जब किसी फिल्म के प्रदर्शन पर कानून व्यवस्था की स्थिति पैदा हो रही है, तो सरकार को उस फिल्म के प्रदर्शन पर ही रोक लगा देनी चाहिए, लेकिन यहां तो फिल्म का प्रदर्शन फिल्म निर्माता से ज्यादा सरकार के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया है। सिनेमाघर के मालिक आमतौर पर ऐसी फिल्मों को दिखाना नहीं पसंद करते हैं, जिनके प्रदर्शन से उनकी संपत्ति को नुकसान होता है, लेकिन यहां तो उनके ऊपर सरकार का दबाव पड़ रहा है कि वे हर हालत में उस फिल्म का प्रदर्शन करें।

आखिर इस तरह की नौबत आई क्यों? इसके लिए जिम्मेदार कौन है? कहने की जरूरत नहीं कि इस प्रकरण के केन्द्र में खुद शाहरुख खान ही हैं। विवाद की शुरुआत उन्होंने ही की और शिवसेना को अपनी आक्रामकता दिखाने का मौका दे दिया। शाहरुख जैसे अभिनेताओं के लिए अपना बयान देकर वापस ले लेना अथवा माफी मांग लेना कोई बड़ी बात नहीं हैं। वे अभिनय की दुनिया के हैं, जहां किसी भी तरह का अभिनय किया जाना जायज है, पर मामले के चैतरफा राजनैतिककरण के बाद शाहरुख के लिए भी अपने बयान से पलटना अथवा बयान के लिए माफी मांगना या खेद जाहिर करना आसान नहीं रह गया है।

जिस प्रसंग पर यह हंगामा हो रहा है, उसकी कोई जरूरत ही नहीं थी, लेकिन हल्की फुल्की बातें करना और उन्हें फिल्मी पत्रिकाओं में छपवाना अभिनेताओं की रणनीति होती है, ताकि वे किसी तरह से चर्चा में बने रहें। जब उनकी फिल्म रीलीज हो रही होती है तो इस तरह की गौसिप और बढ़ा दी जाती है। शाहरुख खान की उक फिल्म रीलीज होने वाली थी, तो उन्होंने भी कुछ हल्की फुल्की बातें कह डाली। बातें हल्की फुल्की थीं, लंकिन उसका विषय गंभीर था। शाहरुख खान फिल्म अभिनेता ही नहीं, आइपीएल की एक टीम के मालिक भी हैं। आइपीएल की किसी टीम ने किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी की नीलामी में बोली नहीं लगाई। खुद शाहरुख की टीम ने भी किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी को नहीं खरीदा। पाकिस्तान में इस बात को लेकर असंतोष था। मामला संवेदनशील था। केन्द्रीय गृहमंत्री तक को सफाई देनी पड़ी कि सरकार की ओर से पाकिस्तानी खिलाड़ियों के खिलाफ किसी तरह का कोई संकेत नहीं दिया गया था।

उतने गंभीर मामले में शाहरुख का पड़ना ही नहीं चाहिए था, लेकिन उनकी फिल्म रीलीज होने वाली थी, सो वे पाकिस्तान के खिलाड़ियों से सहानुभूति दिखाते हुए पाकिस्तान को एक अच्छा पड़ोसी और खुद को भी मूल रूप से पाकिस्तानी ही बता दिया। जब देश में पाकिस्तान के खिलाफ भावना का उभार हो रहा हो और दोनों देशों के बीच राजनयिक उठापटक चल रही होख् तो वैसे समय में इस तरह का बयान जारी करना गैर जिम्मेदाराना ही था। जब शाहरुख खान ने पाकिस्तान से संबंधित अपना वह बयान दिया था, तब शिवसेना मुंबई सबकी है के मामले में रक्षात्मक मुद्रा में थी। चारों तरफ से उस पर आक्रमण हो रहे थे। भाजपा नेताओं ने भी शिवसेना का मजाक उड़ाना शुरु कर दिया था। वह समय शिवसेना के लिए कठिन था, लेकिन शाहरुख खान के पाकिस्तान पर दिए गए बयान ने शिवसेना का काम आसान कर दिया।

