मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश यादव और उनके भाई शिवपाल सिंह यादव, जो खुद भी अखिलेश सरकार में एक मंत्री हैं, आपस में उलझे हुए हैं। दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश में मुलायम सिंह यादव लगे हुए हैं।

चाचा और भतीजा के बीच कलह उस समय सार्वजनिक हो गया, जब मुख्यमंत्री ने अपने कैबिनेट के एक मंत्री बलराम सिंह यादव को बर्खास्त कर दिया। बलराम सिंह से मुख्यमंत्री की नाराजगी का कारण था कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी मंे विलय की की गई घोषणा। यह घोषणा शिवपाल यादव ने की थी और विलय करवाने की बातचती में बलराम सिंह ने सक्रिय भूमिका निभाई थी।

विलय का गुस्सा मुख्यमंत्री ने बलराम सिंह पर निकाल दिया और दूसरी तरफ शिवपाल ने घोषणा कर दी थी कि मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का विलय मुलायम की सहमति से हुआ था।

बेटे और भाई के झगडे में मुलायम ने अपने बेटे का साथ दिया और उस विलय को निरस्त घोषित कर दिया गया। लेकिन उस घोषणा के बाद शिवपाल की तल्खी अखिलेश यादव से और भी बढ़ गई।

मुलायम के मौसेरे भाई राम गोपाल यादव के जन्मदिन समारोह मे शिवपाल की नाराजगी लोगांे ने देखी। उस समारोह में वे देर से आए और मंच पर बैठने की जगह उन्होंने स्रोताओं के बीच ही बैठना उचित समझा। नजर पड़ने पर सपा के नेता उन्हें मंच पर लाए, लेकिन वे मंच पर भी पीछे की तरफ ही बैठे। समारोह में नेताओं ने जो भाषण दिए, उससे भी यही पता चला कि मुलायम परिवार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।

सच कहा जाय, तो शिवपाल को लेकर अखिलेश यादव पिछले लंबे समय से परेशान हैं। अखिलेश यादव मुख्यमंत्री के साथ साथ उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष भी हैं। लेकिन पार्टी के निर्णयों मे अनेक बार उनसे बातचीत तक नहीं की जाती है और निर्णय ले लिए जाते हैं। इसके कारण अखिलेश यादव परेशान रहते हैं।

शिवपाल यादव ने तो एक बार अखिलेश के दो खास नेताओं को पार्टी से ही निकाल दिया था। बाद मं अखिलेश के कारण वे न केवल पार्टी मे दुबारा शामिल हुए, बल्कि वे विधानपरिषद के सदस्य भी बनाए गए।

कहते हैं कि अमर सिंह और बेनी प्रसाद वर्मा को भी अखिलेश यादव पार्टी में नहीं लाना चाहते थे, क्योंकि पार्टी से बाहर जाकर दोनों ने पार्टी के खिलाफ खूब आग उगली थी। फिर भी शिवपाल ने दोनों को पार्टी में शामिल करवाकर दोनों को राज्य सभा का सांसद बनवा दिया।

अखिलेश यादव अपनी छवि को लेकर बेहद सतर्क रहते हैं। वे नहीं चाहते कि उनके ऊपर आपराधिक लोगों के साथ होने को आरोप लगे। यही कारण है कि जब एक मंच पर उन्हें अतीक अहमद के साथ बैठने की विवशता आई, तो वहां भी उन्होंने अपने को अतीक से दूर रखा।

पिछले विधानसभा चुनाव के समय जब डीपी यादव को पार्टी में शामिल किया जा रहा था, तब भी अखिलेश ने उसका विरोध किया था। इसके कारण उन्हें काफी वाहवाही मिली थी और कहा जाता है कि पार्टी की जीत के लिए अखिलेश का वह कदम भी जिम्मेदार था।

अखिलेश की अपनी राजनीति है और शिवपाल यादव अपनी राजनीति कर रहे हैं। लेकिन इसके कारण सपा में पारिवारिक कलह बढ़ता ही जा रहा है। (संवाद)