इस खेल में बहु शीला दीक्षित हैं और बेटी हैं प्रियंका गांधी। पहली बार कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार शीला दीक्षित के रूप में उतारा है। प्रियंका गांधी अबतक अमेठी और रायबरेली में ही चुनाव प्रचार करती रही हैं। पहली बार वह इन दो लोकसभा क्षेत्रों से बाहर उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार करेंगी।
64 साल के राज बब्बर को कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश का पार्टी अध्यक्ष बनाया है। उनके पहले निर्मल खत्री प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे। निर्मल खत्री आचार्य नरेन्द्र देव के पोते हैं। गुलाम नबी आजाद को उत्तर प्रदेश का पार्टी प्रभारी बनाया गया है। पूर्व मंत्री संजय सिह को पार्टी के चुनावी अभियान की कमान सौंपी गई है। आरपीएन सिंह को पार्टी का वरिष्ठ उपाध्यक्ष बनाया गया है। इसके अलावा भी चार अन्य उपाध्यक्ष बनाए गए हैं।
कांग्रेस के अंदर नये लोगांे को आगे बढ़ाने के लिए माथापच्ची चल रही थी, लेकिन उत्तर प्रदेश चुनाव में पार्टी ने युवाओं पर विश्वास नहीं किया है और बुजुर्ग नेताओं के हाथ में ही पार्टी की कमान सौप दी गई है।
कांग्रेस को लगता है कि यह रणनीति काम आएगी। प्रशांत किशोर को मुख्य रणनीतिकार के रूप में कांग्रेस ने किराए पर लिया है। उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब का जिम्मा भी उन्हें ही सौंपा गया है।
कांग्रेस 1989 के बाद से लगातार वहां सत्ता से बाहर है। नारायण दत्त तिवारी उसके अंतिम मुख्यमंत्री थे। इस समय पार्टी वहां चैथे नंबर पर है। इसलिए पार्टी के पास अब वहां खोने के लिए कुछ भी नहीं है। वह वहां अपनी स्थिति में सुधार की ही उम्मीद रख सकती है। यदि 2009 के लोकसभा चुनाव की तरह उसकी स्थिति बेहतर होती है, तो कांग्रेस के लिए इससे बेहतर स्थिति और कुछ भी नहीं हो सकती, क्योंकि पार्टी नेताओं को पता है कि वे उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।
शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करके कांग्रेस ने ब्राह्मण मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश की है। ब्राह्मण वहां की आबादी के कुल 10 फीसदी हैं और जाटवों के बाद वे वहां की दूसरी सबसे अधिक आबादी वाली जाति है। शीला दीक्षित का सोनिया परिवार से बहुत अच्छा रिश्ता रहा है। उनकी नजदीकी का पता इसी से लगाया जा सकता है कि प्रियंका गांधी की शादी में बहुत ही कम लोगों को आमंत्रित किया गया था और उनमें एक शीला दीक्षित भी थीं।
शीला दीक्षित उमा शंकर दीक्षित की बहु हैं। उमाशकर दीक्षित ब्राह्मणों के एक प्रतिष्ठित नेता थे और केन्द्र मंे गृहमंत्री भी थे। चूंकि कांग्रेस ने अपनी दूसरी श्रेणी के नेताओ को विकसित नहीं किया है और उत्तर प्रदेश में पार्टी के सामने नेतृत्व का संकट था, इसलिए शीला दीक्षित को वहां मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश करना पड़ा है।
प्रियंका गांधी के बाद शीला दीक्षित कांग्रेस के लिए दूसरी वैसी सबसे उपयुक्त नेता थीं, जिन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया जा सकता था। कांग्रेस ने वैसा ही किया। यदि कांग्रेस की स्थिति बेहतर होती है, तो इसका श्रेय प्रियंका गांधी को दिया जाएगा, क्योंकि वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से मुख्य प्रचारक होंगी। और यदि कांग्रेस की स्थिति और भी खराब हो जाती है, तो उसके लिए शीला दीक्षित को जिम्मेदार ठहरा दिया जाएगा और कहा जाएगा कि पार्टी ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के चयन में गलती कर दी थी।
कांग्रेस का चुनावी हश्र चाहे जो भी हो, शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने से कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं में उत्साह की लहर दौड़ रही है और चुनाव के पहले इस तरह की लहर दौड़ना जरूरी होता है। (संवाद)
शीला ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेसियों की उम्मीदें बढ़ाई
ब्राह्मण होंगे कांग्रेस के मूल समर्थक
कल्याणी शंकर - 2016-07-22 17:25
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहु-बेटी का खेल खेल रही है। क्या यह खेल कांग्रेस के काम आएगा, क्योंकि अब मतदाता कांग्रेसी वंशवाद की राजनीति से थक गए हैं? इस सवाल का जवाब तो बाद में मिलेगा, लेकिन इतना तो तय है कि इस खेल से कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में कोई नुकसान नहीं होने वाला है। इससे कुछ फायदा ही उसे होगा।