दूसरी तरफ कनाडा सरकार उन जवानों की मौत पर श्रद्धांजलि व्यक्त कर रही है और उनके परिवारों को मुआवजा देने की घोषणा कर रही है। मारे गए जवानो के शरीर को नेपाल लाया गया है। इस घटना ने गोरखा जवानो की तैनाती पर छिड़े विवाद को एक बार फिर जिंदा कर दिया है। नेपाल के लोग आरोप लगाते रहे हैं कि गोरखा जवानों की जिंदगी को सस्ता समझा जाता है और उन्हे वैसी जगहों पर तैनात किया जाता है, जहां मारे जाने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।

गौरतलब हो कि गोरखा जवानों को काबुल में कनाडा अपने दूतावास की रक्षा के लिए तैनात करता है। पिछले 20 जून को वे गोरखा जवान शाम 5 बजे अपनी जगह लेने के लिए जा रहे थे कि उसी समय उन पर आत्मघाती हमला हुआ। उसके कुछ समय बाद तालिबान और अफगानिस्तानी इस्लामिक स्टेट ने उस हमले की जिम्मेदारी ली।

दिलचस्प बात यह है कि कनाडा अपने जवानों का इस्तेमाल विदेशों मे अपने ठिकानों की रक्षा के लिए नहीं करता। वह अफगानिस्तान व अन्य देशों में अपने ठिकाने पर तैनाती के लिए गोरखा जवानों को नियुक्त करता है। कनाडा के जवानों को उस तरह के कार्य करने की इजाजत ही नहीं है।

अधिकांश देश अपने विदेशी ठिकानों की रक्षा के लिए आउटसोर्सिंग का सहारा लेते हैं, पर अमेरिका अपने ही लोगों को इस काम के लिए तैनात करता है। गोरखा जवान अपने बहादुरी, अनुशासन और प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं। उनके पास युद्ध करने की बेहतर कला भी है। यही कारण है कि इस तरह के काम के लिए उनकी दुनिया भर में मांग है।

लेकिन इसके साथ पैसे का मामला भी जुड़ा हुआ है। गोरखा की नियुक्ति सस्ता भी पड़ता है।

पर नेपाल इस बात पर गंभीरता से विचार कर रहा है कि अन्य देशों की सेना में नियुक्ति पर उनके नागरिकों को रोका जाय। गोरखा जवान आरोप लगाते रहे हैं कि इंग्लैंड की सेना में उनके साथ भेदभाव किया जाता है। उन्हें सबसे कठिन जगहों पर तैनात किया जाता है और उनको वेतन भी कम दिया जाता है।

गोरखा अंग्रेजों की सेना में 1815 से ही काम कर रहे हैं। उनकी शिकायत के बाद उन्हें खुश करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने उनको 2010 मे एक नया पेकेज दिया। 2015 में गोरखा के अंग्रेजी सेना में 200 साल पूरे हुए। उसके उपलक्ष्य में एक फंक्शन का आयोजन हुआ। लेकिन अब वहां महसूस किया जा रहा है कि गोरखा अब महंगे साबित हो रहे हैं।

अब नेपाल इस पर मांग पर गंभीरता से विचार कर रहा है कि विदेशी सेनाओं में उनके लोगों की भर्ती पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया जाय। लेकिन समस्या यह है कि विदेशों में रह रहे नेपाली अपने परिवारों के लिए आय प्राप्त करने वाले परिवार के सदस्य हैं और उन्हें सेना में भर्ती करने से रोकने से देश की अर्थव्यवस्था पर खराब असर पड़ सकता है। (संवाद)