अरविंद केजरीवाल जनमत संग्रह की अपनी मांग पर सफल होंगे या विफल- यह सवाल तो अपनी जगह है, लेकिन उन्होंने इस पर एक बहस जरूर शुरू करवा दी है।
दिल्ली को पूर्ण राज्य देने का मामला बहुत दिनों से उठाया जा रहा है। दिल्ली में अबतक जितने भी मुख्यमंत्री हुए हैं, उन सबों ने पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग की है। अरविंद केजरीवाल के पहले कांग्रेस की शीला दीक्षित यहां की मुख्यमंत्री 15 साल तक थीं। उन्होंने इस तरह की मांग कई बार उठाई थी। उनका कहना था कि दिल्ली पुलिस के दिल्ली सरकार में हुए बिना यहां कानून व्यवस्था की स्थिति सुधारी नहीं जा सकती। वे अनेक बार अपना गुस्सा जाहिर कर चुकी थीं।
शीला दीक्षित के पहले दिल्ली में भाजपा की सरकार थी। पांच साल के कार्यकाल में तीन मुख्यमंत्री वहां हो चुके थे। उस समय भाजपा के मुख्यमंत्री भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग किया करते थे।
पिछले साल हुए विधानसभा के चुनाव में केजरीवाल को अभूतपूर्व सफलता मिली थी। प्रदेश की 70 में से 67 सीटों पर उनकी पार्टी की जीत हुई थी। उस जीत के बाद केजरीवाल का उत्साह बढ़ा और उन्होंने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की अपनी मांग को तेज कर दिया। पिछले महीने उन्होंने तो दिल्ली के पूर्ण राज्य दर्जा देने के लिए एक विधेयक का मसविदा भी जारी कर दिया है। उस मसविदे के अनुसार दिल्ली का एनडीएमसी क्षेत्र केन्द्र सरकार के अधीन ही होगा। उसके अलावे अन्य क्षेत्र दिल्ली की सरकार के अधीन होंगे। 30 जून तक दिल्ली के लोगों से इस मसविदे पर राय मांगी गई थी।
ऐतिहासिक रूप से देखा जाय, तो आपात्काल के बाद जनता पार्टी की सरकार ने संविधान के 44वें संशोधन के द्वारा देश में जनमतसंग्रह का प्रावधान करने की कोशिश की थी, लेकिन वह सफल नहीं हुई। भारत में एक ही ऐसा उदाहरण है, जहां राज्य ने जनमतसंग्रह करवाया था। यह 1967 का मामला है और गोवा की बात है। तब गोवा ने भारत संघ में अपनी स्थिति तय करने के लिए जनमतसंग्रह करवाया था। 1976 में गोवा की विधानसभा में पूर्ण राज्य का प्रस्ताव पारित किया गया और 1987 में राजीव गांधी के समय उसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
जो दिल्ली के पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग करते हैं, उनका कहना है कि संप्रभुता देश की जनता में निवास करती है और जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि ही ज्यादा ताकतवर होना चाहिए न कि केन्द्र द्वारा नियुक्त किया गया उपराज्यपाल। जनमतसंग्रह के पक्ष में वे दलील देते हैं कि संविधान में भले ही इसका प्रावधान नहीं हो, लेकिन जनमतसंग्रह करवाकर जनता की राय जानना गलत नहीं है।
जो लोग दिल्ली के पूर्ण राज्य बनने का विरोध करते हैं, उनका कहना है कि दिल्ली में ही संसद, राष्ट्रपति भवन और दुनिया के अन्य देशों के दूतावास हैं। उन्हंे राज्य सरकार के प्रशासन के अधीन रखने में समस्या पैदा हो सकती है। इसके अलावे दुनिया के अन्य अनेक राजधानियों में संघ की ही सरकार होती है।
ज्नमतसंग्रह का विरोध करते हुए कहा जाता है कि संविधान में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है और यदि ऐसा कराया गया, तो देश के अन्य हिस्सों मे क्षेत्रीय अस्मिता से जुड़े मसले पर जनमत संग्रह की मांग की जा सकती है। केजरीवाल अभी स्पष्ट नहीं कर रहे हैं कि किसके द्वारा वे जनमतसंग्रह करवाएंगे। क्या वे इसके लिए भारत के निर्वाचन आयोग की सहायता लेंगे या दिल्ली के किसी एजेंसी का इस्तेमाल करेंगे? (संवाद)
दिल्ली में पूर्ण राज्य के लिए जनमत संग्रह
पूर्ण राज्य बनने की फिलहाल कोई र्संभावना नहीं
कल्याणी शंकर - 2016-07-01 18:26
ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से एक जनमत संग्रह के द्वारा अलग होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यहां भी जनमत करने की मांग की है और कहा है कि दिल्ली के पूर्ण राज्य के मामले को इसके द्वारा सुलटाया जाना चाहिए। सवाल उठता है कि क्या दिल्ली में इसके लिए जनमत संग्रह होना चाहिए? और यदि ऐसा हुआ, तो यह भानुमति का पिटारा खोलने जैसा नहीं होगा? क्या देश के अन्य हिस्से के लोग अपनी अपनी क्षेत्रीय अस्मिता की मांग लेकर जनमतसंग्रह कराने को आंदोलित नहीं हो जाएंगे?