जब भारतीय जनता पार्टी अपना मिशन कश्मीर 44 पर काम कर रही थी, तो चुनावों का आमतौर पर बहिष्कार करने वाले अलगाववादियों को लगा कि कहीं जम्मू और लद्दाख की सारी सीटें और घाटी की के चार पांच सीटें जीतकर भारतीय जनता पार्टी प्रदेश की सत्ता में पूर्ण बहुत से न आ जाए, इसलिए उन्होंने चुनाव बहिष्कार का त्याग कर मतदान में हिस्सा लिया और उसके कारण मतदान प्रतिशत बढ़ा और मुफ्ती की पार्टी पीडीपी को घाटी के अंदर शानदार जीत मिली, पर अन्य इलाकों में उसे अच्छी सफलता नहीं मिली। लिहाजा उसे भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाना पड़ा।
लेकिन कहीं सत्ता प्रेम अलगाव की भावना को ही न कुंद कर दे, इस डर के कारण अलगाववादियों ने भी अपनी सक्रियता बढ़ा दी और उसी बढ़ी सक्रियता का परिणाम है बुढ़ान बानी की मौत के बाद हो रहा यह प्रदर्शन जिसमें अबतक 70 से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग घायल हुए हैं। घायल होने वाले में पुलिस और सुरक्षा बलों के जवानों की संख्या भी हजारों में है।
प्रदर्शनकारियों की पत्थरबाजी के खिलाफ जवानों का मुख्य हथियार पेल्लेट गन है। जिसमंे कंकड़ियों से जवाब दिया जाता है। उन कंकड़ियों का इस्तेमाल बंदूक मंे रखकर किया जाता है। घायल होने वालों में ज्यादातर उसी पेल्लेट गन के शिकार है। वैसे लोगों की संख्या भी हजारों में हैं। इस गन से मौत ज्यादा नहीं होती, लेकिन महत्वपूर्ण अंगों पर लगने से भारी नुकसान होता है। अनेक लोगों की आंखें इसके कारण चली गई है।
इसलिए चारों तरफ मांग हो रही है कि इस गन का इस्तेमाल रोका जाय। पर सवाल उठता है कि यदि इस गन का इस्तेमाल रोका जाय, तो फिर किसका इस्तेमाल किया जाए? सुरक्षा बलों के घायल जवानों की संख्या मंे हजारों में है। इससे पता चलता है कि उन पर किसी तरह से संगठित होकर हमला किया जा रहा है। यदि हमले का जवाब जवान नहीं देंगे, तो उनकी स्थिति और भी खराब हो जाएगी। वे लाठी भी चला सकते हैं, लेकिन लाठी पास वालों पर चलाई जाती है, जो कुछ दूर से पत्थरबाजी कर रहे हों, उनपर कैसे लाठी चलाई जा सकती है? आंसू गैस का गोला भी एक विकल्प है और इसका भी इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन वह नाकाफी साबित हो रहा है। वैसी स्थिति में एक विकल्प गोली चलाना हो सकता है, लेकिन गोलियां चलाने से मरने वालों की तादाद बहुत ज्यादा हो जाएगी। लोग मरे नहीं, इसके लिए ही तो पेल्लेट गन चलाया जाता है। यह एक तरह से पत्थरबाजी का जवाब पत्थरबाजी से देने का मामला है। अंतर यह है कि पेल्लेट गन से चलाया गया पत्थर छोटा होता है, लेकिन उसकी गति तेज होती है और संवेदनशील जगह पर लगने से वह पत्थर भी मारक हो जाता है।
पेल्लेट गन के इस्तेमाल को रोकने की अपील ठुकरा दी गई है। जाहिर है सरकार सख्ती के मूड में है और ऐसा कोई संदेश नहीं देना चाहती कि वह दबाव में अलगाववादियों और हिंसक प्रदर्शनकारियों कके खिलाफ को नरमी दिखाएगी। उसे नरमी दिखानी भी नहीं चाहिए, क्योंकि नरमी दिखाने से अलगाववादियों का मनोबल और भी ऊंचा हो जाता है और वे लोगों को गुमराह करने की उसकी ताकत और भी बढ़ जाती है।
इसलिए हिंसा पर उतारू प्रदर्शनकारियों पर सख्ती किए जाने का कोई विकल्प कश्मीर में है ही नहीं। अलगाववादियों को संदेश स्पष्ट जाना चाहिए कि उनके मंसूबे पूरे होने का कोई सवाल ही नहीं है। वहां के आम लोगों को भी यह बात समझ में आ जानी चाहिए कि अलगाववादी उनके हितैषी नहीं हैं, बल्कि उनके दुश्मन हैं।
सख्ती के साथ साथ ही सरकार को बातचीत का रास्ता खुला रखना चाहिए। जो कोई भी वहां शांति और अमन चाहता है, उसके किसी भी प्रस्ताव को मानने के लिए सरकार को खुल दिमाग से बातचीत और विचार करने को तैयार रहना चाहिए।
इसके साथ साथ उन तत्वों की खोज भी होनी चाहिए, जो घाटी का माहौल बिगाड़ रहे हैं। वैसे लोगों को चुनचुन कर गिरफ्तार करने की कोशिश की जानी चाहिए। आतंकववादियों से तो बातचीत भी नहीं होनी चाहिए। उनके साथ कानून के तहत जितना कठोर व्यवहार किया जा सकता है, उतना करना चाहिए, लेकिन नरमपंथी अलगाववादियों को भी अब खुला नहीं छोड़ा जाना चाहिए। (संवाद)
कश्मीर में अलगाववादियों को मिले सख्त संदेश
बातचीत का विकल्प भी हमेशा खुला रहना चाहिए
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-08-24 11:16
कश्मीर में अशांति जारी है, हालांकि यह भी सच है कि अधिकांश जगहों पर हालात बेहतर हो चुके हैं, पर श्रीनगर जिले में अभी कफ्र्यू लगाना पड़ता है। इसके अलावा अनंतनाग और पुलवामा शहर मे भी प्रदर्शनकारी माहौल को अशांत कर रहे हैं। बुढ़ान वानी की पुलिस मुठभेड़ में मौत के बाद जिस तरह का प्रदर्शन वहां हो रहा है, उससे यही लगता है कि उसकी तैयारी बहुत पहले से थी। सच तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी और पीडीपी की मुफ्ती सरकार के गठन के बाद ही अलगाववादियों में भय का वातावरण था। चूंकि यह दो विपरीत विचारधारा वाले संगठन के बीच सुविधा का गठजोड़ था, इसलिए अलगाववादियों को लग रहा था कि कहीं पीडीपी के लोग सुविधावादी होकर मुख्यधारा में शामिल न होने लगें। गौरतलब हो कि मुफ्ती की पार्टी का अलगाववादियों से लगाव रहा है और महबूबा मुफ्ती के बारे मे तो कहा जाता है, उनकी उन लोगों से सहानुभूति रही है। पीडीपी की जीत के पीछे यह सहानुभूति भी जिम्मेदार रही है।