क्षेत्रीय राजनीति के साथ साथ शिवसेना पाकिस्तान विरोध की राजनीति भी करती रही है। क्षेत्रीय राजनीति में तो उसके विरोधी उसके सामने आ खड़े होते हैं, लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ राजनीति में उसके सामने शायद ही कोई आता है। पाकिस्तान के खिलाफ राजनीति उसका सबसे मजबूत पहलू रहा है और शाहरुख खान ने अपनी फिल्म की पब्लिसीटी के चक्कर में शिवसेना को उसका सबसे मजबूत मुद्दा थमा दिया। शाहरुख खान का पाकिस्तान के पक्ष में ख्ड़ा दिखाई पड़ना इसलिए भी गलत था, क्योंकि पिछले दो साल से राज ठाकरे और शिवसेना द्वारा चलाए गए अभियान में वे कभी भी कुछ नहीं बोले। जब उत्तर भारतीयों के खिलाफ हमला बोला गया, वे चुप रहे। टैक्सी चालकों पर हमला बोला गया, वे चुप रहे। हिंदी के खिलाफ बोला गया, तब भी शाहरुख चुप ही थे, जबकि वे खुद हिंदी की कमाई ही खाते हैं। हिंदी के पक्ष में जब जया बच्चन ने कुछ कहा तो राज ठाकरे ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। तब भी शाहरुख चुप ही थे।

इसलिए एकाएक पाकिस्तान के पक्ष में उनका आ खड़ा होना किसी को भी हैरत में डालने वाला है। यदि पाकिस्तान के किसी खिलाड़ी को आइपीएल में नहीं लिया गया तो उसके लिए शाहरुख भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि नीलामी के समय वे किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी को अपनी टीम में ले सकते थे। लेकिन उनकी टीम ने भी किसी पाकिस्तानी को नहीं चुना और बाद में वे राजनीतिज्ञों की तरह पाकिस्तान के खिलाड़ियों के किसी भी टीम में न लिए जाने पर अपना असंतोष व्यक्त करने लगे। यह निरा पाखंड के अलावा और कुठ नहीं था। शाहरुख के प्रशंसक काफी संख्या में पाकिस्तान में भी हैं। शायद वे पाकिस्तान के प्रशंसकों के बीच उनकी टीम में किसी पाकिस्तानी के नहीं लिए जाने पर हो रहे छवि नुकसान की भरपाई कर रहे थे। लेकिन उन्हें शिवसेना का भी ख्याल करना चाहिए था, जिसके क्षेत्रवाद के खिलाफ भाजपा भी बोलने लगी थी और सेना नैतिक रूप से अपने आपको कमजोर पा रही थी।

अब चूंकि शाहरुख खान राजनीतिज्ञ नहीं हैं, इसलिए उन्हें राजनीति के सूक्ष्म दावपेंच की जानकारी भी नहीं है। जो राजनीति नहीं जानता हो वह राजनीति करने लग जाएख् तो वैसा ही होता है, जो आज शाहरुख के साथ हो रहा है। फिल्म से खेल और खेल से राजनीति का सफर शाहरुख कर तो रहे हैं, लेकिन उनका यह सफर न सिर्फ उनके लिउण् बल्कि मुंबई के लिए भी भारी पड़ रहा है। बीच में लगा था कि बाल ठाकरे से मिलकर वे कोई सफाई देंगे और माफी मांगकर मामले को रफा दफा कर देंगे। उन्होंने बाल टाकरे से मिलने की इच्छा भी जाहिर की थी, लेकिन उनके समर्थन में तबतक खुलकर राहुल गांधी भी आ गए थे। ठाकरे से मिलकर उन्हें शांत करने का मतलब होता उनके सामने घुटना टेक देना। उस तरह घुटना टेकना भी शाहरुख के लिए कोई कठिन काम नहीं था, क्योंकि अभिनय की दुनिया में यह सब चलता है, पर लेकिन वे फिर राहुल गांधी को कौन सा मुह दिखाते, जो उनके साथ बाल टाकरे के खिलाफ आकर खड़े हो गए थे। जाहिर है राजनीति में पड़कर शाहरुख ने बाल ठाकरे के सामने अपने घुटने टेकने का विकल्प भी धुंधला कर दिया है। अच्छा यही रहेगा कि वे पाकिस्तान से संबंधित अनावश्यक बयान देने के लिए देश से माफी मांग लें। (संवाद)