यादा वोट मिले।

अमित शाह ने यह स्वीकार किया है कि भारतीय जनता पार्टी के मतों के प्रतिशत में वृद्धि भारत धर्म जन सेना के कारण हुई। लेकिन वे एड़वा जाति का एकमुश्त वोट प्राप्त करना चाहते है। गौरतलब है कि प्रदेश मंे एड़वा जाति के मतों का प्रतिशत 27 है। भारतीय जनता पार्टी को अपना उद्देश्य हासिल करने में मठ आड़े हाथांे आ रहा है। शिवगिरी मठ और भारत धर्म जन सेना क बीच पट नहीं रही है।

यही कारण है कि अमित शाह शिवगिरी मठ जा पहुंचे और वह भी बिना मठ अधिकारियों को सूचित किए। उनका उद्देश भारत धर्म जन सेना और मठ के बीच पैदा हो खाई को पाटना था।

गौरतलब हो कि मठ ने श्री नारायण धर्म परिपालन योगम के महासचिव नेतशन द्वारा भारतीय जनता पार्टी की निकटता को पसंद नहीं किया था। मठ नहीं चाहता कि योगम का भगवाकरण हो।

अमित शाह जो चाहते थे, उसे हासिल करने में क्या वे सफल रहे हैं? शुरुआती रिपोर्ट जो मिल रही है, उससे तो यही लगता है कि वे सफल नहीं रहे हैं। शाह ने मठ को 10 अरब रुपये की राशि का वायदा किया, ताकि मठ अस्पताल बनवा सके। इसके लिए शर्त यही थी कि मठ नतेशन से अपना संबंध अच्छा कर ले।

लेकिन अमित शाह के जाने के बाद भी मठ के प्रमुख ने इस मसले पर अपना मुह बंद कर रखा है। इसका मतलब तो यही है कि शाह ने मठ की सारी चिंताओं को समाप्त करने में सफलता नहीं पाई है।

यदि मठ को पटाने में अमित शाह सफल भी हो जाते हैं, तब भी एड़वा का एकमुश्त समर्थन पाना उनके लिए आसान नहीं है। इसका कारण यह है कि एड़वा जाति के लोग वामपंथी रुझान रखते हैं और उनका वह रुझान मठ के कारण समाप्त होने वाला नहीं है। (संवाद)