दावा किया जा रहा है कि भारत ने पाकिस्तान के साथ बातचीत की यह पेशकश इसलिए की है, क्योंकि इअ यह अपने को ज्यादा आश्वस्त पा रहा है। पर सचाई यह है कि यह पेशकश अमेरिका के दबाव में की गई है। जाहिर है भारत का बहुत ही अल्प अवधि में दो बार अपमानित होना पड़ा है।

भारत की पेशकश के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी जिस तरह के दावे कर रहे हैं उससे पता चलता है कि किस तरह भारत बातचीत की पेशकश के लिए बाध्य किया गया। पाकिस्तान अपनी खुशी छिपा नहीं पा रहा है। कहने की जरूरत नहीं कि भारत ने जिस हड़बड़ी में बातचीत की पेशकश कर डाली है, वह इसके लिए शर्मनाक है। बातचीत की संभावना से साफ इनकार करते हुए एकाएक बातचीत के लिए लालायित दिखना मजबूती नहीं कमजोरी की निशानी है।

यह कहना कठिन है कि दोनों देशों की बातचीत के क्या परिणाम निकलेंगे। लेकिन जो साफ साफ दिखाई दे रहा है वह यह है कि आज भारत रक्षात्मक मुद्रा में आ गया है। मुंबई हमले की याद धंुधलाने लगी है। उसके कारण अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत को जो समर्थन हासिल होता था, वह अब घटने लगा है। दूसरी ओर पाकिस्तान अब भारत को लेकर ज्यादा आक्रामक रवैया अपनाने लगा है। पाकिस्तान ने अब अपनी आंतरिक स्थिति भी मजबूत कर ली है। आतंकवादियों के हमले की तीव्रता वहां कम हो गई है।

भारत से संबंधित पाकिस्तान के राजनय की मूल धारणा में कोई बदलाव नहीं आया है। पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष के कुछ बयानों से साफ लगता है कि पाकिस्तान की सेना की रुख दक्षिण और पश्चिम की ओर भारत की तरफ ही है और भारत के साथ युद्ध की स्थिति में अफगानिस्तान को वह अपनी रणनीतिक गहराई बनाना चाहता है। पाकिस्तान में भारत विरोधी तत्वों के हौसले बुलंद हैं। भारत विरोघी जेहादी खुश हैं कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिक अगले दो साल में चले जाएंगे। दूसरी तरफ अमेरिका और उसके सहयोगी देश तालिबान का अच्छा और खराब तालिबान में बांटकर अच्छे के साथ बातचीत की पेशकश करने मे लगे हुए हैं।

अमेरिका और उसके सहयोगी देशों द्वारा तालिबान के तुष्टीकरण से भारत का ही नुकसान होने वाला है। इससे अलकायदा को मजबूती मिलेगी। भारत विरोधी जेहादी संगठनों को नई ताकत मिलेगी। लंदन में जेहादियों की जीत हो भी चुकी है। भारत की बात को वहां दरकिनार कर दिया गया। वैसे लंदन सम्मेलन मे जेहादियों की जीत पहले से ही तय थी, क्योंकि अमेरिका ने अपना रुख साफ कर रखा था। अमेरिका की समस्या यह है कि किसी समस्या को वह दीर्घकालीन रूप में नहीं देखता और वह अपने सैनिकों को भी मरते नहीं देख सकता।

अब पाकिस्तान अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के हटने का इ्रतजार करेगा। इसके कारण भारत के साथ होने वाली बातचीत में वह कड़े रुख का इजहार करेगा। वह कश्मीर समस्या को फिर बातचीत का मुख्य मसला बनाना चाहेगा, हालांकि उसने फिलहाल कश्मीर की रट लगाने पर विराम लगाया हुआ था। (संवाद)