सत्ता पा लेने के बाद अब संघ ऐसे लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठा रहा है, जिनकी क्षमता संदिग्ध है। शिक्षा के केन्द्रों के शीर्ष पर अयोग्य लोगों को बैठाया जा रहा है।

इसमें कोई दो मत नहीं कि सत्तारूढ़ पार्टियां अपनी पसंद के लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाती हैं। मंत्रिपरिषद में भी वह अपनी पार्टी के लोगों को ही रखती हैं और संवैधानिक पदों पर नियुक्ति करते समय भी वह इसी का ख्याल रखती हैं। इसलिए यदि संघ के प्रचारकों को सत्ता के महत्वपूर्ण केन्द्रों पर बैठाया जा रहा है तो इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

लेकिन सवाल तब खड़ा होता है, जब किसी महत्वपूर्ण पद पर किसी ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है, जो उस पद के योग्य ही नहीं है। ऐसा अनेक मामलों मे हो चुका है। पिछले दो सालों के दौरान संघ से जुड़े अनेक अयोग्य लोगों को महत्वपूर्ण जगहों पर बैठा दिया गया है।

उदाहरण के लिए गजेन्द्र चैहान कोे फिल्म प्रशिक्षण के जुड़े एक संगठन का प्रमुख बना दिया गया। उन पर आरोप लगे कि वे उस पद के योग्य नहीं हैं। बाद में उन्होंने खुद इसे साबित भी कर दिया। उसी तरह फिल्म सेंसर बोर्ड के प्रमुख के पद पर पहलाज निहलानी को बैठा दिया गया। उन्होंने भी यह साबित कर दिया कि वे उस पद के योग्य नहीं हैं।

चेतन चौहान एक क्रिकेटर रहे हैं। क्रिकेट या खेल से जुड़े संगठन में यदि उनकी नियुक्ति की जाती, तो किसी को आपत्ति नहीं हो सकती थी, लेकिन उन्हें फैशन डिजायनिंग से संबधित एक संस्था का प्रमुख बना दिया गया।

सबसे ज्यादा चिंता पैदार करने वाली बात यह है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के भारत को हिन्दू राष्ट्र में बदलने के एजेंडे पर भी काम हो रहा है। भगवा ब्रिगेड को इस बात की समझ नहीं है कि भारत में सांस्कृतिक और सामाजिक बहुलता है। यहां अनेक धर्मो को मानने वाले लोग रहते हैं। अल्पसंख्यकों की तादाद भी यहां बहुत ज्यादा है। लेकिन उनके ऊपर भी संघ अपना विचार थोपने की कोशिश कर रहा है।

संघ शैक्षणिक संस्थानों मे सीधा हस्तक्षेप कर रहा है। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक खबर में बताया गया कि पिछले 5 जुलाई को 6 कुलपतियो और 30 प्रोफसरों की एक बैठक छतीसगढ़ में हुई और वह बैठक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आयोजित की थी। उस बैठक में छत्तीसगढ़ के शिक्षामंत्री भी शामिल थे।

1966 में केन्द्र सरकार द्वारा जारी किए गए एक नोटिस के अनुसार भारत या राज्य सरकारों के अधिकारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जमात उलेमा की बैठकों में शिरकत नहीं कर सकते। उस नोटिस को अभी तक वापस नहीं लिया गया है, पर आरएसएस की बैठकों मे सरकारी अधिकारियों को बुलाया जाना शुरू हो गया है। (संवाद)