सबसे पहले महात्मा गांधी ने 1930 में डांडी की पदयात्रा की थी। उसके बाद तो जनसमुदाय से जुड़ने के लिए पदयात्राओं का दौर ही शुरू हो गया है। लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 में एक यात्रा निकाली थी, जिससे कारण वे एक बड़े नेता के रूप में देश में उभरे। राजशेखर रेड्डी ने 2003 में तीन महीने की पदयात्रा आंध्रप्रदेश में की थी। उसके कारण उन्हें और उनकी पार्टी को चुनावी सफलता मिली। 2013 में चंद्रबाबू नायडू ने 1700 किलोमीटर की पदयात्रा की थी। उसके बाद 2014 में वे आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी 2015 विधानसभा चुनाव के पहले दिल्ली की गलियों में पदयात्रा की थी, जिसके कारण उन्हें एक बार फिर सत्ता मिल गई।

इसलिए यह कोई पहली बार नहीं है कि राहुल गांधी चुनाव जीतने के लिए इस तरह की यात्रा कर रहे हैं। 2012 के पहले भी उन्होने 105 किलोमीटर की पदयात्रा भट्टा परसौल से अलीगढ़ तक की थी। उस समय वे किसानों के मुद्दों को उठा रहे थे। उन्होने महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और अन्य कुछ राज्यों में भी पदयात्राएं की हैं।

उत्तर प्रदेश का चुनाव कांग्रेस के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उसका राजनैतिक ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है। उसे उत्तर प्रदेश में यह दिखाना है कि वह डूबती हुई किश्ती नहीं है। इस बार उनके अभियान का मुख्य नारा है, ’’ 27 साल, यूपी बेहाल’’। इसके द्वारा यह बताएंगे कि किस तरह कांग्रेस के हाथ से सत्ता जाने के बाद पिछले 27 साल में उत्तर प्रदेश की दुर्गति हुई है।

कांग्रेस ने इस बार राजनैतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सेवा ले रखी है। कुछ लोगों का कहना है कि प्रशांत के कारण ही लोकसभा में नरेन्द्र मोदी और बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार की जीत हुई। लेकिन उत्तर प्रदेश कांग्रेस के लिए आसान नहीं है।

प्रशांत ने अपना काम पहले से ही खराब कर रखा है, क्योंकि उन्होंने कई नेताओं को नाराज कर दिया है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की संख्या 10 फीसदी है। उसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने शीला दीक्षित को कांग्रेस का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनवा दिया है।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस दलित मुस्लिम और कांग्रेस के राजनैतिक समीकरण से 1989 के पहले चुनाव जीता करती थी, लेकिन उसका यह समीकरण अब बिखर गया है। उसके साथ न तो अब ब्राह्मण वोट बैंक है और न दलित वोट बैंक और न ही मुस्लिम वोट बैंक। ब्राह्मण वोटों के लिए कांग्रेस को बसपा और भाजपा के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी। मुस्लिम वोटों के लिए उसे सपा और बसपा से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी। दलित वोटों के लिए भी उसे बसपा और भाजपा से ही प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी। भारतीय जनता पार्टी सफलता के लिए अगड़ी जातियों के लोगों और गैर यादव पिछड़ों पर निर्भर है।

1985 में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश के कुल मतों का साढ़े 30 प्रतिशत हिस्सा मिला था। यह हिस्सा पिछले विधानसभा आम चुनाव में घटकर साढ़े 11 प्रतिशत हो गया था। पिछले लोकसभा चुनाव में तो उसे मात्र साढ़े 7 फीसदी वोट ही मिल सके थे। 2012 के चुनाव में उसे 28 सीटे मिली थीं, जबकि 2007 में 22 और 2002 में उसे 25 सीटें मिली थीं।

तो कांग्रेस को अपने उद्देश्य की प्राप्ति कैसे होगी? कांग्रेस के लिए संतोष की बात यह है कि प्रदेश के सभी हिस्सों में उसकी उपस्थिति है। अब अपने निष्क्रिय समर्थकों को फिर से सक्रिय बनाना चाह रही है। उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती उनसे और अन्य मतदाताओं से जुड़ने की है। (संवाद)