सबसे पहले तो उन्होंने अपनी पार्टी के सुब्रह्मण्यन स्वामी को उनकी सही जगह दिखाई। उसके बाद उन्होंने स्मृति ईरानी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हटा दिया और उन्हें कपड़ा मंत्रालय मे भेज दिया।

दिल्ली के लिए नया होने के साथ साथ एक और कारण है, जिससे मोदी ने दो साल का यह लंबा समय लिया। वे चाह रहे थे कि उनके लोग इस बीच अपने आपको सुधारें। उन्हें सुधारने के लिए वे समय दे रहे थे। वे यह भी उम्मीद कर रहे थे कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली लोगों को अनुशासित करने का काम करें।

नरेन्द्र मोदी की यह रणनीति कुछ काम भी कर रही थी। योगी आदित्यनाथ, साक्षी महाराज और उनके जैसे अन्य भगवा ब्रिगेड के लोग बहुत हद तक शांत रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत तक ने अपने उस पुराने थेसिस को आगे बढ़ाना बंद कर दिया है, जिसके तहत वे सारे भारतीयों को हिंदू कहते हैं।

विपक्ष की स्थिति इस समय ठीक नहीं है। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस का बुरा हाल है। वह अनेक मामलों मे अनिर्णय की स्थिति में है। प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश के चुनाव में झोंकने को लेकर वह सांप छुछूंदर की स्थिति में है। उधर आम आदमी पार्टी एक के बाद एक विवादों मे फंसती जा रही है। जाहिर है, इन सबके कारण नरेन्द्र मोदी आगामी लोकसभा चुनाव के समय भी फायदे में रहेंगे।

यदि देश की अर्थव्यवस्था का विकास तेज होता है, जैसे हमारी सरकार के आंकड़े कह रहे हैं, तो इससे 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव में ही भाजपा को लाभ नहीं होगा, बल्कि 2019 के लोकसभा में भी पार्टी फायदे में रहेगी। हालांकि सच यह भी है कि अमेरिका भारत के विकास के आंकड़े पर संदेश व्यक्त कर रहा है।

स्मृति ईरानी को मानव संसाधन मंत्रालय से हटाकर नरेन्द्र मोदी ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को भी संदेश दे दिया है कि वह विश्वविद्यालयों में ज्यादा उधम नहीं मचाए। गौरतलब है कि हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में समस्या अखिल भारतीय विद्याथी परिषद का अन्य छात्र संगठनों के साथ टकराव के साथ ही शुरू हुई थी।

स्मृति ईरानी ने उन टकरावों के दौरान अखिल भारतीय विद्याथी परिषद का पक्ष लिया था। उसके कारण उन दोनों विश्वविद्यालयों मे स्थितियां और भी बिगड़ीं।

आरएसएस के स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय मजदूर संघ जैसे संगठन फिलहाल शांत हैं। विदेशी निवेश की नीतियों को बढ़ावा देने की मोदी सरकार की घोषणाओ के बाद भी वे लगभग चुप ही हैं, लेकिन अखिल भारतीय विद्याथी परिषद खासा सक्रिय हैं।

स्मुति ईरानी ने अखिल भारतीय विद्याथी परिषद के हाथ का खिलौना अपने आपको बना दिया था। आरएसएस के कुछ बड़े नेताओं के प्रभाव में आकर वह विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में ज्यादा ही हस्तक्षेप करने लगी थीं। इसका कारण शायद यह भी है कि वे कभी किसी काॅलेज या विश्वविद्यालय मे रही ही नहीं हैं। इसलिए वहां के बारे मे उनका पता ही नहीं है।

मोदी ने अपने आपको स्थापित करना शुरू कर दिया है, लेकिन उनकी पार्टी के अंदर और आरएसएस हलकों में भी उनको लेकर बेचैनी है। (संवाद)