अब कांग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया है। कहने की जरूरत नहीं कि वहां भी कांग्रेस बुरी तरह हारने वाली है और उस हार का ठीकरा शीला दीक्षित के सिर पर ही फोड़ा जाएगा। उन्होंने पार्टी के आदेश को स्वीकार भी कर लिया है। जाहिर है, उन्होने अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है, जो आजकल अन्य नेताओं में नहीं देखी जा सकती। शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने से कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी अपने बयानों में गलत साबित हो रहे हैं।

पहली बात तो यह है कि राहुल गांधी दावा कर रहे थे कि वे पार्टी में युवाओं को आगे बढ़ाएंगे और पीढ़ियों का बदलाव होगा, लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में जिस शीला दीक्षित को उतारा गया है, वे 78 साल की नेता हैं।

दूसरी बात यह है कि कांग्रेस का जाति और धर्म से उठकर राजनीति करने का दावा भी तार तार हो गया है। शीला दीक्षित को ब्राह्मण चेहरा बनाकर पेश किया जा रहा है। कांग्रेस मान रही है कि उनके द्वारा ब्राह्मणों को पार्टी अपनी ओर आकर्षित कर सकती हैं। गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की तादाद बहुत ज्यादा है और वे प्रदेश की कुल आबादी के 10 प्रतिशत हैं।

पर सवाल उठता है कि जाति सम्प्रदाय से उठकर राजनीति करने का दावा अब कांग्रेस किस मुह से करेंगी, क्योंकि ब्राह्मण चेहरे के नाम पर वह उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के एक वर्ग से वोट मांगती दिखाई दे रही है?

सोनिया और राहुल किसी भी तरह उत्तर प्रदेश में मर रही कांग्रेस को बचाना चाह रहे हैं और इसके लिए उन्होंने ब्राह्मण कार्ड खेला है, लेकिन उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह बात है कि शीला दीक्षित के द्वारा पार्टी प्रियंका और राहुल गांधी को बचाने की कोशिश की जा रही है।

कार्यकर्ताओं की मांग पर प्रियंका गांधी को पूरे प्रदेश में प्रचार के लिए उतारा जा सकता है। इसके पीछे कार्यकत्र्ताओं की मांग ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के खुद भी वहां प्रासंगिक होने का सवाल है। इसके लिए प्रियंका गांधी के रूप में कांग्रेस अपनी अंतिम पत्ते का इस्तेमाल करने जा रही है।

पर यदि यह अंतिम पत्ता भी नहीं चला, तो कांग्रेस और खुद प्रियंका का क्या होगा? इसी डर के कारण शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान मे उतारा जा रहा है। यदि कांग्रेस की स्थिति बेहतर हुई, तो वाहवाही प्रियंका गांधी की होगी और यदि पार्टी की स्थिति बदतर हुई, तो उसका दोष शीला दीक्षित के सिर पर डाल दिया जाएगा। इसके बाद प्रियंका गांधी आने वाले समय में भी तुरुप के पत्ते के रूप में देखी जा सकती है।

जाहिर है, शीला दीक्षित का इस्तेमाल बलि के बकरे के रूप में किया जा रहा है। कांग्रेस की स्थिति उत्तर प्रदेश में बेहद खराब है। वह वहां चैथे नंबर की पार्टी है। पहले दो नंबर पर अभी भी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी है। तीसरे नंबर पर भारतीय जनता पार्टी है, जबकि कांग्रेस चैथे नंबर पर है। इसलिए एक जुगाड़ के रूप में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बना दिया गया है। (संवाद)