रामजन्मभूमि मंदिर आंदोलन ने भाजपा को केन्द्र की सत्ता में बैठा दी थी और अनेक राज्यों में भी वह सत्ता में आ गई थी। भाजपा की राजनीति मुस्लिम विरोध पर आधारित रही है। 1990 के दशक में मंदिर मसले पर उमा भारती और साध्वी रितंभरा मुसलमानों के खिलाफ आग उगल रही थीं।

नरेन्द्र मोदी सरकार बनते ही वह एक बार फिर शुरू हो गया था। घर वापसी अभियान के नाम पर जो कभी लव जिहाद के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा था। गाय का मांस खाने वाले मुसलमानों को भारत छोड़कर पाकिस्तान जाने की सलाह भी दी जा रही थी।

लेकिन कुछ समय बाद यह सब बंद हो गया। इसका एक कारण यह हो सकता है कि नरेन्द्र मोदी को वह सब पसंद नहीं आया। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मोदी को सलाह दी थी कि भारत अपने संविधान में लिखी बातों को अमल में लाए और असहिष्णुता की नीति को नहीं अपनाए। लगता है कि ओबामा की बात मानते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संघ परिवार के लोगों को लव जिहाद और घर वापसी जैसे अभियानों को समाप्त करने को कहा और उसमें वे बहुत हद तक सफल भी हुए।

लेकिन संघ परिवार कोई एक सिर वाला संगठन नहीं है। उसके हजार सिर और हजारों मुह हैं। नरेन्द्र मोदी कितने मुह बद कर और करवा सकते हैं? जब वे योगी आदित्यनाथ और साक्षी महाराज को चुप कराते हैं तो कोई साघ्वी प्राची अपना मुह खोल देती है।

मुस्लिम विरोधी अभियानों को ठंढे बस्ते में रखकर अब संघ परिवार के लोग कम्युनिस्टों और दलितों के पीछे पड़ गए। उनके दलितों के पीछे पड़ने का परिणाम हुआ हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में एक होनहार दलित छात्र वेमुला की आत्महत्या, जिसके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उस समय की शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने एक के बाद एक कई पत्र लिखवा डाले। वेमुला और उसके दोस्तों के खिलाफ कार्रवाई हुई और वेमुला ने आत्महत्या कर ली।

उसके बाद जेएनयू का कांड हुआ। वह कम्युनिस्टों पर लक्षित था। उसके छात्र संघ अघ्यक्ष सहित कुछ छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा ठोंक दिया गया।

राम मंदिर और समान नागरिक संहिता को छोड़कर भगवा ब्रिगेड गौरक्षा के कार्यक्रम पर लगे हुए हैं। इस कार्यक्रम के तहत दादरी में एक मुसलमान को उन्होंने मार डाला। देश के अनेक क्षेत्रों में मुसलमानों पर गौरक्षा के नाम पर अत्याचार हुए और कुछ मारे भी गए। लेकिन गुजरात मे तो उन्हों उन दलितांे को ही गौरक्षा के नाम पर पीट डाला, जिन्हे वे हिन्दू कहते हैं। वे दलित मरी हुई एक गाय के शरीर से उसका चमड़ा उतार रहे थे।

गुजरात की उस घटना को राष्ट्रीय स्तर पर पब्लिसीटी मिल रही है और इसके कारण भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश मंे हवा खराब हो रही है, जहां पार्टी ने दलित वोटों को हासिल करने के लिए जबर्दस्त अभियान छेड़ रखा है। लेकिन गुजरात में गौररक्षकों ने दलितों को पीटकर उत्तर प्रदेश में उसका काम कठिन कर दिया है।

एक बार समझ में नहीं आती है कि एक तरफ तो भाजपा दलित वोट पाने के लिए अभियान चला रही है और दूसरी ओर दलितांे पर ही संघ में लोग हमले कर रहे हैं। आखिर इस तरह का विरोधाभाष क्यों? इससे तो यही लगता है कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और संघ के कार्यकत्र्ताओं के बीच संवादहीनता बनी हुई है। एक तरफ प्रधानमंत्री अंबेडकर की पूजा कर दलितों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, तो दूसरी ओर शिक्षा मंत्रालय मंे बैठकर संघ के नेता वेमुला कांड करवा देते हैं और उधर गुजरात में गौरक्षा के नाम पर दलितों को पीट दिया जाता है।

भारतीय जनता पार्टी गाय को बचाए या दलित वोटों को? उसके सामने यह सवाल खड़ा हो गया है। यदि उसका यह असमंजस बना रहा, तो उत्तर प्रदेश चुनाव में उसे भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। (संवाद)