इसके प्रभाव कोई एक दिशा में नहीं, बल्कि बहुआयामी होंगे। केन्द्र और राज्यों के संबंध भी इसके कारण अब बदल जाएंगे। हमारे संविधान निर्माताओं ने हमारे देश को एक संघीय शासन व्यवस्था दी थी, जिसमें केन्द्र के साथ साथ राज्यों को भी वित्तीय अधिकार दिए गए थे। हालांकि ज्यादा वित्तीय अधिकार केन्द्र को ही दिए गए थे और उसके कारण राज्य सरकारें केन्द्रीय अनुदान और सहायता पर निर्भर हो गई थी। जीएसटी शक्तियों को केन्द्र की ओर थोड़ा और केन्द्रित कर देता है। यह बाजार की जीत है।
प्रांतों का गठन राजनैतिक सुविधाओं के लिए हुआ है। भारत बहुलतावादी देश है और उन्हें ध्यान में रखते हुए संघीय व्यवस्था बनाई गई थी, लेकिन भारतीय बाजार उस संघीय व्यवस्था से आहत हो रहा था। अलग अलग राज्यों की अलग अलग कर व्यवस्थाओं के कारण भारतीय बाजार अनेक प्रकार की विकृतियों का शिकार हो रहा था। जीएसटी उन विकृतियों को भी दूर करने में बहुद हद तक सफल होगा और अब भारत के अंदर का अंदरूनी व्यापार पहले से ज्यादा सुगम होगा।
जीएसटी जरूरी हो गया था। इसकी जरूरत बहुत सालों से महसूस की जा रही थी। जब 1991 में नरसिंह राव की सरकार ने नई आर्थिक नीतियों के तहत आर्थिक सुधार कार्यक्रमों की शुरूआत की थी, तो कर व्यवस्थाओं में भी सुधार की बात हो रही थी। लेकिन नरसिंह राव सरकार उस दिशा में कोई खास कदम नहीं उठा पाई थी।
1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इस दिशा में ठोस कदम उठाने शुरू किए थे। इसका विरोध राज्य सरकारो की ओर से किया जाना था। इसलिए राज्य सरकारो के वित्त मंत्रियों की एक समिति पश्चिम बंगाल के तत्काल वित्तमंत्री की अध्यक्षता में बनाई गई। लेकिन यह मसला राज्यों के वित्तीय अधिकारों से संबंधित था, इसलिए इसपर त्वरित कानून संभव भी नहीं था।
यही कारण है कि वस्तु सेवा कर पर संविधान संशोधन होने में इतना समय लग रहा है। इसे संसद से पास करा दिया गया है, लेकिन इस राज्यों की विधानसभाओ से भी पास कराना होगा। जब आधे से ज्यादा राज्यों की विधानसभाएं इसे पास करेंगी, उसके बाद ही यह संविधान संशोधन संभव होगा।
ल्ेकिन राज्यों की विधानसभाओं से पारित कराना ज्यादा कठिन नहीं है। तमिलनाडु की सरकार के अलावा अन्य सभी राज्य सरकारें इसका समर्थन करती हैं और जयललिता की पार्टी के अलावा अन्य सारी पार्टियों ने भी इसका समर्थन किया है। इसलिए एकाध अपवाद को छोड़कर सारी विधानसभाओं द्वारा इसका पारित किया जाना तय है।
असली समस्या राज्यसभा में ही थी, जहां सत्ताधारी एनडीए अल्पमत में है। संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराने के लिए मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो तिहाई सदस्यों का वोट आवश्यक होता है, लेकिन एनडीए के पास तो राज्यसभा में साधारण बहुमत भी नहीं है। इसलिए इस मसले पर सर्वसम्मति नहीं, तो आम सहमति बनाना जरूरी हो गया था। और आम सहमति बनाने में ही इतना ज्यादा समय लग गया है।
