शिमला समझौते के बावजूद पाकिस्तान इस मसले को अंतरराष्ट्र मंचों पर उठाता रहा है और पाकिस्तान शिमला समझौते का वास्ता देकर पाकिस्तान की उस कोशिश का विरोध करता रहा है। यही कारण है कि अब संयुक्त राष्ट्र संघ का वह प्रस्ताव मृत हो गया है, जिसमें कश्मीर समस्या के हल के लिए वहां जनमत संग्रह की बात की गई थी। उस प्रस्ताव की स्वाभाविक मौत के बावजूद अभी भी पाकिस्तान उसी प्रस्ताव के तहत जनमत संगह की मांग करता रहता है।

अब भारत ने बलोचिस्तान के मसले पर चिंता जाहिर करना शुरू कर दिया है। इसे कोई चाहे तो कह सकता है कि भारत पाकिस्तान के आंतरिक मसले में हस्तक्षेप कर रहा है, लेकिन जब कोई पड़ोसी देश हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करे, तो उस हस्तक्षेप के जवाब में हम अपनी तरफ से हस्तक्षेप क्यों नहीं कर सकते? चाणक्य का कहना है कि पानी के साथ पानी बनकर रहना चाहिए और आग के साथ आग बनकर रहना चाहिए। गरल के उत्तर में गरल उगलना चाहिए। भारत ने बलोचिस्तान के मामले को उठाकर चाणक्य नीति का ही अनुसरण किया है।

यह सच है कि भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य है और उसके नाते किसी अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने के लिए यह संकल्पबद्ध भी है। लेकिन यदि कोई देश भारत के साथ युद्ध करे और हमपर हमला कर दे, तो फिर हमें क्या करना चाहिए?

पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ अघोषित युद्ध ही छेड़ रखा है। कश्मीर में बुरहान वानी की मौत के बाद जो अशांति फैली है, उसके लिए सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान ही जिम्मेदार है। उसके पहले से जो कुछ कश्मीर में हो रहा है, वह भी पाकिस्तान का ही किया कराया है। सच कहा जाय, तो कश्मीर के मसले पर भारत और पाकिस्तान के बीच 4 युद्ध हो चुके हैं। 1971 में हुए युद्ध में तो पाकिस्तान का बंटवारा तक हो चुका है, लेकिन उसके बावजूद पाकिस्तान भारत के खिलाफ अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा देने की अपनी नीति से बाज नहीं आ रहा। 1980 के दशक में उसने खालिस्तान आंदोलन को हवा दी। जब पाकिस्तान में उसके मंसूबे नाकाम हो गए, तो फिर उसने कश्मीर में मोर्चा खोल दिया।

मुफ्ती और भाजपा की मिली जुली सरकार कश्मीर में बनने के बाद तो पाकिस्तान बौखला गया है और उसके बाद उसने हताशा में आकर अपनी सारी शक्तियों को कश्मीर में अशांति फैलाने में लगा दिया है। उसे लगता है कि महबूबा मुफ्ती और भाजपा की मिली जुली सरकार का प्रयोग सफल हुआ, तो अलगाववादियों की पकड़ कश्मीर समाज पर कमजोर हो जाएगी। यही कारण है कि उसने वहां अशांति फैलाने के सारे तरीकों को एक साथ आजमाना शुरू कर दिया।

उसी का परिणाम कश्मीर घाटी की ताजा अशांति है। वह बुरहान वानी को शहीद घोषित कर रहा है। उसके समर्थन में वहां जुलूस निकाले जा रहे हैं। भारत के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी की जा रही है और दूसरे देशों और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान भारत के खिलाफ अभियान चलाने में व्यस्त है। यानी कश्मीर मसले पर पाकिस्तान लगातार अपनी आक्रामकता बढ़ाता जा रहा है, जबकि हम लगातार रक्षात्मक स्थिति में बने हुए थे।

ऐसी हालत में बलोचिस्तान का मुद्दा उठाना समय की मांग थी। पाकिस्तान को यह अहसास दिलाना चाहिए कि यदि आप हमारे यहां हस्तक्षेप कर हमें अस्थिर करने की कोशिश कर सकते हैं, तो हमारे पास भी आपको अस्थिर करने का विकल्प मौजूद है। सच कहा जाय, तो धर्म के नाम पर बना पाकिस्तान एक स्वाभाविक देश है ही नहीं। इसके नेता सोचते हैं कि इस्लाम इसे एक रखेगा, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान का इससे अलग होना और बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का अस्तित्व में आ जाना इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान जिस सोच पर बना, वह सोच ही गलत था।
अब बलोचिस्तान अलग होने की मांग रहा है। पाकिस्तान का पश्तूनी इलाका भी पाकिस्तान में नहीं रहना चाहता। सिंध के लोग भी अलग देश की मांग कर रहे हैं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पाकिस्तान का है ही नहीं, तो कुछ मिलाकर पाकिस्तान का पंजाबी सूबा ही पाकिस्तान के रूप में रह जाएगा। ब्रिटिश राज के जाने साथ ही पाकिस्तान अस्तित्व में आया, लेकिन अभी तक यह राष्ट्र का रूप नहीं ले पाया है।
बलोचिस्तान की तो अभी प्रधानमंत्री ने सिर्फ चर्चा ही की है कि पाकिस्तान इससे डोलने लग गया है। उसे किसी तरह की सहायता देने की बात अभी तक नहीं की गई है और न ही यह कहा गया है कि हम उनके आंदोलन का समर्थन करते हैं। लेकिन पाकिस्तान ने यदि कश्मीर में अपना हस्तक्षेप जारी रखा, तो बलोचिस्तान के आंदोलन को समर्थन देने के लिए भी भारत विवश हो सकता है। पाकिस्तान की स्थापना कमजोर नींव पर हुई है। वह इस मुगालते में न रहे कि मजहब उसकी समस्याओं को हल कर देगा और वे उसे एक रखेगा।

बलोचिस्तान के जिक्र के बाद पाकिस्तान के अंदर से जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही है, उनसे तो यही लगता है कि भारत की यह कूटनीति कामयाब हुई है। भारत के खिलाफ लगाातार आक्रामक रहने वाले पाकिस्तान को अब बलोचिस्तान मुद्दे पर रक्षात्मक होना पड़ रहा है। यदि इस मसले का अंतरराष्ट्रीय करण हुआ, तो फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान अपना मुह दिखाने लायक भी नहीं रहेगा। वैसे भी आतंकवाद के साथ पाकिस्तान का नाम लगातार जुड़ता जा रहा है और शांतिप्रिय देश आने वाले समय में उससे दूरी बनाते जाएंगे।(संवाद)