ब्रिटिश राज में आम बजट से रेल बजट को अलग से पेश करने के लिए एक्वॉर्थ कमेटी ने सिफारिश की थी जिस पर अमल करते हुए ब्रिटिश सरकार ने रेलवे के विकास के लिए अलग से बजट पेश करने की परंपरा प्रारंभ की थी। इसके पीछे तर्क यह दिया गया था कि रेलवे पर विशेष फोकस रखने के लिए जरूरी है कि इसका बजट अलग से पेश किया जाए ताकि इसके समर्पित और विशेष विकास के लिए दूसरे से इजाजत और आदेश की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़े। रेलवे चूंकि एक वृहद पूंजी प्रवाह वाला क्षेत्र है जिसमें भारी मात्रा में माल और यात्री ढोए जाते हैं। भारी मशीनरी और अन्य उपकरणों से सुसज्जित रेलवे को पटरियों के क्षरण और जंग से खराब हो रही मशीनरी की रिपेयरिंग के लिए वित्त मंत्रालय और अन्य विभाग से अनुमति लेने और बजट मांगने और मिलने के बीच रेलवे को हजारों करोड़ का नुकसान हो जाता था इससे बचने के लिए ही ब्रिटिश सरकार ने रेलवे का अपने विकास को समर्पित बजट बनाने और पेश करने की अनुमति दी थी। इससे रेलवे में सुरक्षा और संरक्षा से संबंधित कार्यों में भी भारी सुधार आया था। तब से लेकर अब तक उसी परंपरा के तहत रेलवे का अलग बजट बनता रहा है। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि रेलवे ने जो भी विकास किया है उसके पीछे उसका अपना बजट ही था। इसके लिए 100 में से 95 अंक देने में कोई बुराई नहीं है। यदि रेलवे से इसका अपना बजट छीना जाता है तो इसके भारी दुष्परिणाम सामने आयेगा और यह रेलवे के लिए आत्मघाती और आत्महत्या को मजबूर करने वाला साबित होगा।

जुलाई 1991 में जब भारत सरकार ने देश को विश्व बाजार से अपने आप को जोड़ते हुए उदारीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ की थी तो भारत सरकार पर कॉरपोरेट मीडिया संस्थानों, मार्केट इकोनोमी की लॉबिइंग करने वालों ने भारत सरकार पर भारी दबाव बनाया था कि रेल बजट को समाप्त करके आम बजट में समाहित किया जाए ताकि रेलवे की लोकप्रिय बजट का युग समाप्त हो जा और यह मार्केट से जुड़ जाए ताकि इसका अंतर विभागीय सब्सिडी खत्म कर दिया जाए जो माल भाड़े से हुई कमाई को यात्री किराये में समायोजित की जाती है। यही नहीं इन पैराकारों ने यह पुरजोर कोशिश की कि रेलवे का किराया रोड वेज और सस्ती एअरलाइनों के बराबर किया जाए ताकि बाजार में प्रतियोगिता का माहौल बने।

खुले बाजार के इन पैरोकारों की बातें नीति आयोग को समझ में आ गया है इसलिए उसने रेल बजट को समाप्त करने की सिफारिश कर दी है। यह भी देखा जाता है कि रेलवे हमारे देश की जीता जागता ऐसा तंत्र है जो कि हर भारतीय को दिखता है। नेताओं के लिए अपने क्षेत्र नए स्टॉप की मांग करना, नई रेल लाइन बिछाने की मांग करना कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो रेलवे की महत्ता को रेखांकित करता है। हालांकि ऐसी मांगों को रेलवे बोर्ड वाणिज्यिक महत्व के आधार पर देखता है और निर्णय करता है न कि भारतीय संसद।

एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि रेल बजट समाप्त होने के बाद रेल मंत्रालय का वित्त मंत्रालय के साथ संबंध तनावपूर्ण हो जांएगे और आम जनता को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। इसके बावजूद नीति आयोग का तर्क है कि भारतीय संविधान के तहत आम बजट ही संवैधानिक है, न कि रेल बजट।

आने वाले दिनों में पूंजीवादी व्यवस्था के पैराकारों, खुले व्यवसाय के पैराकारों की पूरी कोशिश होगी कि एनडीए सरकार रेलवे का वाणिज्यिकीकरण कर दे ताकि बाजार का विस्तार होगा। यह जानते हुए कि भारत एक कल्याणकारी लोकतांकि देश है जहां आम जनता ही इसकी स्वामी है, प्रभु सत्ता है। फिर भी क्षणिक सत्ताधारी लोक कल्याण को कुचलने वाले फैसले लेने को तैयार है। वर्तमान में रेलवे में सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत कल्याणकारी राज्य और वाणिज्यिक हित दोनों एक साथ नहीं चल सकते। यह तभी संभव है जब भारत एक विकसित देश बन जाए और देश से गरीबी को समाप्त कर दिया जाए।

नीति आयोग द्वारा की गई अनुसंशा के आलोक में यह कहा जा सकता है कि यह रेल सेवा को निजी हाथों में सौंपने की एक महीन विधि है जो भारत के लोगों को सस्ती रेल सेवा से दूर करेगा और गरीबों के लिए रेल यात्रा सपना बन जाएगा। अभी देश की बहुत बड़ी आबादी के लिए रेल यात्रा एक सुगम और सहज यात्रा के लिए उपलब्ध है जो आने वाले दिनों में महंगी होने के कारण सपना बन सकती है। इससे बाजार की व्यवस्था भी तबाह होगी जिसमें सस्ती यात्री किराये के कारण सस्ते श्रम की आपूर्ति रेलवे के माध्यम से ही देश को मिल पाता है। इससे श्रम मूल्य बढ़ेगा, महंगाई बढ़ेगी और कई आवश्यक वस्तुओं के मूल्य अपने आप बढ़ते जाएंगे। अंत में यही कहा जा सकता है कि भारतीय रेलवे अपने इस यश को धूमिल कर लेगी जो इसे भारत का जीवंत जीवन रेखा होने का गौरव प्राप्त है। फिर भी एक आशा की किरण अभी बची हुई है जिसमें यह दिख रहा है कि एनडीए सरकार रेलवे के उद्धार के क्रम में कुछ ऐसे कार्य भी कर रही है जो इसके लिए जरूरी है लेकिन उसे पुराने ढांचे में ही जारी रखा जाए ताकि रेलवे की चमक धूमिल न हो और ही सामाजिक कल्याण का मार्ग अवरूद्ध हो सके।

अंग्रेजी से अनुवाद- शशिकान्त सुशांत, पत्रकार