वाजपेयाी सरकार द्वारा जीएसटी की दिशा में जो प्रयास शुरू हुए थे, वे यूपीए सरकार में भी जारी रहे, हालांकि यूपीए सरकार उस पर आमसहमति बनाने में विफल रही। तब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली अनेक राज्य सरकारें ही इसका विरोध किया करती थीं। विरोध करने वालों मे नरेन्द्र्र मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार भी थी। मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चैहान भी विरोध करने वाली राज्य सरकारों में शामिल थीं। भारतीय जनता पार्टी का रवैया जीएसटी को संभव बनाने के यूपीए के प्रयासों के प्रति सकारात्मक नहीं था।
2014 में भाजपा की मोदी सरकार बनने के बाद इस दिशा में फिर से प्रयास शुरू हुए। यह प्रयास केन्द्र की भाजपा सरकार ही कर रही थी, इसलिए भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों का विरोध अपने आप समाप्त हो गया। लेकिन समस्या कांग्रेस की ओर से शुरू हो गई। कांग्रेस के लगातार विरोध और अलग अलग कारणों से जब तक संसद की कार्रवाई में व्यवधान पड़ने के कारण जीएसटी पर संविधान संशोधन का काम लंबा लटकता चला गया, लेकिन इसका एक फायदा यह हुआ कि इस विलंब के कारण जीएसटी का यह संविधान संशोधन विधेयक लगातार ज्यादा बेहतर और ज्यादा व्यावहारिक होता चला गया।
जीएसटी के कारण देश की अनेक आर्थिक समस्यांए दूर होंगी। इससे क्षेत्रीय असंतुलन भी दूर होगा, क्योंकि किसी भी वस्तु और सेवा पर लगने वाला कर देश भर में एक समान होगा। अलग अलग करों की दरों के कारण भी क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ रहा था। कम करों की दरों वाले प्रदेशों में व्यापार जोर पकड़ता था और पिछड़े क्षेत्रों की अनेक राज्यसरकारें ज्यादा राजस्व हासिल करने के लिए आर्थिक विकास की कीमत पर भी करों की दरें बढ़ा दिया करती थी। उसके कारण भले ही सरकार को फौरी तौर पर कुछ फायदा हो जाता होगा, लेकिन उससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था को नुकसान होता था।
जीएसटी के अमल में आने के बाद एक प्रदेश से दूसरे प्रदेशो ंमें अबाध व्यापार हो पाएगा। इससे अनेक किस्म की आर्थिक गतिविधियों को तेजी भी प्राप्त होगी। आबादी का पिछड़े राज्यों से समृद्ध राज्यों में पलायन रुकेगा तो नहीं, पर उसकी गति जरूर कमजोर होगी।
जीएसटी व्यवस्था के तहत उन राज्यों की सरकारों को फायदा होगा, जिनका अपना कर प्रशासन काफी लचर है और लोगों से सरकार पूरा टैक्स नहीं वसूल पाती। नई व्यवस्था के तहत टैक्स की चोरी करना कठिन हो जाएगा और करांे की दरें कम होने से टैक्स जमा करने वालों की संख्या भी बढ़ेगी। अनेक वस्तुओ पर लगने वाले करों ेकी दर कम हो जाएगी, तो कुछ वस्तुओ पर कर की दरें बढ़ भी सकती हैं, लेकिन कुल मिलाकर मुद्रास्फीति दर पर इसका खराब असर नहीं पड़ेगा। भ्रष्टाचार को कम करने में इसकी सफलता के कारण हो सकता है कि मुद्रास्फीति की दर कम ही हो जाए। (संवाद)
वस्तु सेवा कर (जीएसटी) और हम
अबतक का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-08-04 17:18
वस्तु सेवा कर, जिसे जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) भी कहा जा रहा है, आजाद भारत के इतिहास का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार कायक्रम है। इसके अमल में आने के बाद परोक्ष कर प्रशासन में सबकुछ बदल जाएगा। देश में व्यापार का पूरा माहौल और ढंग ही बदल जाएगा। टेक्नालाॅजी के बेहतर प्रयोग के साथ जीएसटी का यह दौर भ्रष्टाचार को काफी हद तक नियंत्रित कर डालेगा और टैक्स न देने वाले व्यापारियों को भी कराधान के दायरे में ले आएगा।